गरीबों के ईलाज के लिए मिली राशि से चुकाया था ट्रस्ट का कर्ज , निलंबित आईपीएस के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज….
रायपुर, 06 मई 2020 — राज्य के चर्चित निलंबित आईपीएस अफसर मुकेश गुप्ता की मुश्किलें एक बार फिर से बढ़ गई हैं। डा. मिकी मेहता मेमोरियल ट्रस्ट में हुई आर्थिक अनियमितता के मामले में श्री गुप्ता के खिलाफ अब सीधे धोखाधड़ी का अपराध दर्ज हुआ है। ताजा प्रकरण में गरीबों के बेहतर उपचार के नाम पर 3 करोड़ का अनुदान लिए जाने तथा इस राशि का उपयोग ट्रस्ट के कर्ज चुकाने में किए जाने की पुष्टि हुई है। यही नहीं मामले में बैंक सेटलमेंट के नाम पर भी एक बड़ी धांधली का पता चला है।
आवेदक मानिक मेहनता द्वारका नई दिल्ली द्वारा प्रेषित शिकायत की जांच पर उपरोक्त तथ्य पाया गया है। इसके बाद अब मुकेश गुप्ता की मुश्किलें फिर से बढ़ गई हैं। मिली जानकारी के अनुसार आवेदक मानिक मेहता की शिकायत पर प्रकरण की जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार आरोपी मुकेश गुप्ता आईपीएस (निलंबित डीजी छग), जयदेव गुप्ता प्रधान ट्रस्टी मिकी मेमोरियल ट्रस्ट विधानसभा रोड तथा डा. श्रीमती दीपशिखा अग्रवाल ट्रस्टी मिकी मेमोरियल ट्रस्ट व डायरेक्टर एमजीएम आई इंस्टीट्यूट व अन्य के खिलाफ धारा 420 के तहत अपराध दर्ज किया गया है। मामले में डा. मिकी मेहता नेत्र रोग सर्जन एवं विशेषज्ञ की मृत्यु 07-09-2001 को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। डा. मिकी की मृत्यु पश्चात मुकेश गुप्ता द्वारा उनके नाम पर चेरिटेबल ट्रस्ट बनाने की कल्पना की गई और डा. मिकी की माता श्रीमती श्यामा मेहता नेहरू नगर भिलाई को ट्रस्ट का प्रमुख बनने कहा गया, जिस पर श्रीमती श्यामा मेहता ने साफ इंकार कर दिया।
ट्रस्ट पर एकाधिकार रखने पिता को बनाया ट्रस्ट का प्रमुख
14 जनवरी 2002 को मुकेश गुप्ता ने अपने पिता जयदेव गुप्ता व अपने परिचितों को शामिल करते हुए ट्रस्ट बनाया औरर अपने पिता को ट्रस्ट का प्रमुख बनाया। ट्रस्ट की डीड में यह अधिकार रखा गया कि ट्रस्ट का प्रमुख ही कानूनी रूप से नया उत्तराधिकारी बना सकता है, जबकि बोर्ड के अन्य सदस्य इसमें कोई दखल नहीं दे सकते। इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि पूरा ट्रस्ट मुकेश गुप्ता के एकाधिकार में ही रहे। ट्रस्ट के पंजीयन के बाद प्रधान ट्रस्टी द्वारा सार्वजनिक लोक न्यास अधिनियम 1951 के प्रावधानों का वर्षानुवर्ष खुला उल्लंघन करते हुए ट्रस्ट के ट्रस्टी परिवर्तन की सूचना आय-व्यय का लेखा जोखा, पंजीयक-शासन को न देकर अन्य आज्ञात्मक प्रावधानों का जानबूझकर खुला उल्लंघन किया गया ताकि ट्रस्ट के गोरखधंधे की जानकारी शासन से छिपी रहे। पंजीयक लोक न्यास द्वारा ट्रस्ट से दानदाताओं की सूची, आय के स्त्रोत, आय-व्यय की जानकारी मांगे जाने पर भी मिकी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया था।
शासन को लगाया 3 करोड़ का चूना
वर्ष 2004 में ट्रस्ट ने एमजीएम आई इंस्टीट्यूट का संचालन प्रारंभ कर दिया गया था। एमजीएम नेत्र संस्थाान भावन को एसबीआई बैरनबाजार में बंधक रखकर अस्पताल हेतु चिकित्सा उपकरण खरीदने के लिए 3 करोड़ रूपए का टर्न लोक तथा 10 लाख का कैश क्रेडिट लोन ट्रस्ट द्वारा लिया गया था। दिनांक 13-09-2004 को लोन लेने के उपरांत अल्प अवधि में अपै्रल 2005 में ट्रस्ट का लोन एकाउंट अनियमित हो गया थाा। लोन प्रक्रिया में मुकेश गुप्ता आईपीएस का बिना सिकी अधिकार के बैंक में हस्तक्षेप किया गया। प्रभावशील पुलिस अधिकारी व शासकीय सेवा में रहते हुए री गुप्ता द्वारा ट्रस्ट का लोन एकाउंट अनियमित एवं एनपीए होने पर दिनांक 13-9-2006 को कई बार बैंक के अधिकारियों को आश्वस्त कराते रहे कि ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी एवं लोन एकाउंट नियमित होकर कर्ज अदायगी हो जाएगी। परंतु बैंक को समय पर न तो किश्त मिला और न ही लोन जमा हुआ। इस बीच बैंक ने स्पष्ट किया कि यदि दिसंबर 2007 तक ऋण-ब्याज की अदायगी प्रारंभ नहीं हुई तो ट्रस्ट के विरुद्ध वसूली कार्यवाही प्रारंभ होगी।
बैंक में बनाया दबाव
इस बीच ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद ट्रस्ट ने राज्य शासन को प्रस्ताव दिया कि गरीब व आमजनों के साथ ही जरूरतमंदों को रियायती दर पर उचित व बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए एमजीएम आई इंस्टीट्यूट शासन का सहयोग करने तैयार है। यदि शासन आर्थिक सहयोग करे तो यह काम भी शुरू हो जाएगा, इससे शासकीय कर्मचारियों-अधिकारियों को भी लाभ मिलेगा। इसके बाद राज्य शासन ने आमजनों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ट्रस्ट को वर्ष 2006-07 में 2 करोड़ व वर्ष 2007-08 में एक करोड़ कुल 3 करोड़ रूपए एमजीएम को गरीबों के नि:शुल्क मोतियाबिंद ऑपरेशन, आमजन तथा शासकीय कर्मचारियों को विशिष्ट चिकित्सा सुविधा का लाभ तथा मेडिकल स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण देने हेतु सशर्त अनुबंध के तहत उपलब्ध कराया था। किंतु योजना के तहत इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर एवं मुकेश गुप्ता ने शासन से प्राप्त 3 करोड़ की राशि बैंक के कर्म पटाने के लिए किया गया। एक ओर तो शासन ने ट्रस्ट को आमजनों को विशिष्ट चिकित्सा सुविधा उलब्ध कराने के नाम पर अनुदान दिया तो वहीं दूसरी ओर मुकेश गुप्ता ने बैंक के अधिकारियों को पद का प्रभाव दिखाकर ट्रस्ट की संपत्ति को कुर्की की कार्यवाही को भी रूकवा दिया था। इस बीच 12 दिसंबर 2007 को श्री गुप्ता ने अपने पद व प्रभाव का उपयोग करते हुए बैंक कर्ज के प्रकरण को विशेष लोन सेटलमेंट की श्रेणी में लाकर बैक के 24 लाख रूपए शुद्ध घाटे में मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के लोन प्रकरण का समझौता के तहत निपटारा करा दिया। मुकेश गुप्ता के प्रभाव के कारण मिकी मेमोरियल ट्रस्ट को बैंक से 24 लाख रूपए का लाभ पहुंचाया तथा शासन से विश्वासघात करते हुए गरीबों के लिए प्राप्त अनुदान का उपयोग ट्रस्ट के कर्ज चुकान के लिए किया गया। ट्रस्ट का प्रमुख जयदेव गुप्ता केवल नाममात्र के थे, सारा काम मुकेश गुप्ता ही करते आ रहे थे। मानिक मेहनता द्वारका नई दिल्ली द्वारा प्रेषित शिकायत की जांच पर उपरोक्त तथ्य पाए जाने पर अब मुकेश गुप्ता व अन्य लोगों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यरो रायपुर ने सीधे-सीधे धोखाधड़ी का अपराध पंजीबद्ध किया गया है।