विशेष लेख… तारण प्रकाश सिन्हा की कलम से : कोई भी यहाँ अपनी भाषा में बात नहीं करना चाहता !

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मार्क तुलीं द्वारा अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् BBC पर उनका साक्षात्कार लिया गया , जिसमें उनसे प्रश्न किया गया कि आप भारतवर्ष से इतने समय तक जुड़े रहे , क्या अन्तर आया है ,स्वाधीनता प्राप्ति के बाद ? उनका उत्तर था अंग्रेज़ी राज समाप्त होने पर भी anglicised rule यहाँ विद्यमान है और कोई भी यहाँ अपनी भाषा में बात नहीं करना चाहता !
नेल्सन मंडेला का कथन है यदि किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात की जाए जो वह समझता है , तब वह उसके दिमाग़ में जाती है किंतु यदि उसकी अपनी भाषा में बात की जाए तब वह उसके दिल में जाती है ! विविधता से भरे हमारे देश में अनेक भाषाएँ हैं और सभी महत्वपूर्ण किंतु अनेकानेक भाषाओं के बावजूद आज भी इंग्लिश ही किसी व्यक्ति के बुद्धिमान और जानकार होने का पैमाना है ! भारतीय भाषाएँ हिंदी , तेलगु , तमिल आदि सभी साहित्यिक रूप से समृद्ध और सम्पन्न हैं लेकिन अफ़सोस है कि अभी भी अंग्रेज़ी का राज है ! कहते हैं ना अंग्रेज़ चले गए अंग्रेज़ी छोड़ गए ! यहाँ कहने का आशय बिलकुल भी यह नहीं कि अंग्रेज़ी ख़राब भाषा है , इंग्लिश का अपना अंतरराष्ट्रीय महत्व है और इंग्लिश भी आवश्यक है , लेकिन इंग्लिश के कारण भारतीय भाषाओं की उपेक्षा भी उचित नहीं ! अनेक बार व्यक्ति कि पृष्ठभूमि भी उसकी भाषा पर पकड़ विनिश्चित करती है ! आज के तकनीकी युग में बड़ी आसानी से एक भाषा से दूसरे में अनुवाद किया जा सकता है , प्रश्न सिर्फ़ महत्व का है ! फ़्रेंच , जर्मन लोग अपनी भाषा में ही बात करते हैं इंग्लिश में नहीं !

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