23 जुलाई को देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन ।

0
23 जुलाई को मजदूर-किसानों का देशव्यापी आंदोलन, किसान सभा का थीम नारा : हम देश नहीं बिकने देंगे
कोरोना संकट की आड़ में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आम जनता के जनवादी अधिकारों और खास तौर से मजदूरों और किसानों के अधिकारों पर बड़े पैमाने पर और निर्ममतापूर्वक हमले किये जाने के खिलाफ 23 जुलाई को देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन का आह्वान किया गया है। छत्तीसगढ़ में सीटू, किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा के कार्यकर्ता गांवों, मजदूर बस्तियों और खदान-कारखानों में प्रदर्शन आयोजित करेंगे। इस आंदोलन के लिए किसान सभा ने “देश नहीं बिकने देंगे” को अपना थीम नारा बनाया है। यह जानकारी छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने दी।
आज यहां जारी एक बयान में उन्होंने बताया कि यह आंदोलन मुख्यतः जिन मांगों पर केंद्रित है, उनमें आगामी छह माह तक हर व्यक्ति को हर माह 10 किलो अनाज मुफ्त देने और आयकर के दायरे के बाहर के हर परिवार को हर माह 7500 रुपये नगद सहायता राशि देने, मनरेगा में मजदूरों को 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने और शहरी गरीबों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना चलाने, हाल ही में जारी कृषि विरोधी तीन अध्यादेश वापस लेने और श्रम कानूनों में किये गए मजदूर विरोधी प्रावधान और कार्यकारी आदेश वापस लेने, कोयला और रेल जैसे सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने, किसानों की फसल का समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना तय करने, उन्हें कर्जमुक्त करने और वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों को वन भूमि के व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टे देने तथा पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का फैसला करने का अधिकार स्थानीय समुदायों को दिए जाने की मांगें शामिल हैं
किसान सभा नेताओं ने कहा कि हाल ही में जारी कृषि संबंधी तीन अध्यादेश खेती-किसानी को बर्बाद करने वाले, किसानों को कार्पोरेटों का गुलाम बनाने वाले तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को ध्वस्त करने वाले अध्यादेश हैं, जिन्हें तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन अध्यादेशों के जरिये न केवल राज्यों के अधिकार छीन लिए गए हैं, बल्कि कृषि बाजार को नियंत्रित करने वाले मंडी कानून में भी बदलाव किए हैं। इसने कृषि व्यापार करने वाली बड़ी कंपनियों तथा बड़े आढ़तियों के लिए किसानों की लूट का रास्ता साफ़ कर दिया है। इससे मंडियों में काम करने वाले लाखों मजदूर भी बेरोजगार हो जाएंगे। इस तरह न केवल खाद्यान्न तथा कृषि उपज खरीदी से सरकार ने अपने हाथ खींच लिए हैं, बल्कि उसने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बची-खुची संभावनाएं भी चौपट कर दी हैं।
इसी तरह ठेका खेती की देश मे इजाजत दिए जाने से किसानों के पुश्तैनी अधिकार छीन जाने का खतरा पैदा हो गया है। अब कॉर्पोरेट कंपनियां अपनी व्यापारिक जरूरतों के अनुसार किसानों को अपनी मर्ज़ी से खेती करने को बाध्य करेंगी। इससे छोटे किसान खेती-किसानी से बाहर हो जाएंगे और भूमिहीनता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम को समाप्त कर सारे प्रतिबंध उठाने का नतीजा तेजी से बढ़ती महंगाई, जमाखोरी, कालाबाजारी और खाद्यान्न असुरक्षा के रूप में देश को भुगतना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में एनडीए की केंद्र सरकार का कुप्रबंधन सामने आ चुका है। प्रवासी मज़दूरों का अभूतपूर्व संकट सभी मोर्चों पर वर्तमान केंद्र सरकार की असफलता का एक उदाहरण भर है। केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण संबंधी क़ानूनों और बिजली क़ानून में किए गए बदलाव तथा कोयला खनन को वाणिज्यिक उपयोग के लिए खोल दिये जाने जैसे कदमों के गंभीर परिणामों को देश के मज़दूर, किसान, आदिवासी और अन्य उपेक्षित समुदाय झेलने के लिए विवश होंगे। कोयले के निजी आबंटन के साथ-साथ ग्राम सभा के अधिकारों की पूरी नज़रअंदाजी से देश में और विस्थापन बढ़ेगा, स्वास्थ्य पर गहरा असर होगा और पर्यावरण और जंगलों की क्षति भी होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहरों को चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है।
उन्होंने कहा कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम पर श्रम क़ानूनों में जो मजदूर विरोधी बदलाव किए जा रहे हैं, उसका सीधा फायदा उद्योगपति-पूंजीपति वर्ग को ही मिलेगा। इन बदलावों में काम के घंटे 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करना भी शामिल है। देश की सभी ट्रेड यूनियनें इसका लंबे समय से विरोध कर रही हैं।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि कोरोना संकट से लड़ने के लिए देश की जनता को वास्तविक राहत देने के बजाय मोदी सरकार उनके अधिकारों पर हमले ही कर रही है। इसलिए देश के गरीबों को आर्थिक राहत देने और उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर किसान सभा 23 जुलाई को गांवों और मजदूर बस्तियों में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित करने जा रही है। ये विरोध प्रदर्शन कोरोना प्रोटोकॉल और फिजिकल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखकर आयोजित किये जायेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *