मोदी सरकार के ‘विकास’ से शुरू हुआ चुनाव का मुद्दा अब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जा पहुंचा

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नई दिल्ली — लोकसभा चुनाव 2019 की प्रक्रिया के शुरू होने के समय भाजपा ने केंद्र सरकार की योजनाओं की सफलताएं गिनाईं थी। भाजपा का दावा था कि वह केवल केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों के भरोसे सत्ता में वापसी करने में सफल रहेगी। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ रहा है, मुद्दों में ‘हिंदुत्व’ और ‘राष्ट्रवाद’ का मुद्दा गहराने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरूण जेटली ने एक साथ पहले हिंदुत्व को मुद्दा बनाया और कांग्रेस को ‘हिंदू आतंकवाद’ का जनक बताया तो अब उसने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री बताने लगे हैं कि राहुल गांधी ने वायनाड की सीट से चुनाव इसलिए लड़ रहे हैं क्योंकि वह मुस्लिम बहुल है और बहुसंख्यक यहां अल्पसंख्यक हैं। अब तक यह साफ हो गया है कि मध्य चुनाव में कुछ मुद्दे भले ही अलग उठें, लेकिन आम चुनाव एक बार फिर जनता के मूल मुद्दों की बजाय धार्मिक मुद्दों पर लड़ा जाएगा।
मुद्दों के इस बदलाव पर भाजपा थिंक टैंक के प्रमुख नेता विनय सहस्रबुद्धे कहते हैं कि गांधी परिवार के अलावा इस देश में आठ प्रधानमंत्री हुए हैं। इनमें नरेंद्र मोदी की सरकार पहली ऐसी सरकार है जो अपने काम के प्रदर्शन पर जनता के बीच जाना चाहती थी। हमने चुनावी रणनीति की शुरुआत उसी तरह से की थी और यह हमारे कार्यक्रमों में लगातार दिखाई भी पड़ रहा था। लेकिन इसी बीच अदालत समझौता ब्लास्ट के आरोपियों को दोषमुक्त कर देती है।
सहस्रबुद्धे कहते हैं कि इससे स्वाभाविक तौर पर यह सवाल तो उठना ही था कि जिन्होंने हिंदू आतंकवाद शब्द स्थापित करने की कोशिश की थी, उनकी मंशा क्या थी। सहस्रबुद्धे के मुताबिक मध्यप्रदेश चुनाव में भी कांग्रेस ने ‘राम वन गमन पथ’ का मुद्दा उठाया था जबकि हम काम के आधार पर चुनाव लड़ना चाहते थे। सहस्रबुद्धे का आरोप है कि चुनाव में धार्मिक मुद्दे भाजपा नहीं, बल्कि कांग्रेस उठा रही है।
अगर सरकार को अपनी योजनाओं पर इतना ही भरोसा था तो अब राष्ट्रवाद का मुद्दा क्यों उठा रही है, इस सवाल पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार ने अमर उजाला से कहा कि अगर कांग्रेस देशद्रोह कानून खत्म करने की बात करती है तो भाजपा की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसका जवाब दे। जनता को यह बताए कि अगर इस तरह के कानून खत्म कर दिए जाते हैं तो देश पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
इंद्रेश कुमार ने इस बात से इनकार किया कि भाजपा सांप्रदायिक आधार पर चुनाव लड़ना चाहती है। उनके मुताबिक सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की नीति अपनाई और उसी के मुताबिक काम किया। विपक्ष को भी चाहिए कि वह सकारात्मक राजनीति करे।

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