9 अगस्त को देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन में प्रदेश के 25 किसान संगठन भी करेंगे हिस्सेदारी, प्रदर्शनों और सत्याग्रह के जरिये कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों का होगा विरोध, प्रधानमंत्री को सौपेंगे ज्ञापन।

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति
भूमि अधिकार आंदोलन

 

 

“ये देश बिकाऊ नहीं है, कॉर्पोरेट भगाओ – किसानी बचाओ और कर्ज नहीं, कैश दो” के नारों के साथ 9 अगस्त को प्रदेश के 25 किसान संगठन आंदोलन करेंगे। यह आंदोलन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन के आह्वान पर आयोजित किया जा रहा है। इस दिन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी आंदोलन करेंगे। मजदूर-किसानों के इस आंदोलन को प्रदेश की पांच वामपंथी पार्टियों ने भी समर्थन देने की घोषणा की है।

किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े विजय भाई और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस दिन इस देशव्यापी आंदोलन में शामिल सैंकड़ों किसान संगठनों का ज्ञापन भी प्रधानमंत्री को सौंपा जाएगा। ये ज्ञापन समन्वय समिति के दिल्ली कार्यालय में पहुंच चुके हैं। इन ज्ञापनों के जरिये इस देश के किसानों की मांगों को केंद्र सरकार के समक्ष रखा जाएगा, जिसमें मुख्य रूप से कोरोना संकट के दौरान देश के गरीबों को खाद्यान्न और नगद देने के जरिये राहत देने, हाल ही में जारी किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को वापस लेने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण और राष्ट्रीय परिसंपत्तियों को कार्पोरेटों को सौंपने की मुहिम पर रोक लगाने, सी-2 लागत के आधार पर किसानों को समर्थन मूल्य देने और उन पर चढ़े सभी कर्ज माफ करने, आदिवासी समुदायों को जल-जंगल-जमीन-खनिज पर हक़ देने और विकास के नाम पर उन्हें विस्थापित करना बंद करने, मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये मजदूरी देने, लॉक डाउन के कारण खेती-किसानी और आजीविका को हुए नुकसान की भरपाई करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सार्वभौमिक बनाने और सभी लोगों का कोरोना टेस्ट किये जाने आदि मांगें प्रमुख हैं।

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), किसान महापंचायत, आंचलिक किसान सभा, सरिया, परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी आदि संगठन प्रमुख हैं।

इन सभी संगठनों का मानना है कि अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में किये गए परिवर्तन किसान विरोधी है, क्योंकि इससे फसल के दाम घट जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। इन सभी किसान संगठनों का आरोप हैं कि कोरोना संकट की आड़ में मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के जरिये देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रही है, ठेका खेती की इजाजत देकर और कृषि व्यापार में लगे प्रतिबंधों को खत्म करके देश की खाद्य और बीज सुरक्षा और खेती-किसानी को तहस-नहस कर रही है। ये सभी किसान संगठन “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इतने बड़े देश में एक बाजार की कल्पना करना वास्तव में किसानों के हितों से खिलवाड़ करना और कॉरपोरेटों के हितों को पूरा करना है।

विजय भाई और पराते ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार भी केंद्र की तरह ही कोरोना महामारी और इसके अर्थव्यवस्था में पड़ रहे दुष्प्रभाव से निपटने में गंभीर नहीं है। साढ़े तीन लाख कोरोना टेस्ट में 11000 से ज्यादा लोगों का संक्रमित पाया जाना दिखाता है कि प्रदेश में कम-से-कम 7-8 लाख लोग संक्रमित होंगे, लेकिन वे स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच से दूर है। प्रवासी मजदूरों और ग्रामीणों को मुफ्त राशन तक नहीं मिल रहा है। बोधघाट और कोयला खदानों के निजीकरण के द्वारा आदिवासियों के बड़े पैमाने पर विस्थापन की योजना को अमल में लाया जा रहा है, जबकि वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को क्रियान्वित नहीं किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को ऐसी नीतियों को लागू करने की जरूरत है, जिससे लोगों के हाथों में खरीदने की ताकत आये, ताकि बाजार में मांग पैदा हो। इसके लिए सार्वजनिक कल्याण के कामों में सरकार को पैसे लगाने होंगे। तभी हमारे देश की अर्थव्यवस्था मंदी से निकल सकती है। देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन की मांगें इसी समस्या को केंद्र में रखकर सूत्रबद्ध की गई है। भाजपा-कांग्रेस की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता को राहत देने का यह वैकल्पिक कार्यक्रम है। इसके साथ ही 9 अगस्त का मजदूर-किसान आंदोलन देश के संघीय ढांचे और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समानता के मूल्यों को बचाने और एक समतापूर्ण समाज के निर्माण का भी संघर्ष है ।

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