एयर इंडिया, बीएसएनएल के बाद अब भारतीय डाक विभाग भी खस्‍ताहाल, 15000 करोड़ तक पहुंचा घाटा

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एयर इंडिया, बीएसएनएल के बाद अब भारतीय डाक विभाग का हाल भी खस्ताहाल हो चुका है। पिछले तीन साल में भारतीय डाक विभाग का राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है। वित्तिय वर्ष 2016 यह में 150 प्रतिशत बढ़कर 6,007 करोड़ तक पहुंच गया था। वहीं, वित्तिय वर्ष 2019 में यह घाटा बढ़कर 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। भारत संचार निगम लिमिटेड और एयर इंडिया को पीछे छोड़ते हुए यह सबसे ज्यादा नुकसान वाला सार्वजनिक उपक्रम बन गया है। वित्तिय वर्ष 2018 में बीएसएनएल 8,000 करोड़ के घाटे में था और एयर इंडिया 5,340 करोड़ के घाटे में, लेकिन डाक विभाग ने इन दोनों को पीछे छोड़ दिया है।सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों की तरह ही भारतीय डाक विभाग का सबसे ज्यादा पैसा कर्मचारियों के वेतन और भत्ते में जा रहा है, जो अब इसके इसके सलाना राजस्व का करीब 90 प्रतिशत पार कर चुका है। केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों की वजह से कर्मचारियों के वेतन में तेजी से वृद्धि हुई है।इंडिया पोस्ट का वेतन और भत्ते की लागत वित्त वर्ष 2019 (संशोधित अनुमान) में 16,620 करोड़ रुपये थी, वहीं, कुल राजस्व 18,000 करोड़ रुपये है। यदि पेंशन के रूप में दिए जाने वाले 9,782 करोड़ रुपये को भी जोड़ दिया जाए तो यह पिछले वित्त वर्ष में कुल 26,400 करोड़ हो जाता है। वास्तव में डाक विभाग ने वित्त वर्ष 2020 में 19,203 करोड़ रुपये के अनुमानित राजस्व के मुकाबले, वेतन/भत्ते और पेंशन पर खर्च क्रमश: 17,451 करोड़ रुपये और 10,271 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थिति बिगड़ रही है।सूत्रों के अनुसार, भारतीय डाक विभाग द्वारा अपने प्रदर्शन में सुधार लाने और राजस्व बढ़ाने का प्रयास सफल नहीं हो पाया। इसकी वजह उत्पाद लागत और कीमत में भारी अंतर के साथ-साथ पारंपरिक मेल सेवाओं के लिए सस्ता व तेज सेवाओं की उपलब्धता है। उत्पादों की कीमत बढ़ाने की जगह डाक विभाग को अपने 4.33 लाख कर्मचारी और 1.56 लाख मजबूत पोस्ट ऑफिस नेटवर्क की सहायता से ई-कामर्स तथा अन्य वैल्यू-ऐडेस सर्विस में विविधता लाने को कहा जा सकता है।घाटे की एक वजह यह भी है कि एक पोस्टकार्ड पर औसतन 12.15 रुपये का खर्च आता है और मिलते हैं सिर्फ 50 पैसे यानि 4 प्रतिशत। इसी तरह एक पार्सल पर सर्विस खर्च औसतन 89.23 पैसा आता है और मिलते हैं आधे। इसी तरह बुक पोस्ट, स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्रेशन इत्यादि में भी रिकवरी काफी कम होती है। उससे ज्यादा खर्च होता है।राजस्व की बात करें तो भारतीय डाक विभाग को नेशनल सेविंग स्कीम और सेविंग सर्टिफिकेट्स से सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है। वर्ष 2017 में पूरे राजस्व का 60 प्रतिशत यानि 11,511 करोड़ यहीं से प्राप्त हुआ था। अधिकारियों का कहना है कि देश के हर नुक्कड़ और चौराहे पर इसकी पहुंच को देखते हुए, यह ई-कॉमर्स ब्रांड जैसे अमेजन और फ्लिपकार्ट द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक पसंदीदा कैश-ऑन-डिलीवरी (सीओडी) चैनल हो सकता है। हालांकि, यह इस सेक्टर से बहुत अधिक व्यापार करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि इसके पास सामान को रखने की सुविधाओं की कमी जैसी समस्याएं हैं। विभाग ने दिसंबर 2013 में अक्टूबर 2017 तक अपनी शुरुआत के बाद से सीओडी के तहत लगभग 2,600 करोड़ रुपये जुटाए थे।

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