वन अधिकार मान्यता एक्ट से नागरिक बने अधिकार सम्पन्न : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
वन अधिकारों की मान्यता एक्ट पर परिचर्चा
रायपुर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में आज ‘‘अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006’’ एवं इसके संशोधित नियमों के क्रियान्वयन के संबंध में समीक्षा-परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस एक्ट के माध्यम से 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व वन क्षेत्रों में तीन पीढि़यों एवं 75 सालों से रहने वाले नागरिकों को लाभान्वित करने का प्रावधान है। जरूरत इस बात की है कि इन नियमों का भली-भॉति पालन हो और वन क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को उनका अधिकार मिल सके, वे समृद्ध बने और इससे छत्तीसगढ़ भी बेहतर बनें। उन्होंने इसके लिए अनुविभाग स्तर, जिला स्तर और राज्य स्तर पर कमेटी बनाकर लंबित प्रकरणों के निराकरण करने को कहा।
श्री बघेल ने कहा कि वन क्षेत्रों में नागरिक हजारों वर्षो से रह रहे हैं। उन्होंने अपना नाम पटवारी रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए संघर्ष नहीं किया। रिकार्ड में उनका नाम नहीं होना, अपराध नहीं है। सरकार ने उनकी भावना और समस्याओं को समझा है। उनके जायज अधिकार उन्हें मिलने चाहिए। उन्होंने इस कार्य को एक अभियान की तरह लेने की जरूरत है, लेकिन इस बात की भी सावधानी रखने की जरूरत है कि हड़बड़ी में रिकार्ड गलत न बन जाए, क्योकि गलत रिकार्ड को सुधारवाने में बरसों का समय लग जाता है। इस एक्ट के क्रियान्वयन के लिए राजस्व, वन एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को मिलजुल कर समन्वय से कार्य करने की जरूरत है, जिससे कानून का सहीं ढ़ंग से पालन हो।
मुख्यमंत्री ने पूर्व में अपनाये गए सामुदायिक दावों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैय्या को बदलने को कहा तथा यह भी कहा कि जंगल को बचाने का कार्य जंगल के लोग ही अच्छे से कर सकते हैं। अगर समुदाय द्वारा सामुदायिक दावा नहीं किया गया तो उसे अभी भी लिया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नागरिकों को लगना चाहिए कि यह सरकार हमारी है और इसके अधिकारी और कर्मचारी उनके सहयोगी और मार्गदर्शक है। ऐसा भाव अधिकारियों और कर्मचारियों के मन में भी होना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों के नागरिकों को उनका वास्तविक हक दिलाने के लिए स्वयं आगे बढ़ कर कार्य करने को कहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले भविष्य में जंगलों में अतिक्रमण नहीं हो, इसके लिए भी पूरी तरह से सावधानी बरतने की जरूरत है। अतिक्रमण से जंगल को बचाने में वन प्रबंधन समिति और ग्राम सभा सक्षम है और उन्हें अपनी अहम भूमिका निभाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस एक्ट के क्रियान्वयन में जहां वन एवं राजस्व विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है, वहीं आदिम जाति कल्याण विभाग नोडल विभाग है। उन्हें अपने दायित्वों का सक्रियतापूर्वक निर्वहन करने की जरूरत है।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह ने कहा कि वन अधिकार पत्र सरकार की घोषणा पत्र में शामिल है। इसका कड़ाई से पालन किया जाएगा। वन क्षेत्र में रहने वाले पात्र व्यक्तियों एवं समुदाय को वन अधिकार पत्र एवं सामुदायिक अधिकार पत्र दिए जाएगें। वन क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासी एवं गैर आदिवासी जंगल को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उसका बेहतर प्रबंधन करते हैं। वन क्षेत्र में खेती करने वालों को भी अधिकार मिलना चाहिए। वन अधिकार पत्र देने के लिए गठित समितियों को पुर्नजीवित किया जाएगा। अधिनियम के प्रावधान के तहत निर्धारित तिथि की एक दिन पहले का भी कब्जा है तो उसे अधिकार दिया जाएं। उन्होंने इस संबंध में जनजागरूकता बढ़ाने और स्थानीय भाषा में जानकारी दिए जाने की जरूरत है।
वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जो अधिकार पत्र दिए गए है, उसमें काबिज भूमि कम होने या कब्जा का स्थान परिवर्तित होने जैसी शिकायतों भी आती है इनका भी निराकरण होना चाहिए। वन विभाग वन अधिकार पत्र वितरण के बाद इसका प्रबंधन भी देखे।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने सुझाव दिया कि वन अधिकार मान्यता पत्र में जाति का उल्लेख किया जाए जिससें भविष्य में इसका उपयोग जाति प्रमाण पत्र बनाने में भी किया जा सकें। प्रसिद्ध समाज सेवी राजगोपाल ने वन क्षेत्रों में अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने वालों के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए इसे ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष में छत्तीसगढ़ की सरकार गरीबों और वनवासियों के कल्याण के बारे में समुचित कदम उठा रही है।
परिचर्चा में मुख्य सचिव सुनील कुजूर, अपर मुख्य सचिव सी.के. खेतान, अपर मुख्य सचिव के.डी.पी. राव, मुख्यमंत्री एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव गौरव द्विवेदी, मुख्यमंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी एवं प्रदीप शर्मा सहित महाराष्ट्र और ओडिशा राज्यों में वन अधिकार अधिनियम के क्षेत्र में कार्य करने वाले स्वयं सेवी संस्थाओं, राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारी, जिला कलेक्टर, वन एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के अधिकारी, वन समितियों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।