जुमलेबाज सरकार का भ्रामक अंतरिम बजट — कांग्रेस

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रायपर —  प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री और संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि यूनियन बजट 2019 पूरी तरह से मोदी सरकार की निराशा और हताशा को प्रमाणित करता है। वास्तविकता और जमीनी हकीकत से कोसो दूर है, जुमला और हवा हवाई दावे है। 
आज की सबसे बड़ी समस्या बरोजगारी और किसानों की बदहाल स्थिति है। फर्जी आकड़ो के भ्रमजाल में फंसाकर 2 करोड़ प्रतिवर्ष रोजगार प्रदान करने के अपने झूठे वादे को ढकने और युवाओं को भ्रमित करने का प्रयास है। जबकि सच्चाई यह है कि यू.एन के रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के बाद भी एक साल में लगभग 1 करोड़ 20 लाख रोजगार छीन लिये गये। किसानों की आय दुगनी करने के बाद भी भ्रामक है। नाबार्ड के रिपोर्ट के मुताबिक देश के लगभग 90 प्रतिशत किसान अपनी लागत मूल्य निकालने के स्थिति में नहीं, इनकी निगेटिव इनकम है। केन्द्र सरकार के ही कृषि एवं लागत मूल्य आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक धान की लागत मूल्य 1484 रू. प्रति क्विंटल दर्शाया गया है। उसके बाद डीजल और खाद की कीमतो में लगभग 24 प्रतिशत वृद्धि हुयी है। इस प्रकार समर्थन मूल्य 2500 रू. प्रति क्विंटल होना चाहिये जो कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार दे रही है। जबकि मोदी सरकार द्वारा धान का समर्थन मूल्य 1750 रू. मात्र है। अगर मोदी सरकार को किसानों की चिंता होती तो छत्तीसगढ़ सरकार की 2500 के समर्थन मूल्य को प्रोत्साहित करती। 
प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री और संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि छोटे किसानो को 6000 रू. प्रतिवर्ष की साहयता राशि की बात कही गयी है जो कि आवश्यकता से कम है, 500 रू. प्रतिमाह दे देने से अन्नदाता के प्रति सरकार के जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। यह आवश्यक है कि उनके उपज का सही दाम मिले। 70 वर्षो के इतिहास में किसान कभी इतना बदहाल नहीं रहा, जितना विगत साढ़े चार साल में मोदी सरकार में हुआ। किसानो के लिये जो साहयता राशि की बात कही गयी है, उसमें इनके आकड़ो के मुताबिक लाभार्थी लगभग 12 करोड़ किसान होंगे। जबकि देश की कुल जनसंख्या 125 करोड़ में से लगभग 55-60 प्रतिशत लगभग 70 करोड़ कृषक है। 
देश का युवा, देश का बरोजगार, मजदूर, किसान, निम्न और मध्यम वर्ग का यह सवाल है रोजगार और इनकम जनरेट करने के लिये बिना प्लांनिग के आयकर छूट की सीमा बढ़ाने का क्या औचित्य है? यूनियन बजट 2019 प्रस्तुत करने के पूर्व मोदी जी को 5 बार मौका मिला था, कि वो पूरे 12 महिने के लिये आम बजट प्रस्तुत करे। आम बजट 2018 तक छूट की सीमा ढाई लाख ही थी, जो यूपीए 2 के अंतिम बजट में माननीय वित्त मंत्री पी. चिदबंदरम ने प्रस्तुत की। पिछले 5 बजट में बेसिक एक्जमशन लिमिट में 1 रू. छूट भी नहीं दी। यह आम बजट न होकर भाजपा का घोषणापत्र अधिक प्रतित हो रहा है। मोदी सरकार की नाकामी को भ्रामक आकड़ो के माध्यम से छूपाने का प्रयास, 100 स्मार्ट सिटी का काम शुरू नहीं हुआ और अब डिजीटल गांव की बात, बूलेट ट्रेनो की हिरक चर्तुभुज परियोजना, कालाधन, मेक-इन इंडिया की सच्चाई आज देश की जनता के सामने है। 
जीएसटी से छोटे और मध्यम व्यापार चौपट हो चुके है। करो का 4-4 स्लैब (5,12,18 और 28 प्रतिशत) अव्यवहारिक है, वन नेशन वन टैक्स फेल हो चुका हैं, जीएसटी में 24 प्रतिशत की दर भारत के आलावा दुनिया में कहीं नहीं। सीमेंट जैसी वस्तु जो इन्फ्रास्टर्चर और आमजन के उपयोग की है, पर 28 प्रतिशत जीएसटी है। ऐसे और भी अनको संगतिया है। जिस पर बजट में को प्रावधान नहीं है। 
मोदी सरकार के अनुसार 8 लाख से प्रतिवर्ष से कम कमाने वाला गरीब, दूसरी ओर 5 लाख से अधिक इनकम पर 20 प्रतिशत कर की दर इनकी दोहरी नीति और विरोधाभाष को प्रमाणित करती हैं। 20 और 30 प्रतिशत का स्लैब यथावत है, उपर से 4 प्रतिशत शेष भी। 
राफेल के द्वारा वायुसेना की ताकत बढ़ाने की बात मोदी सरकार कर रही है, तो सवाल यह है कि 126 राफेल से वायुसेना की ताकत ज्यादा बढ़ती या 36 राफेल से इनकी कथनी और करनी में बड़ा फर्क है जिसे अब देश की जनता समझ चुकी है। 

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