पूर्व सांसद पी. आर. खूंटे ने कांग्रेस पार्टी से लिखित में दिया त्याग पत्र… कहा – बहुत जल्द ही मैं छत्तीसगढ़ की जनता के हित मे राजनीतिक फैसला लूंगा ।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा पत्र
रायपुर / रायपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद पी.आर. खुटे ने कांग्रेस पार्टी से लिखित त्याग पत्र में कहा है कि सन् 1947 से पहले आम जनता ने एक स्वप्न देखा था, वैदेशिक राजनैतिक गुलामी की मुक्ति के बाद गुलामी की सभी बेड़ियाँ हट जायेगी। दकियानुसी ढाँचे को समूल उखाड़ फेंककर एक नई व्यवस्था कायम होगी। जिसमें आदमी आदमी बराबर होगा। कोई पिस्सु वर्ग करोड़ो मेहनत कश जनता का खून चुसने वाला नहीं होगा। कोई ऐसा तबका नहीं होगा, जो अपनी विशेष आर्थिक व सामाजिक स्थिति के कारण सारे समाज पर अपने दबदबा व निरंकुश नियंत्रण रख सके। सबकी केवल बुनियादी आवश्यकता, रोजी-रोटी, कपड़ा और मकान आदि पूरी होगी, बल्कि आम जनजीवन के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सांस्कृतिक व आर्थिक विकास की भी सभी सहुलियते बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध होगी। 15 अगस्त 1947 को आजादी की औपचारिकता सत्ता हस्तांतरण करके पूरी की गई। अंग्रेज चले गये। अपनी सरकार बनी। अपना संविधान बना। समस्त जनता को गारंटी दी गई कि उसे सामाजिक, आर्थिक, व राजनैतिक सांस्कृति न्याय मिलेगा। बिचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को समान स्तर पर न्याय व विचार की गारंटी दी गई। भाईचारा बढ़ाने का दावा किया गया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय संविधान के खण्ड 04 में संविधान के निर्माताओं ने लिख दिया। जिसे राज्यों के लिए नीति निर्देशक तत्व के नाम पढ़ा जाता है। इसमें निर्देश है कि सरकारे क्या-क्या काम करेगी। मुख्य अनुच्छेद 38 और 39 को पढ़े :-
अनुच्छेद 38 (ए) राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनायेगा। राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनायेगा जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्रमाणित करें, भरसक प्रभावी रूप से स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि की प्रयास करेगा। संविधान सभा ने निर्णय लिया और इस अनुच्छेद में लिखा जनगण को सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक न्याय के लिए इस वर्तमान व्यवस्था को बदलनी होगी। सरकारों को निर्देश है व्यवस्था बदलो। लेकिन आज तक नहीं बदला गया। प्रश्न है क्यों नहीं बदला गया ? कौन दोषी है? अनुच्छेद 38 (बी) राज्य विशिष्ठितया आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यक्ति के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवस्थाओं में लगे हुये लोगों के समूह के बीच भी प्रतिष्ठा सुविधाएं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। सरकार की उदारीकरण की नीति व कार्य इस अनुच्छेद का खुला उल्लंघन है। यह अनुच्छेद आय की असमानता को कम करने को कहता है। सरकार की उदारीकरण की नीति आय की असमानता को बढ़ा रही है। प्रश्न है सरकारें संविधान विरोधी कार्य क्यों कर रही है? क्या संसद व राज्य सरकार दोषी नहीं है ? अनुच्छेद 39 (ए) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है। यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को न्युनतम नहीं पर्याप्त जीविका का साघन पाने का अधिकारी मानता है। सरकारें पर्याप्त को छोड़े न्युनतम भी जीविका का कोई साधन नहीं देवी । मकान के लिए जमीन नहीं है। झुग्गी बनाकर नारकीय जीवन जीने को बेबस किया जाता है।
उसे भी तोड़ दिया जाता है। खाना बदोश बना दिया जाता है। न्यायालय भी संवेदन हीन है। ऐसा क्यों हो रहा है ? इसी अनुच्छेद में आगे लिखा है कि कैसे पर्याप्त साधन दिये जा सकते है। पढ़े अनुच्छेद 39 (बी) सामुदाय के भौतिक साधनों का स्वामित्व व नियंत्रण इस प्रकार का बंटा हो जिसमें सामुहिक हित का सर्वोच्च रूप से साधन हो। संविधान का यह अनुच्छेद समुदाय यानी देश व राज्य की भौतिक संपदा, खनिज संपदा, जल-जंगल-जमीन, रुपया-पैसा, इत्यादि के नियंत्रण व स्वामित्व में बँटवारे की बात कहता है। जिसके पास आवश्यकता से ज्यादा घन है, उससे लेकर जिनके पास नहीं है, बॉटकर स्वामित्व दिया जावे। लेण्ड सिलिंग एक्ट और अर्बन सिलिंग एक्ट बना। लेण्ड सिलिंग एक्ट पर थोड़ा काम हुआ। अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को कुछ पट्टा मिला। फिर दोनों कानूनों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। करेंसी का बंटवारा क्यों नहीं किया गया ? कानून क्यों नहीं बनाया गया ? उत्पादन का मुख्य साधन आजकल करेंसी है। इस अनुच्छेद की आवश्यकता की अवहेलना क्यों हुई और अवहेलना जारी है ?
अनुच्छेद 39 (सी) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिसमें घन और उत्पादन साधनों का सर्व- साधारण के लिए अहितकर संकेन्द्रन न हो। संविधान ऐसी व्यवस्था बनाने की बात करता है जिसके अंदर कोई भी व्यक्ति एक सीमा से ज्यादा धन (करेंसी) उत्पादन साधनों (संपदा) को संचित न कर सकें। जनसंख्या और साधनों को देखकर सीमा निर्धारित करने का आदेश है। ताकि आम जनता को आर्थिक न्याय मिल सके। जीविका का साधन मिल सके। सरकारों ने इस अनुच्छेद की अवहेलना क्यों की और कर रही है ? कारण ढूंढना होगा। अनुच्छेद 39 (ई) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों के सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगार में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति से अनुकूल न हो। सरकारों ने इस निर्देश की भी अवहेलना की स्त्री और पुरुष कर्मकारों को आर्थिक व्यवस्था में विवशता में न्युनतम मजदूरी से कम में काम करना पड़ता है, क्योकि जिंदा रहना है। देश का 39 करोड़ असंगठित मजदूरों को किसी भी श्रम कानूनों का लाभ नहीं है। बंधुआ मजदूर की तरह काम करना पडता है। कुछ नौजवान काम न मिलने पर आतंकवादी, नक्सलवादी चंद पैसो पर बन जाते है। डकैती, चोरी, अपहरण, बलात्कार, फिरौती आदि असामाजिक कार्य में लग जाते है। नौजवान सुन्दर लड़कियों, काल गर्ल्स बनती है। भूख मिटाने के लिए बार डॉस करती है। देह व्यापार में लग जाती है। पढ़ी और अनपढ़ दोनों भूख की पीडा से बचने तथा अपने परिवार को बचाने के लिए इस तरह का कुन्सित कार्य में लग जाती है सुकुमार व नन्हे बच्चे गलत काम में लग जाते है। कचरो से कागज प्लास्टिक, लोहा चुनते है। बेचकर अपना भूख मिटाते है। करीब 9 करोड़ औरते देह व्यापार में जुडी व्यापार को बढ़ावा दिया है। देश का अस्सी प्रतिशत बच्चा पीड़ा व कुपोषण का शिकार है. शिक्षा से वंचित है। इस अनुच्छेद की अवहेलना क्यों की गई और की जा रही है ? इसके पीछे कारण क्या है ? ढूंढना होगा। बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातारवरण में स्वास्थ्य विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालकों को अल्पआयु के व्यक्तियों के शोषण तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग की रक्षा की जाएं। सरकारों ने इस क्षेत्र में भी मुश्तैदी से काम नहीं किया। पढ़ने की व्यवस्था नहीं की, आरक्षण के नाम पर झगड़ा पैदा किया, समाज को तोड़ा। जो पढ़ना चाहते है उसको पढ़ने की व्यवस्था क्यों नहीं? बचपन बचाने के लिए उनको समुचित सुविधा नहीं दी जाती क्यों ? पिछड़ा वर्ग उत्थान की ओर जाने की बजाय पतन की ओर जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज जिस उद्देश्य को लेकर बनाया गया था. 25 साल हो गया वह उद्देश्य पूरा होते हुये नहीं दिखाई दे रहा है। इसलिए कांग्रेस पार्टी से त्याग पत्र दे रहा हूँ। कृपया मेरा त्यागपत्र स्वीकार करने की कृपा करें।