एक अनोखा संस्थान जहाँ कैश काउंटर नहीं है..

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रायपुर — सिकल सेल संस्‍थान प्रदेश का एक मात्र सरकारी अस्‍पताल है जहां किसी भी प्रकार का कैश काउंटर नहीं है। यहां रोगियों की पहचान कर, मरीज को ईलाज के लिए नवीनतम तथा आधुनिक सुविधा पूरी तरह से निशुल्‍क प्रदान की जाती है।
रायपुर स्थित सिकल सेल संस्‍थान में छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के अलावा महाराष्‍ट, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मध्‍य प्रदेश और झारखंड से भी मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। प्रतिदिन ओपीडी में लगभग 150 मरीज पहुंचते हैं, इसमें 25 प्रतिशत मरीज पडोसी राज्‍यों के यहां इलाज कराने आते हैं ।
सिकल सेल संस्‍थान छत्‍तीसगढ के डायरेक्‍टर जनरल डॉ. अरविंद नेरल ने बताया, सिकल सेल को रोकने के लिए हर व्‍यक्ति की खून जांच जरुरी है। इसके लिए स्‍कूलों में बच्‍चों का सिकल सेकल की जांच भी करायी जा रही है। गर्भवती महिलाओं की भी सरकारी अस्‍पतालों में सिकल सेल की जांच कराई जाती है। डॉ. नेरल ने बताया, प्रदेश के सभी पांचों मेडिकल कॉलेजों में सिकल सेल संस्‍थान ने इलाज व परामर्श केंद्र खोले गए हैं। वहीं सभी जिला एवं सामुदायिक अस्‍पतलों में भी सिकल सेल के मरीजों की पहचान की जाती है।
संस्‍थान में प्रदेश और अन्‍य राज्‍यों से आने वाले मरीजों का निशुल्‍क जांच और इलाज की सुविधाएं मिलती है। इसके अलावा मरीज और साथ आने वाले परिजनों को आने जाने के लिए रेलवे के यात्रा के टिकट में 50 फिसदी की छूट की सुविधाएं भी दी जाती है।


सिकल सेल संस्‍थान के वैज्ञानिक डॉ ह्रषीकेश मिश्रा ने बताया प्रदेश में 10 फीसदी आबादी सिकलसेल बीमारी के वाहक यानी कैरियर है। वहीं अब तक हुई स्क्रीनिंग में 2.25 लाख लोगों से ज्यादा सिकलसेल होने की पुष्टि हुई है। छत्तीसगढ़ की आबादी 2.55 करोड़ है। एक अनुमान के अनुसार 25 लाख लोग सिकल सेल वाहक हो सकते हैं जबकि प्रदेश में 2.50 लाख लोग यानी एक प्रतिशत रोगियोंको इलाज की जरुरत होती है। उन्‍होंने बताया छत्‍तीसगढ को सिकल सेल से मुक्‍त करने व्‍यापक स्‍तर पर कार्य योजना बनाई जा रही है। संस्‍थान के नए परिसर में अलग से अस्‍पताल भी प्रस्‍तावित है। सिकल सेल को लेकर लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुवांशिक बीमारी है और मरीजों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। हालांकि पहले की तुलना में लोगों में जागरुकता बढ़ी है और युवा शादी के पहले कुंडली मिलाने के बजाय सिकल सेल जांच करवा रहे हैं।लोगों को जागरुक करने के लिए सिकल सेल के वाहक और रोगी को नार्मल युवक या युवती से ही शादी करनी चाहिए ।
पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में बायो केमेस्ट्री विभाग के अनुसार 10 जिलों में स्क्रीनिंग का काम पूरा हो चुका है। यह बीमारी जाति विशेष के लोगों में है। कैरियर को किसी इलाज की जरूरत नहीं है। मेडिकल कॉलेज में सिकलसेल का समुचित इलाज किया जा रहा है। यहां ओपीडी से लेकर भर्ती करने की व्यवस्था है। बायो केमेस्ट्री विभाग में स्टेमसेल लैब भी है।
वैज्ञानिक डॉ. ह्रषीकेश मिश्रा ने बताया, सिकल सेल के इलाज की सुविधाओं में विस्‍तार के लिए रायपुर संस्‍थान में उच्‍च स्‍तरीय रिसर्च भी किया जा रहा है। भारत सरकार की संस्‍था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा सहयोग प्राप्‍त है। विश्‍व के विभिन्‍न देशों में अलग-अलग प्रकार की दवाईयां सिकल रोग के लिए असरकारक होता है। प्रदेश में सिकल सेल के मरीजों को नियमित रूप से खून चढ़ाने की आवश्यकता को कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा वैकल्पिक दवा देने की व्यवस्था शुरू की है। इस लाइलाज बीमारी से ग्रसित मरीजों को जीवित रहने के लिए नियमित रूप से ब्लड चढ़ाने की आवश्यकता होती है, लेकिन नई दवा के इस्तेमाल के बाद मरीजों को ब्लड चढ़ाने की नियमित आवश्यकता की जरूरत नहीं पड़ती है।इसके अलवा सिकल सेल के इलाज के लिए नए दवाईयां बनाने के लिए भी रिसर्च किया जा रहा है।

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