भूपेश बघेल सरकार ने पहले ही ले लिया है परंपरागत रूप से जंगलों में रहने वालो के साथ हुये अन्याय के कारण वन अधिकार पट्टों की समीक्षा का फैसला….

0

 

राहुल गांधी द्वारा वनअधिकार पट्टों के मामले में न्यायालय में जंगल में परंपरागत रूप से रहने वालों के पक्ष को रखने के निर्देश का आदिवासी नेताओं ने किया स्वागत…..

 

 

 

रायपुर — कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा वन अधिकार पट्टा के मामले में सभी कांग्रेस मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे जाने का स्वागत करते हुए आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि एससी, एसटी एट्रोसिटी एक्ट की ही तरह वन अधिकार पट्टों के मामले में परंपरागत रूप से जंगलों में रह रहे लोगों के मामले में मोदी सरकार ने अपने उद्योग समर्थक और गरीब विरोधी चरित्र को उजागर किया। भाजपा की केंद्र सरकार ने लगातार समाज के सभी वर्गों को नुकसान पहुंचाने का काम किया है और अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोग तो खासकर भाजपा के निशाने पर हैं।

आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि रमन सरकार की मनमानी के कारण बड़े पैमाने पर दावे निरस्त हुए और जो कानून पट्टे देने के लिए बनाया गया था उसी कानून का उपयोग जंगल में रहने वालों को पट्टों से वंचित करने के लिए किया गया।

छत्तीसगढ़ में जो बड़े पैमाने पर वन अधिकार पट्टों का रिजेक्शन हुआ है उसके पीछे प्रशासनिक लापरवाही और राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी। वन अधिकार कानून का सही पालन छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने नहीं किया था। इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनते ही इस अन्याय को समाप्त करने के लिए इस पूरी प्रक्रिया की समीक्षा का निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पहले ही लिया जा चुका है। 22 जनवरी को ही छत्तीसगढ़ सरकार ने आदेश जारी करके यह निर्णय ले लिया था। सभी निरस्त वन अधिकार दावों को प्रक्रियाहीन मानते हुए उस पर पुनर्विचार का निर्णय और जिन्हें का गलत और औपचारिकताओं को ना देकर रमन सिंह की भाजपा सरकार ने आवेदन ही नहीं करने दिया गया उन्हें भी आवेदन करने देने का निर्णय छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने लिया है।

आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि वन अधिकारों के इस महत्वपूर्ण मामले में यूपीए सरकार ने जंगल में रहने वालों के अधिकारों को मान्यता दी और सर्वोच्च न्यायालय में मजबूत तरीके से जंगल में रहने वालों के अधिकारों के पक्ष को रखा लेकिन वर्तमान मोदी सरकार सर्वोच्च न्यायालय में जंगल में रहने वालों के पक्ष में कोई बात नहीं की मूकदर्शक बनकर मोदी सरकार देखती रही। इससे स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार पूरी तरीके से जंगल में रहने वालों के अधिकारों के खिलाफ है और मोदी सरकार नहीं चाहती है कि ऐतिहासिक अन्याय को खत्म करने वाले इस महत्वपूर्ण वन अधिकार कानून के तहत जंगल में रहने वालों के वन अधिकारियों को मान्यता दी जाए और उनको न्याय मिले। इस मामले में न्यायालय में अगली पेशी में छत्तीसगढ़ की परिस्थितियों को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा और छत्तीसगढ़ जैसी परिस्थिति देश के जिन अन्य राज्यों में हैं उनके लिए भी यही आग्रह और निवेदन छत्तीसगढ़ की सरकार न्यायालय से करेगी।

वन अधिकार पट्टा के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थिति को विशेष स्थिति करार देते हुए आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि 22 जनवरी से छत्तीसगढ़ में वनाधिकार पट्टों के निरस्तीकरण और आवेदन नहीं किए जाने को लेकर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने प्रक्रिया आरंभ कर दी है। 22 जनवरी को छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव का इस संबंध में आदेश जारी हो गया है। 23 जनवरी को राज्य शासन के अधिकारियों, वन विभाग के अधिकारियों और वन अधिकार का आवेदन करने वालों के प्रतिनिधि जन संगठनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने की है और इस बैठक में पूरी समीक्षा की प्रक्रिया में सभी पक्षों की भूमिका और सहभागिता तय की जा चुकी है और यह समीक्षा का काम शुरू हो चुका है।

22 जनवरी को मुख्य सचिव के द्वारा वन अधिकार पत्र के प्रकरणों की समीक्षा के आदेश जारी होने के बाद 23 जनवरी को इस विषय में कुछ स्तरीय बैठक स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में संपन्न हो चुकी है जिसमें समीक्षा की पूरी कार्यवाही की प्रक्रिया पर विचार किया गया और इस आशय के निर्देश वन विभाग के अमले को दिए जा चुके हैं और यह प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में आरंभ भी हो चुकी है।

आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि जंगल में सैकड़ों हजारों सालों से परंपरागत रूप से रहने वाले लोगों ने ही जंगलों की रक्षा की जंगलों को बचाए रखा है और यह लोग जंगलों के साथ रहते रहे हैं। इस आशय के निर्देश आदिवासी, वन और राजस्व विभाग के सभी सक्षम अधिकारियों को दिये जा चुके हैं। संबंधित विभागों द्वारा ज़मीनी स्तर पर यह कार्यवाहियाँ प्रारंभ हो चुकी है।

आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और विधायक कांकेर शिशुपाल सोरी ने कहा है कि राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर भी उद्योगों के लिए दी गयी वन भूमि और जंगलों में रहने वालों के लिए दी गई और चाही जा रही वन भूमि के आंकड़ों को देख ले तो स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है। भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा फ़रवरी 2019 को लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार विगत 4 वर्षों में विभिन्न परियोजनाओं के लिये लगभग 50 हज़ार हेक्टेयर वन भूमि का अभिग्रहण किया गया जिनमें से अधिकांश जगहों पर आदिवासियों के वनाधिकार के दावों को दरकिनार किया गया। छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा 3793 हेक्टेयर वनभूमि इन्ही तथाकथित विकास परियोजनाओं के लिये दी गयी किन्तु इन भूमियों पर अधिकांश आदिवासियों के दावों को खारिज़ कर दिया गया।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed