पत्रकार वार्ता में बृंदा ने कहा — होम मिनिस्टर नहीं, हेट मिनिस्टर हैं अमित शाह

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कोरबा , 18 फरवरी 2020 — नागरिकता कानून में पहली बार धर्म की शर्त जोड़ी गई है, जो हमारे देश के संविधान की बुनियादी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर ही हमला है। इसके खिलाफ पूरा देश आंदोलित और उद्वेलित है। एनपीआर और एनआरसी के साथ मिलकर यह कानून जो रसायन बनाता है, वह देश की एकता-अखंडता को ही नष्ट करने वाला है और इसकी चपेट में गरीब आदिवासी, दलित, मजदूर सभी आने वाले हैं, जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सरकार द्वारा मांगे जा रहे माता-पिता के जन्म से संबंधित कागजात नहीं है। इस आंदोलन के खिलाफ स्वयं गृहमंत्री जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उससे साफ है कि वे *होम मिनिस्टर नहीं, बल्कि हेट मिनिस्टर* बनकर रह गए हैं।

उक्त बातें आज यहां कोरबा प्रेस क्लब में *प्रेस से मिलिए* कार्यक्रम में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कही। उन्होंने आरोप लगाया कि एनपीआर भारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला भी साबित होगा, क्योंकि सरकारी अमले को ही संदिग्ध नागरिकों की पहचान का जिम्मा दे दिया गया है और उन्हें जो भी नागरिक किसी भी कारण से पसंद न आये, उसे उसके नाम पर निशान लगाने का अधिकार देता है। ऐसा अधिकार इस देश के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है। निशान न लगाने के लिये यह अमला नागरिकों से घूस मांग सकता हैं। इस प्रकार एनपीआर एनआरसी की पहली सीढ़ी है।

उन्होंने बताया कि केरल की वाम-जनवादी मोर्चे की सरकार ने एनपीआर लागू न करने की घोषणा की है। अब यह आग छत्तीसगढ़ सहित देश के 12 राज्यों में फैल चुकी है। एनपीआर लागू करने का अधिकार राज्यों का है। देश की बहुमत जनता और अधिकांश राज्यों का इसके खिलाफ होने के बावजूद मोदी सरकार के इस पर अड़े रहने से स्पष्ट है कि यह सरकार देश के संघीय ढांचे की कोई इज्जत नहीं करती और तानाशाही व्यवस्था लादना चाहती है। माकपा नेता ने आशा व्यक्त की कि संविधान, प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर यकीन करने वाली बहुमत जनता मिलकर इस मुहिम को मात देगी और आरएसएस के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की परियोजना को धूल चटायेगी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी केरल की तर्ज़ पर प्रदेश में एनपीआर न करने का नोटिफिकेशन जारी करना चाहिए। मार्च माह में माकपा घर-घर जाकर अभियान चलाएगी कि आम जनता एनपीआर के सवालों का जवाब न दें।

देश के हालात पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश गंभीर आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। लोगों की क्रयशक्ति में भारी गिरावट आई है। बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण बढ़ गया है। ऐसे में अपेक्षा थी कि मोदी सरकार एक ऐसा बजट लाएगी, जो देश को इस संकट से निकाल सके। लेकिन हमने देखा कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाली योजना मनरेगा के बजट में ही 9500 करोड़ रुपयों की कटौती कर दी गई, जबकि पिछले साल 1000 करोड़ रुपयों की कटौती की गई थी। खाद्य सब्सिडी में 75532 करोड़ रुपयों की कटौती की गई है, जिसका सीधा असर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये देश के गरीबों को मिलने वाले खाद्यान्न पर पड़ेगा। वैसे ही हमारा देश भूख सूचकांक में 117 देशों में 102वें स्थान पर है, देश की आधी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकार है, इसमें और गिरावट आएगी। कृषि, सिंचाई और ग्रामीण विकास के बजट में कोई वृद्धि नहीं की गई है और किसानों की आय दुगुनी करने का दावा दूर का सपना है। खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल, बिजली आदि सभी चीजों की कीमतों में वृद्धि हुई है, लेकिन स्वामीनाथन आयोग की फसल की सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का वादा तो वह भूल ही चुकी है, जबकि भाजपा राज में ऋणग्रस्तता से तंग किसानों की आत्महत्या की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

माकपा नेता ने कहा कि बजट में कार्पोरेटों को टैक्स में लाखों करोड़ रुपयों की छूट दी गई है। यह तबका बैंक से लिये गए कर्ज़ों को चुकाने से इंकार कर रहा है और देश छोड़कर भाग रहा है। इनसे वसूली के बजाय पैसे की कमी का रोना रोते हुए एलआईसी, कोयला और इस्पात जैसे सार्वजनिक उद्योगों को बेचा जा रहा है। इस प्रकार यह बजट जनविरोधी है और जनता की किसी बुनियादी समस्या को हल नहीं करता। इस सरकार की कार्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ 8 जनवरी को करोड़ों मजदूरों और किसानों ने हड़ताल की है और यह संघर्ष आगे भी जारी रहेगा। संघर्ष की अगली कड़ी में वाम पार्टियां 23 मार्च को भगतसिंह की शहादत दिवस मनाएगी और आर्थिक शोषण से मुक्त एक समाजवादी समाज बनाने के उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेगी।

बृंदा करात ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार से आम जनता को बहुत अपेक्षा है। भाजपा ने 15 सालों के अपने राज में प्रदेश को बर्बादी के कगार पर धकेल दिया है और आम जनता के विरोध और असहमति व्यक्त करने के संविधानप्रदत्त अधिकार को भी छीन लिया था। इससे उबरने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये देने की घोषणा स्वागतयोग्य है। हम यह समझते है कि यह सरकार अब आदिवासियों को वनाधिकार देने, पांचवीं अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को लागू करने और समग्रता में जल, जंगल, जमीन और खनिज के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए तेजी से काम करेगी। नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को जो प्रताड़ित किया जा रहा है, उस पर रोक लगाएगी और उन पर थोपे गए फ़र्ज़ी मुकदमों को शीघ्र वापस लेगी। आदिवासियों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करना इस सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कोरबा में हमारी पार्टी के दो पार्षद विजयी हुए हैं। हमने आम जनता से वादा किया है कि दुख-दर्दों में पार्टी उनके साथ खड़ी रहेगी और निगम के अंदर और बाहर सड़कों पर संघर्ष करेगी। हमारी पार्टी गरीबों से संपत्ति कर वसूलने के खिलाफ है और कांग्रेस ने इसे माफ करने का सार्वजनिक रूप से वादा किया था। हमारी उनसे अपील है कि इस वादे पर अमल करें। हमारी पार्टी इस टैक्स वसूली के खिलाफ अभियान चला रही है और सरकार का रवैया सकारात्मक न रहा, तो एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित करेगी।

पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा इस देश की बहुलतावादी संस्कृति को कुचलना चाहती है, लेकिन उसके गोली मारो नारे का जवाब जनता ने अपने बैलट से दे दिया है। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों की आय में 8% और शहरी गरीबों की आय में 2% कई गिरावट आई है। देश की जीडीपी गिर रही है, लेकिन 1% लोगों के हाथों में 70% गरीबों के पास जितनी संपत्ति है, उसका चार गुना जमा हो गया है। इस आर्थिक असमानता को दूर करने की चिंता मोदी सरकार को नहीं है। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में राजनीति पर बढ़ रहे धन के प्रभाव और काले धन के लिए चुनावी बांड को जिम्मेदार ठहराया।

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