लॉक डाउन तो ठीक, लेकिन सोशल सिक्योरिटी के बिना सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं — माकपा
रायपुर , 25 मार्च 2020 — मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि कोरोना वायरस के विश्वव्यापी हमले और भारत में इसके फैलाव को देखते हुए लॉक डाउन तो ठीक है, लेकिन सोशल सिक्योरिटी के बिना सोशल डिस्टेंसिंग के उपायों पर प्रभावी अमल संभव नहीं है। पार्टी ने इसके लिए दूसरे देशों और केरल राज्य की तरह सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज की अपनी मांग को पुनः दोहराया है, ताकि आम जनता को राहत दी जा सके और उसे भुखमरी से बचाया जा सके।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मई के अंत तक भारत में 10 लाख से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने और 30,000 से ज्यादा मौतों की चेतावनी दी है। ऐसे में देश के समस्त संसाधनों को इस प्रकोप से लड़ने में लगाने की जरूरत है और ताली-थाली बजवाने के बाद यह आशा की जा रही थी कि प्रधानमंत्री स्वास्थ्य के क्षेत्र में तथा आम जनता को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए किसी बड़े राहत पैकेज की घोषणा करेंगे। लेकिन उन्होंने केवल गाल बजाने का ही काम किया है और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए मात्र 15 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो कि नितांत अपर्याप्त है, जबकि अकेले केरल सरकार ने वहां की जनता की देखभाल के लिए 20 हजार करोड़ का पैकेज घोषित किया है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि लॉक डाउन के अलावा इस महामारी से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, उस पर सरकार मौन है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का कहीं अता-पता नहीं है। अस्पतालों में चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों के लिए आवश्यक जीवन रक्षक सामग्रियों –मास्क और दस्तानों तथा कोरोना-प्रभावित मरीजों के लिए जांच किट — तक का अभाव है और निजी अस्पताल या तो ऐसे मरीजों की जांच से इंकार कर रहे हैं या फिर उन्हें लूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में सरकार को सभी प्राइवेट हॉस्पिटलों को इस महामारी के खत्म होने तक अपने हाथ में लेने की घोषणा करनी चाहिए या फिर इस महामारी का मुफ्त इलाज करने के लिए उन्हें बाध्य करना चाहिए।
माकपा नेता ने इस महामारी से निपटने को प्राथमिकता देने के बजाय राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भवन तथा संसद के निर्माण के लिए 20000 करोड़ रुपये आबंटित करने की भी तीखी आलोचना की है तथा कहा है कि वास्तव में आम जनता को इस महामारी और भूख दोनों से मरने के लिए छोड़ दिया गया है और यही इस सरकार के जनविरोधी चरित्र को प्रदर्शित करता है।
माकपा ने कहा है कि जनवरी अंत में पहला मामला सामने आने के बाद भी इससे निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए और ना ही विदेश से आने वाले लोगों की एयरपोर्ट पर सख्ती से जांच की गई, जिसका नतीजा आज हमारे सामने है। आसन्न संकट के बाद भी चिकित्सा सामग्री के निर्यात की इजाजत देकर कारपोरेट घरानों को मुनाफा पीटने का मौका दिया गया है और आज इन आवश्यक जीवन रक्षक सामग्रियों का ही हमारे देश में न केवल अभाव है, विदेशों से कई गुना कीमत पर हमें इनका आयात करना पड़ रहा है।
माकपा नेता ने सोशल डिस्टेंसिंग के उपायों पर अमल करने, स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और आम जनता को आर्थिक राहत देने के लिए 4 लाख करोड़ रुपयों के पैकेज की मांग की है, जो कि हमारे देश की जीडीपी का केवल 2% होता है।