पार्टी की मौजूदा हालात से आडवाणी नाखुश नजर आ रहे है….
नई दिल्ली — भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की इच्छा गांधी नगर से पहले पार्टी के मार्गदर्शक मंडल दल के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी का आशीर्वाद पाने की थी। पार्टी यह भी चाह रही थी कि आडवाणी लिखकर दें दे कि वह स्वेच्छा से चुनाव नहीं लडऩा चाहते। आडवाणी के करीबी सूत्रों के मुताबिक आडवाणी ने इसके लिए पार्टी के संगठन मंत्री रामलाल के आग्रह को ठुकरा दिया। इतना ही नहीं अमित शाह के नामांकन के लिए गांधीनगर जाने या उनसे मिलने में भी आडवाणी ने कोई रुचि नहीं दिखाई। बताते हैं आडवाणी को बहुत कुछ अच्छा नहीं लग रहा है और इसे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी महसूस कर रहा है।
आडवाणी से लंबे समय तक विश्वास के साथ मजबूती से जुड़े रहने वाले वरिष्ठ नेता का कहना है कि नामांकन से पहले आडवाणी के आशीर्वाद का अपना अर्थ है। भाजपा के रणनीतिकार चाहते थे कि अध्यक्ष अमित शाह के नामांकन के समय लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर में मौजूद रहें।
लेकिन जिस तरह से संगठन मंत्री राम लाल से शीर्ष नेतृत्व को संदेश मिला, उससे इस तरह की संभावना धूमिल हो गई है। इसी तरह की स्थिति कानपुर से 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतकर आए डॉ. मुरली मनोहर जोशी की भी है। हालांकि जोशी ने पार्टी के संगठन मंत्री से चुनाव न लड़ने की सूचना मिलने के बाद कानपुर के मतदाताओं के नाम एक पत्र लिख दिया था। वहीं आडवाणी ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
हो सकती है आडवाणी को मनाने की पहल
आडवाणी के करीबियों का मानना है कि जल्द ही उन्हें मनाने की पहल हो सकती है। इसके लिए प्रधानमंत्री स्वयं अपने राजनीतिक गुरू सरीखे आडवाणी के पास मिलने जा सकते हैं। वह अनुशासन और सिद्धांत की अनुपालना में पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने राजनीति में एक मानक भी बनाया और जैन हवाला डायरी नाम आने के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
बदलाव के पड़ाव पर भाजपा
शत्रुघ्न सिन्हा को तीसरी बार राज्यसभा देने के लिए पार्टी के शीर्ष स्तर पर किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन आडवाणी ने नई परंपरा नहीं शुरू होने दी। इसी के साथ लाल कृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच शानदार राजनीतिक रिश्ता रहा है। आडवाणी प्रधानमंत्री से सहृदय सद्भाव रखते हैं और कहा जाता है कि कभी प्रधानमंत्री मोदी उनकी छाया में काफी सुरक्षित रहे हैं।
क्या सब कुछ ठीक नहीं है?
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कुछ विसंगतियों का शिकार है तो 1980 में जनसंघ की विरासत पर खड़ी भाजपा भी बदलाव के पड़ाव पर है। भाजपा के दो संस्थापक सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया है। दोनों नेता राम मंदिर आंदोलन में शीर्ष भूमिका निभाने वाले रहे हैं। इसके बाद उमा भारती और विनय कटियार भी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं है।
लालकृष्ण आडवाणी भाजपा को पार्टी विद ए डिफरेंस का तमगा देते रहे हैं, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की एक बड़ी तादाद का मानना है कि 2014 के बाद से भाजपा लगातार बदल रही है। बताते हैं आडवाणी को इसका भी दु:ख है।