कोई देता संभाल, तो सहजता से कटता जीवन ।

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रायपुर,12 जुलाई 2020 —  राजधानी से 150 किमी दूर जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम मेंऊ के 35-वर्षीय युवक भगत बंजारे ने कुछ सप्ताह पहले आत्महत्या का प्रयास किया था। इसकी वजह लॉकडाउन में रोजगार छिन जाना और बेरोजगारी के हालत में आर्थिक समस्याएं थी। मुश्किलें इतनी बढ़ गयी कि मन में जीवन का अन्त करने का विचार आया और उसने कोशिश भी की। घर वालों की तत्परता से उसे अस्पताल ले जाया गया और उसकी जान बचाई गई।
मौत के दरवाजे से वापस लौटने के बाद भगत को एहसास हुआ कि जिंदगी बहुत कीमती है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाया जाना चाहिए। वह अब अपने इस प्रयास को ही गलत बता रहा है। अपने और परिवार के लिए जीवन में आने वाले संघर्षों को झेलने की हिम्मत उससे उसकी पत्नी ने दी।
लेकिन इसी ग्राम पंचायत में मानसिक रुप से बीमार एक 20 वर्षीय युवक ने जान दे दी। पामगढ़ थाना प्रभारी आर. एल. टोंडे ने बताया पुलिस को सूचना मिलने के बाद युवक दिनेश कुर्रे के शव को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया,  जहां पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया गया। पुलिस ने पंचनामा तैयार कर मौत का कारण मानिसक बीमारी दर्ज कर मर्ग कायम कर ली है।
पामगढ़ क्षेत्र में पिछले 1 जनवरी 2020 से 11 जुलाई तक कुल 50 लोगों ने मौत का रास्ता चुनते हुए जिदंगी को अलविदा कर दिया है। मौत के कारणों में डिप्रेशन और मानसिक बीमारी सबसे बड़ी वजह बनकर सामने आ रही है।
रायपुर जिला अस्पताल में स्थित स्पर्श क्लीनिक के मनोरोग चिकित्सक डॉ. अविनाश शुक्ला के अनुसार मानसिक अवसाद, तनाव यानी डिप्रेशन और सिजोफ्रेनिया रूपी विकृति की वजह से अकसर युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जाती है। इस तरह की समस्याएं नजर आने पर परिजनों को राष्ट्रीय मानिसक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जिला अस्पताल में संचालित स्पर्श क्लिनक में मनोचिकित्सक से इलाज कराया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं व मानसिक रोग से संबंधित जानकारी हेल्प लाइन नंबर-104 में डायल कर प्राप्त किए जा सकते हैं।
डॉ. शुक्ला ने बताया ऐसे परिवार जहां पिता मानसिक रुप से बीमार हो 6 प्रतिशत मामलों में और माता व पिता दोनों के मानसिक रोग से ग्रसित होने पर अनुवांशिक रुप से बच्चों में 25 प्रतिशत रोग होने की संभावना पायी जाती है। मनोचिकित्सक डॉ. शुक्ला के अनुसार इस तरह के मानिसक रोगों में इलाज काफी लंबा चलता है। लिहाजा मरीज दवाईयां खाना छोड़ देता है और लंबे समय तक इलाज चलने से परिजन भी हताश होने लगते हैं। मानसिक अवसाद के प्रति समाज का रैवया लापरवाही पूर्ण होने की वजह से ऐसे लोगों को इलाज का सहारा नहीं मिल पाता। जबकि दवाईयां लेने से मानसिक रोगी भी पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर आराम से जीवन बिता सकते हैं।
परिजनों में मृतक दिनेश के बड़े भाई अमित कुर्रे ने बताया परिवार हाल ही में लॉकडाउन के दौरान प्रयागराज से वापस गाँव लौटा था। अमित ने बताया उनके पिता भी लगभग 15 साल पूर्व मानसिक रोग की वजह से घर छोड़कर कहीं चले गए हैं। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी मां मनटोरा बाई और अमित संभाल रहे हैं। प्रयागराज उत्तर प्रदेश से वापस आने के बाद लॉकडाउन के दौरान तीन महीनों से दिनेश की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो रही थी। लॉकडाउन के चलते पास के गांव में झाड़फूंक भी करायी थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने ने बताया दिनेश का पिछले 2-3 सालों से मानिसक रोग का इलाज चल रहा था। वह अक्सर घर में शांत, गुमसुम और खामोश रहता था, किसी भी काम में उसका ज्यादा मन नहीं लगता था और किसी से ज्यादा बातचीत भी नहीं करता था। परिवार की आर्थिक स्थित ठीक नहीं होने पर ज्यादा पैसे भी खर्च नहीं कर सके। अमित को अफसोस है कि अगर उन्हें स्पर्श क्लीनिक में मानसिक रोग के निशुल्क इलाज के बारे में जानकारी मिला होता तो आज उसका भाई जिंदा होता।
कोरोना काल के दौरान मानसिक रोगों के आंकड़े पूरे देश में काफी बढ़ गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने भी अनुमान लगाया है मानसिक तनाव की वजह से मानसिक रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इसका कारण लोगों में कोरोना संक्रमण का भय, व्यवसाय छिनने का भय, एवं रोज़ी रोटी न मिलना है लेकिन मानसिक रोगियों को दवा और उपचार मिलना भी उनकी मानसिक स्थिति को और बिगाड़ सकता है। मानसिक रोग का सबसे ज्यादा जा असर महिलाओं, बच्चों, बुज़ुर्गों, दिव्यंगों और पहले से बीमार लोगों पर होगा। ऐसे व्यक्ति जो कोरोना संक्रमण को मात देकर घर लौटे हैं उन्हें भी अपनों से पूर्वाग्रह और अकेलेपन का डर मानसिक रोगों की ओर धकेल सकता है।
इंडियन जर्नल ऑफ़ साईंकीईटरी में लिखे एक लेख के अनुसार मानसिक रोगों की वजह से आत्महत्याओं का आंकड़ा भी बढ़ सकता है, खासकर ऐसे लोगों में जो मानसिक रोगों से पहले से ही ग्रसित है और जिन्हें समय से उपचार मिलने में परेशानी हो रही है। इस लेख में सरकार से अपील की गयी है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा जोर देना चाहिए।

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