“लौह अयस्क व पैलेट पर्याप्त” : स्पांज आयरन उत्पादकों के कारण पैलेट निर्माता परेशान निर्यात पर 30% शुल्क की मांग अनुचित ।

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लौह अयस्क व आयरन ओर पेलेट की कमी नहीं फिर भी पेलेट निर्यात पर 30 फीसदी शुल्क की मांग क्यों ?

सरकार को हो रहा भारी नुकसान, कभी खेल था ओडिशा व एनएमडीसी की आंखों में धूल झोंकने का, अब पेलेट उत्पादक भी निशाने पर

 

रायपुर, 22 जुलाई 2020 – छत्तीसगढ़ स्पांज आयरन मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आयरन ओर पेलेट निर्यात पर 30 फीसदी शुल्क लगाने की जो मांग की है, उसके आधार में ही बड़े दरार हैं। पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो साफ हो जाता है कि छत्तीसगढ़ में न तो लौह अयस्क की कमी है और न ही आयरन ओर पेलेट की बल्कि इसके पीछे कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों की कुश्ती कराकर बड़ा मुनाफा कमाने की कहानी छिपी हुई है।
जैसा कि ज्ञात है, छत्तीसगढ़ से जुड़ी कंपनियों की उत्पादन क्षमता अधिकतम 97 लाख टन प्रतिवर्ष है जबकि उनका वास्तविक उत्पादन लगभग 53.69 लाख टन प्रतिवर्ष है। इन कंपनियों को छत्तीसगढ़ औद्योगिक विकास निगम के माध्यम से राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) उचित दर पर लौह अयस्क उपलब्ध कराता है और साथ ही साथ कुछ उत्पादक आयरन ओर पेलेट की भी आपूर्ति करते हैं। विडंबना यह है कि स्थानीय स्पांज एवं स्टील मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां निर्धारित कच्चे माल का आधा हिस्सा भी नहीं उठा पाती हैं जिसका सीधा नुकसान उत्पादकों को होता है। उदाहरण के तौर पर 2019-20 का ही आंकड़ा लें। एनएमडीसी ने 54 लाख टन लौह अयस्क का उत्पादन किया लेकिन स्थानीय स्टील उद्धयोगों द्वारा खरीदारी सिर्फ 20.02 लाख टन की हुई। यानी लगभग 60 फीसदी कच्चे माल का भंडार खड़ा हो गया। 2019 की जुलाई-सितंबर तिमाही और 2020 की जनवरी-मार्च तिमाही तक भाओ अधिक होने की वजह से कच्चे माल की मंडी लगभग सूनी रही। इसी तरह 2012-13 में भी जब पेलेट उपलब्धता का विकल्प नहीं था तब 50 लाख आवंटन के बावजूद मात्र 23.6 लाख टन लौह अयस्क की खरीद ही हुई। यानी छत्तीसगढ़ के स्पांज आयरन व स्टील उत्पादकों के लिए कभी भी लौह अयस्क की कोई कमी नहीं रही।
आयरन ओर पेलेट उत्पादन की बात करें तो 2019-20 में रायपुर, दुर्ग और राजनंदगांव के प्लांटों से लगभग 55.30 लाख पेलेट का उत्पादन हुआ, जिनमें से मात्र 8.8 लाख टन का निर्यात हुआ और शेष घरेलू बाजार के लिए उपलब्ध कराया गया।
यहां सोचने की बात यह है कि 2019-20 में एनएमडीसी का 60 फीसदी माल क्यों नहीं उठाया गया और 16.03 फीसदी आयरन ओर पेलेट के निर्यात की क्यों आवश्यकता पड़ी ?
आंकड़ों की पड़ताल करने के बाद एक तथ्य यह निकलकर सामने आया कि छत्तीसगढ़ के स्पांज आयरन एवं स्टील निर्माता मुनाफे के गणित के खेल में माहिर हैं। वे भाव कम कराने के लिए तरह-तरह का दांव खेलते हैं और उसमें सफल भी हो जाते हैं। जब पेलेट का विकल्प नहीं था तब एनएमडीसी के भाव मनमाफिक स्तर पर लाने के लिए ये व्यवसायी ओडिशा के खदानों से कम कीमत पर सौदा करते थे और अपनी जरूरत की पूर्ति वहां से कर लेते थे। ओडिशा से आवक के दबाव में एनएमडीसी को भी भाव गिराने के लिए बाध्य होना पड़ता था। इसी तरह जब आयरन ओर पेलेट बाजार में आया तो एनएमडीसी की ही तरह पेलेट उत्पादकों पर भी दाम घटाने का दबाव बनाया गया, ओडिशा का भी भय दिखाया गया। इसका असर हुआ भी लेकिन पेलेट उत्पादकों ने बाध्यताओं के आगे दम तोड़ने के बजाय निर्यात बाजार की ओर अपना रुख किया जहां समय से भुगतान मिलने की भी गारंटी है और दाम घटाने का दबाव भी नहीं रहता। इसी खेल में मात खाने के बाद स्पांज आयरन एवं स्टील उत्पादकों ने पेलेट उत्पादकों पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में चिट्ठी भेजकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया है।
पेलेट उत्पादकों का कहना है कि जिस तरह से एनएमडीसी व ओडिशा के माइनर्स के साथ दाम घटाने का दबाव बनाने का खेल चलता है, उसमें निर्यात बेहतर विकल्प है। पेलेट उत्पादन देश-विदेश की मांग पर आधारित है लेकिन प्राइस वार कराकर अवांछनीय और अव्यावसायिक खरीद-बिक्री परम्परा होने के कारण वे निर्यात करने के लिए विवश हैं। हालांकि वे कहते हैं कि घरेलू बाजार की मांग पर भी उनका पूरा ध्यान रहता है और वे पेलेट उपलब्ध कराने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। मुनाफे के लिए गुणा-भाग के इस गणित से एक बात और निकल कर सामने आ रही है कि लौह अयस्क एवं आयरन ओर पेलेट का दाम नियंत्रित रखने के इस खेल में ओडिशा के वे खदान मालिक भी शामिल हो सकते हैं जिन्हें हाल में ई-नीलामी से खदानों का आवंटन हुआ है। वे जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें न्यूनतम प्रीमियम देना पड़े और लौह अयस्क के दाम जितना टूटेंगे, उन्हें उतना ही फायदा होगा। मान लीजिये कि सरकार बाजार में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध आयरन ओर पेलेट के निर्यात पर शुल्क लगा देती है तो इसका सीधा असर ये होगा कि निर्यात थम जाएगा। निर्यात थमेगा तो पेलेट के साथ-साथ आयरन ओर लंप्स और आयरन ओर फाइंस के दाम भी लुढ़क जाएंगे। फिर इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस मासिक बिक्री मूल्य के आधार पर प्रीमियम तय करेगा तो वह स्वतः काफी कम होगा। यानी ओडिशा के नवोदित खदान मालिक मालामाल हो जाएंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय को शुल्क संबंधी कोई भी फैसला करने से पहले इस पहलू पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
प्रधानमंत्री कार्यालय को यह भी देखना चाहिए कि राष्ट्रीय स्तर पर स्पांज आयरन मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने आयरन ओर पेलेट पर निर्यात शुल्क लगाने की मांग नहीं कि जबकि छत्तीसगढ़ की ओर से उन्हें यह मांगपत्र मिला है तो इसकी वजह क्या हो सकती है? आयरन ओर पेलेट उत्पादकों का साफ कहना है कि कच्चे माल की कोई कमी नहीं है लेकिन निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए कई साजिशें रची जा रही हैं। निर्यात से सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि सरकार को भी विदेशी मुद्रा की आय होती है, जो अपने-आप में राष्ट्र की बड़ी सेवा है और उद्योगों को सुविधानुसार बढ़ावा देना है।

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