शिशु के लिए अमृत है प्रसव के तुरंत बाद स्तनपान…  स्तनपान के प्रति जागरुकता से ही दूर होंगे व्याप्त भ्रांतियां ।

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रायपुर, 7 अगस्त 2020 —  शिशु के लिए मां के दूध से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक दुनिया में कोई भी चीज नहीं है। इसलिए हमेशा यह कहा जाता है कि शिशु को पहले 6 महीने तक मां के दूध के अलावा और कुछ भी न दें। शिशु को स्तनपान कराना मां एवं  बच्चे  दोनों के लिए काफी फायदेमंद होता है प्रसव के तुरंत बाद स्तनपान कराने से मां को प्रसव के बाद होने वाली पीड़ा से काफी राहत मिलती है। मां की ममता के साथ छाती से लगाकर बच्चा जब दूध पीता है तो वह सम्पूर्ण आहार और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ग्रहण करता है। स्तनपान के प्रति समाज में जागरुकता लाने और भ्रांतियों को दूर करने के लिए 1 से 7 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह आयोजित किए जाते हैं। इसके तहत अस्पतालों के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थानों में ब्रेस्ट फीडिंग कार्नर बनाए गए हैं, तो वहीं मितानिन घर-घर जाकर गृह भ्रमण के दौरान शिशुवती व गर्भवती माताओं को स्तनपान कराने का तरीका भी सीखा रही  हैं। स्तनपान शिशु के लिए जीवनदान है, तो कोरोनावायरस महामारी के दौरान अपने बच्चे को इस घातक वायरस से बचाए रखने के लिए इस जीवनदान से दूर न रखें।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ के एनएफएचएस-4 के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यह पता चलता है कि केवल 47.1 प्रतिशत शिशुओं को ही जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया गया है। वहीं 6 माह तक केवल स्तनपान की बात करें तो यह आंकड़ा 77.2 प्रतिशत है। एनएफएचएस-4 के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में जागरुकता, कुपोषण, भ्रांतियों एवं अन्य कारणों से 22.8 प्रतिशत शिशुओं को 6 माह की उम्र तक ब्रेस्ट फीडिंग  का लाभ नहीं मिल पाता है। इस आंकड़े में सुधार लाने के लिए बेहतर काउंसिलिंग की जरूरत है। इन कमियों को दूर करने के लिए हर वर्ष स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है और इस दौरान महिलाओं को स्तनपान कराने हेतु जागरुक किया जाता  है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि शिशुवती माता को दूध, दलिया, पोषणयुक्त भोजन के साथ-साथ खूब पानी पीना चाहिए। प्रसव के तुरंत बाद एक घंटे के भीतर या जितना जल्दी हो सके शिशु को स्तनपान कराना चाहिए, माँ का पहला पीला गाढा दूध शिशु के लिए अत्यधिक महत्तवपूर्ण होता है। जिसे कोलेस्ट्रम एंजाइम भी कहा जाता है। जो बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता व आईक्यू विकसित करता है।
कालीबाड़ी के मातृ एवं शिशु अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निर्मला यादव ने बताया, प्रसव के बाद प्रथम तीन दिन तक यानी 36 घंटे मां का दूध कम आता है लेकिन बच्चे के आहार के लिए पर्याप्त होता है। संस्थागत प्रसव के दौरान अस्पतालों में प्रशिक्षित नर्स, ट्रेनर व काउंसलर द्वारा प्रसूता महिला को स्तनपान के तरीके बताये जाते हैं साथ ही  संस्थागत प्रसव में जन्म के तुरंत बाद शिशुओं को शत् प्रतिशत स्तनपान भी कराया जाता है।
डॉ. निर्मला यादव  के मुताबिक कुछ माताओं में प्रसव के तुरंत बाद दूध नहीं आने की शिकायत होती है। इसके लिए बच्चे को ज्यादा से ज्यादा बार स्तनपान कराया जाना चाहिए। सही तकनीक से स्तनपान कराने के लिए प्रेरित करने से तीन दिनों के बाद मां को पर्याप्त पोषण आहार मिलने से पर्याप्त मात्रा में दूध आना शुरु हो जाता है। समाज में फैली भ्रांतियों, रुढियों व अशिक्षा की वजह से यह मान लेते हैं कि मां स्तनपान नहीं करा सकती है। इन्हीं वजहों से शिशु को मां की बजाय ऊपर का दूध, किसी अन्य महिला व गाय का दूध पिलाना शुरु कर देते हैं। जो कि गलत परंपरा होती है। बच्चा अगर बाहरी दूध पीना शुरु कर देगा तो मां का दूध के प्रति ज्यादा इच्छा नहीं रखते हुए धीरे-धीरे स्तनपान नहीं कर पाता है। जबकि 6 माह तक बच्चे को किसी भी तरह का बाहरी दूध नहीं देते हुए मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए।
शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ सी.एम. घाटगे का कहना है स्तनपान नहीं कराने वाली ऐसी महिलाओं में जागरुकता की कमी होती है। स्तनपान के लिए परिवार की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए। जो माताएं प्रसव के बाद 6 महीने तक दूध पिलाती हैं उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा नहीं होता है। मां का दूध बच्चे के लिए वरदान और संजीवनी होता है। जिसमें सभी जरूरी पोषक तत्व होते हैं साथ ही इससे बच्चे की  रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। गर्भवती माताओं के पोषण स्तर में सुधार से लेकर स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए कई योजनाएं सरकार द्वारा संचालित हैं ताकि माँ एवं बच्चा स्वस्थ्य रह सकें । इसके लिए पीएम मातृत्व वंदना योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को 5 हजार रुपए की सहायता राशि भी प्रदान की जाती है जिससे गर्भावस्था के दौरान महिला के पोषण आहार सहित महिला के  गर्भ में पल रहे शिशु की भी केयर की जा सके । इसके अलावा जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रसव के बाद लगभग 1000 से 2000 रुपए की राशि प्रदान की जाती है। जिससे जच्चा व बच्चा का देखभाल हो और माता सही पोषण आहार ले सके। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं को पोषण आहार भी वितरण किया जाता है ।

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