डॉक्टरों और नर्सो की कमी से जूझता भारत,20 लाख नर्सो की है ज़रूरत:अमेरिकी रिपोर्ट्स से हुआ खुलासा
Taja Khabar
भारत में करीब छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है। एक अमेरिकी अध्ययन में इसका खुलासा किया गया है। वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण जीवन रक्षक दवाओं तक मरीजों की पहुंच नहीं हो पाती।
अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकॉनोमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) की भारत में अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि एंटिबायोटिक की उपलब्धता के बावजूद मरीज उसका खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। स्वास्थ्य खर्च का 65 फीसदी हिस्सा मरीज वहन करने में असमर्थ हैं। इसलिए मजबूरी में किए गए ऐसे खर्चों के कारण हर साल 5.7 करोड़ लोग गरीबी में चले जाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एंटीबायोटिक से इलाज हो सकने योग्य दुनिया भर में सालाना 57 लाख मौतों में से ज्यादातर निम्न और मध्य आय वर्ग के देशों में होती हैं। सीडीडीईपी के शोधकर्ताओं ने भारत, यूगांडा और जर्मनी के नागरिकों से साक्षात्कार के अलावा निम्न, मध्य और उच्च आय वाले देशों में एंटीबायोटिक तक पहुंच रखने वालों के दस्तावेज के आधार पर यह अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि निम्न और मध्य आय वाले देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं खराब हैं। वहां के कर्मचारी भी एंटीबायोटिक के बारे में उचित तरीके से प्रशिक्षित नहीं हैं।
देश में प्रति 10189 लोगों पर एक डॉक्टर
भारत में प्रति 10189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। इस प्रकार फिलहाल देश में छह लाख डॉक्टरों की कमी है। इसी प्रकार नर्स और मरीजों का अनुपात एक के मुकाबले 483 है। इस हिसाब से नर्स की भी 20 लाख की कमी है।
एंटीबायोटिक तक मरीजों की पहुंच नहीं होने के कारण अभी ज्यादा लोगों की मौत होती है, जबकि इससे मौतें रुक सकती हैं। हम इसे अच्छी तरह से संभाल नहीं पाए हैं। न जाने ऐसे अवरोध क्यों उत्पन्न किए गए हैं। – रमणन लक्ष्मीनारायण, निदेशक, सीडीडीईपी