दिल्ली में आयोजित किसान संसद में छत्तीसगढ़ के किसानों ने लिया हिस्सा…. किसान संसद के बाद रैली निकाल किसान आंदोलन के साथ एकजुटता कायम की ।

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छत्तीसगढ़ किसान मज़दूर महासंघ का एक और जत्था दिल्ली पहुँचा

केन्द्र सरकार द्वारा लाये गए कॉरपोरेट परस्त किसान, कृषि और आम उपभोक्ता विरोधी कानून को रद्द करने व न्यूनतम समर्थन मूल्य गारण्टी कानून लागू करने की मांग को लेकर दिल्ली के विभिन्न सीमाओं में जारी किसान आंदोलन के समर्थन में छत्तीसगढ़ किसान मज़दूर महासंघ की ओर से गये किसान सिंघु बार्डर में जारी तमाम विरोध प्रदर्शनों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। किसानों का एक और जत्था पारस नाथ साहू और जागेश्वर चन्द्राकर के नेतृत्व में सिंघु बॉर्डर पहुंचा ।

आंदोलन के 59 वें दिन महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस पाटिल, शहीदे आजम भगत सिंह के भांजे जगमोहन सिंह, प्रोफेसर दिनेश अब्रॉल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, योगेंद्र यादव आदि के उपस्थिति में सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ गुरु तेग बहादुर स्मारक स्थल सिंघु बार्डर में दो दिवसीय किसान संसद का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संचालक मंडल सदस्य तेजराम विद्रोही,संचालक मंडल सदस्यगण जागेश्वर जुगनू चन्द्राकर, पारस नाथ साहू, आदिवासी भारत महासभा के संयोजक सौरा यादव, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा छत्तीसगढ़ के प्रदेश उपाध्यक्ष मदन लाल साहू, सामाजिक कार्यकर्ता राधेश्याम शर्मा, क्रांतिकारी विद्यार्थी संगठन के टिकेश कुमार, प्रमोद कुमार ने दिल्ली में 23-24 जनवरी 2021 को आयोजित दो दिवसीय किसान संसद में हिस्सा लिया।

सदन को संबोधित करते हुए तेजराम विद्रोही ने संसद को जानकारी दी कि छत्तीसगढ़ में किसान आन्दोलन विगत 2 माह से जारी है और कल ही राजभवन का घेराव करने 500 ट्रेक्टर की रैली निकाली गई । उन्होंने कहा कि 20 तारीख को बैठक के दौरान केंद्र सरकार द्वारा किसान प्रतिनिधियों के समक्ष यह प्रस्ताव रखना कि इस कानून को हम डेढ़ साल के लिए स्थगित रखेंगे और दोनों पक्षों को लेकर कमेटी बनाकर इस चर्चा करेंगे। यह बात सरकार द्वारा अपने ओर से कोई नई बात नहीं है क्योंकि कोर्ट ने पहले ही इस कानून के पालन पर रोक लगा दी है और स्वयं कोर्ट ने चार लोगों की कमेटी बनाई थी जो किसानों से चर्चा कर इस मामले को सुलझाने में मदद करती । लेकिन कमेटी के एक सदस्य भूपेंद्र सिंह मान ने स्वयं को कमेटी से अलग कर लिया जिससे कमेटी का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। अब पुनः सरकार प्रयास कर रही है कि कानून को स्थगित रखकर और कमेटी बनाकर किसानों के आंदोलन को कमजोर किया जाये। यह केन्द्र सरकार की साजिश है जबकि सरकार को किसानों के आंदोलन को समझते हुए यह कानून तत्काल रद्द किया जाना चाहिए।

 

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