आज भी प्रासंगिक हैं प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके पात्र…. मुंशी प्रेमचंद जयंती पर मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग में राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी ।

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रायपुर —  वह होरी हो या निर्मला अथवा अन्य कोई पात्र, प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके द्वारा रचित पात्र समकालीन होने के बाद भी आज प्रासंगिक है। प्रेमचंद पर जितनी चर्चा की  जाए कम है।  आज जितने भी विमर्श चल  रहे हैं, उनका चित्रण प्रेमचंद की कहानियों एवं उपन्यास में मिलता है। यह बातें मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग द्वारा प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हिन्दी साहित्य के विशेषज्ञों ने कहीं।
मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने बताया कि प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर 31 जुलाई, शनिवार को हिन्दी साहित्य और मुंशी प्रेमचंदः वर्तमान परिदृश्य को लेकर वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख एवं विशिष्ट वक्ता स्नात्कोत्तर  हिन्दी यूनिवर्सिटी कॉलेज, मंगलोर कर्नाटक  की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुमा टी रोडन्नवर थीं। विशिष्ट वक्ता डॉ. सुमा टी रोडन्नवर ने कहा कि प्रेमचंद के पूर्व साहित्य मे कल्पना की उड़ान देखने को मिलती है लेकिन प्रेमचंद जी ने सामाजिक य़थार्थ को अभिव्यक्त किया। उन्होंने मध्यमवर्गीय आम आदमी और गरीब किसान को कथा का नायक बनाया। आज जितने भी विमर्श चल रहे हैं दलित विमर्श, नारी विमर्श ये प्रेमचंद की रचनाओं में अभिव्यक्त किये जा चुके हैं और कहा जा सकता है कि विमर्श की शुरुआत प्रेमचंद से हो चुकी थी। प्रेमचंद के दौर की अनेक सामाजिक समस्याएं आज भी यथावत देखने को मिलती हैंं। प्रेमचंद के बारे में जितना सोचा जाए, उनके बारे में उतना लिखने की प्रेरणा मिलती है।
वेब संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद सार्वभौम मानवता के प्रबल समर्थक थे। प्रेमचंद की दृष्टि में साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, वह समाज का दीपक भी है और उसका काम समाज का यथार्थ दिखाना ही नहीं, समाज को प्रकाश दिखाना भी है। प्रेमचंद का साहित्य किसान, मजदूर एवं दलित वर्ग का ऐसा साहित्य है जिसकी प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं होगी। प्रेमचंद ने हिन्दी में यथार्थवाद की शुरुआत  की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए हैं जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित है। उन्होंने कहा कि वह होरी हो या निर्मला अथवा अन्य कोई पात्र, प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके द्वारा रचित पात्र समकालीन होने के बाद भी आज प्रासंगिक है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के देदीप्यमान दीपक हैं जिनकी चमक कभी कम नहीं हो सकती। इनकी कथा साहित्य का ताना-बाना हम जस के तस पाते हैं। सरकार की ओर से उत्पीड़न का दौर नहीं रहा, साहूकारों, जमींदारों का दौर भी खत्म हो गया लेकिन नये चेहरों के साथ शोषण करन वाले चेहरे आज भी जिंदा है, यही प्रासंगिकता है। प्रेमचंद के साहित्य  की लौ कभी धीमी नहीं होगी।
इस अवसर पर मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने कहा कि प्रेमचंद सदैव प्रासंगिक रहेंगे। कलम के सिपाही के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया जिसे कभी विस्मृत नहीं किया  जा सकता। सामाजिक कुरीतियों को हटाकर मानवीय मूल्यों की स्थापना करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रो. यादव ने प्रेमचंद के गांव और उनके निवास स्थान के भ्रमण की यादें साझा कीं।
इसके  पूर्व मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने स्वागत भाषण में कहा कि प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत के एसे तेजस्वी सितारे  हैं जिसकी चमक हिन्दी साहित्य को हमेशा रोशन करती रहेगी। उनका लेखन तथा उनके साहित्य में निहित विषय आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार कि दिशा में किये जा रहे प्रयासों व विभाग द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों व उपलब्धियों से अवगत कराया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनीता तिवारी ने किया। इस अवसर पर सह प्राध्यापक डॉ. कमलेश गोगिया, सहायक  प्राध्यापक डॉ. रमणी चंद्राकर, मधुबाला शुक्ला, चंद्रेश चौधरी सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे। मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया, महानिदेशक श्री प्रियेश पगारिया, उपकुलपति डॉ. दीपिका ढांढ, कुलसचिव श्री गोकुलानंदा पंडा ने प्रेमचंद जय़ंती के अवसर पर आयोजित इस राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के आयोजन की सराहना करते हुए प्रेमचंद के योगदान को अविस्मरणीय बताया।

नवीन दृष्टिकोण से करें प्रेमचंद पर शोध

वेब संगोष्ठी में विशेषज्ञों से वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद पर शोध के संदर्भ में भी प्रश्न पूछे गये। विशेषज्ञों ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के साहित्य पर हर पहलू को लेकर शोध किया जा चुका है लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी रचनाओं पर वर्तमान में शोध नहीं किया जा सकता। परंपरागत रूप से हटकर नवीन दृष्टिकोण से आज भी शोध संभव है। आज भी अनेक शोधार्थी हैं जो प्रेमचंद की रचनाओं पर नये संदर्भ में शोध कर रहे हैं। शोध निर्देशकों को उन नवीन संदर्भों की जानकारी होनी चाहिए जो प्रायः कम देखने को मिलती है।

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