देश में सबसे सस्ती बिजली आम उपभोक्ता को छत्तीसगढ़ में मिला है, भाजपा को चुनौती है कि उस भाजपा शासित राज्य का नाम बताये जहां आम उपभोक्ता को छत्तीसगढ़ से सस्ती बिजली मिलती है – शैलेश नितिन

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प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी की बिजली मामले में संवाददाताओं से चर्चा के प्रमुख बिन्दु 11 अगस्त 2021

 

रायपुर –– बिजली बिल हाफ योजना के तहत जो बिजली की दरें हैं उसका भी 50 प्रतिशत ही लिया जा रहा है।
यह देश में आम बिजली उपभोक्ता के लिए सबसे सस्ती दरों में से एक दर हो जाती है।
देश में सबसे सस्ती बिजली आम उपभोक्ता को छत्तीसगढ़ में मिला है। भाजपा को चुनौती है कि उस भाजपा शासित राज्य का नाम बताये जहां आम उपभोक्ता को छत्तीसगढ़ से सस्ती बिजली मिलती है।
बिजली दरों को प्रभावित करने वाले फेक्टरों पर एक रिपोर्ट फोरम ऑफ रेगुलेटरर्स ने तैयार की जिसकी प्रति हमारे पास उपलब्ध है। जो पत्रकार साथी चाहें मीडिया कार्यालय में इसका अवलोकल कर सकते हैं।
बिजली की दरों में पॉवर परचेज कास्ट
ट्रांसमिशन चार्जेस और
फिक्स कास्ट फेक्टर
ये तीन महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
पॉवर परचेज कास्ट में कोयला 25 प्रतिशत, रेल भाड़ा 41 प्रतिशत, सड़क परिवहन 11 प्रतिशत, क्लीन एनर्जी सेस 11 प्रतिशत और अन्य वेरियेवल 12 प्रतिशत होते हैं।
क्लीन एनर्जी सेस जून 2010 50 रूपये प्रति टन से मार्च 2016 तक 400 रूपये प्रति टन हो चुका है। यह वृद्धि केंद्र सरकार द्वारा की गयी है। पॉवर सेक्टर में क्लीन एनर्जी सेस का प्रभाव पिछले 3 वर्षों में 25000 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष है। क्लीन एनर्जी सेस को अब कम करने की जरूरत है लेकिन मोदी सरकार इसे बढ़ाते ही जा रही है।
कोयले की कीमतें केंद्र सरकार द्वारा ही 13 प्रतिशत से 18 प्रतिशत बढ़ा दी गयी है।
केंद्र सरकार रेल भाड़ा लगातार बढ़ा रही है। 2018 वर्ष में ही दो बार रेल भाड़ा बढ़ाया गया। जनवरी 2018 में 21 प्रतिशत और नवंबर 2018 में 9 प्रतिशत भाड़ा बढ़ाया गया।
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने के कारण सड़क परिवहन भी निरंतर महंगा हो रहा है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी केंद्र सरकार द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही है।
स्पष्ट है कि पॉवर ट्रांसमिशन चार्जेस भी पीपीसी में महत्वपूर्ण है।
2011-12 में 9000 करोड़ से बढ़कर ट्रांसमिशन चार्ज 39000 करोड़ हो चुके हैं।
राज्यों के स्वयं के ट्रांमिशन चार्जेस और राज्य से राज्य में होने वाले ट्रांसमिशन चार्ज की तुलना यह बताती है।
राज्य केंद्र सरकार की तुलना में बहुत कम दरों में ट्रांसमिशन कर रहे हैं।
इसलिए पूरे देश में महंगी बिजली के लिए भाजपा की केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है।
फिक्स चार्जेस कास्ट भी लगातार बढ़ रही है।
इन परिस्थितियों में कमेटी ने सिफारिश की है कि कोयले की दरें कम की जाये।
पिछले 4 वर्षों में रेल भाड़े में 40 प्रतिशत वृद्धि को देखते हुए इस पर भी रोक लगे।
क्लीन एनर्जी सेस कम किया जाये।
पर्यावरण की जरूरतों के मुताबिक काम की जरूरत है लेकिन इससे बोझ आम उपभोक्ता पर बढ़ते ही जा रही है।
बढ़ती ट्रांसमिशन कास्ट को भी कम करना आवश्यक है।
यह सारे फेक्टर्स केंद्र सरकार के ही हाथ में है।
केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ ऊर्जा प्रभार (ग्रीन एनर्जी सेस) जो मनमोहन सिंह की सरकार के समय 50रू. प्रति टन था वह वर्तमान में 720 प्रतिशत बढ़कर 410रू. प्रति टन हो गया है। तो ठीक ही तो कहा नरेंद्र मोदी जी से ना निवेदन न आवेदन, बस दे दना दन करना शुरू कर दें। सिर्फ यही नहीं इंटर स्टेट पारेषण पावर ग्रिड कॉरपोरेशन द्वारा किया जाता है जो कि केंद्र सरकार का एक उपक्रम है अंतर राज्य पारेषण में पारेषण प्रभार वर्ष 2011-12 में जो 9000 करोड़ था वह 334 प्रतिशत बढ़कर 2019 – 20 में 39 हजार करोड़ हो गया।
पेट्रोल में टैक्स की वृद्धि 258 प्रतिशत
डीजल में टैक्स की वृद्धि 820 प्रतिशत
ग्रीन एनर्जी सेस में बढ़ोतरी 720 प्रतिशत
रेलवे परिवहन में चार साल में 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी।
कोयले की कीमत में 28 प्रतिशत से अधिक वृद्धि।
तो महंगी गैस महंगा तेल महंगा कोयला महंगा रेलवे महंगी बिजली, जिम्मेदार नरेंद्र मोदी! जैसे नरेंद्र मोदी वैसे ही रमन सिंह थे। जो 2004-05 में 3.27 रुपए प्रति यूनिट बिजली दर था इनकी सरकार में 6.20 पैसे प्रति यूनिट हो गया।

मड़वा
बिजली संशोधन विधेयक 2020 लाकर आम उपभोक्ताओं को चंद पूंजीपतियों के लूट का जरिया बनाने वाली भाजपा छत्तीसगढ़ में किस रूप से बिजली के बिल में बढ़ोतरी का आरोप लगा रही है
बिजली बिल संशोधन विधेयक भाजपा के पूंजीपति हित चिंतक होते का प्रमाण बिजली बिल विधेयक लाने से देश में बिजली कंपनियों पर पूंजी पतियों का एकाधिकार होगा राज्य सरकार के अधिकार उसमें खत्म हो जाएंगे
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार में ढाई साल में मात्र 3ः30 प्रतिशत बिजली की दरों में बढ़ोतरी की है पूर्ववर्ती सरकार के प्रत्येक वर्ष के बढ़ोतरी को देखा जाए तो 6 प्रतिशत से ज्यादा है आज अगर रमन भाजपा की सरकार होती तो 400 यूनिट तक की बिजली के बिल के लिए आम जनता को ₹3200 से अधिक खर्च करने पड़ते
रमन सरकार के दौरान बिजली की कंपनियां हर वर्ष घाटे में चल रही थी और उपभोक्ताओं से मनमाना बिजली के दरों से बिल की वसूली होती थी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकार में आम जनता को बिजली बिल हाफ की सुविधा देने के उपरांत भी बिजली कंपनियां घाटे में नहीं है आम उपभोक्ता को अपने घर में टीवी लाइट पंखा कूलर वाटर पंप चलाने के बाद 400 यूनिट के लिए मात्रा 800 से 1000 के भीतर के बिल चुकाने पड़ रहे
पूर्वर्ती रमन सरकार ने सभी वर्गों पर आम उपभोक्ता स्कूल कालेज अस्पताल समाजसेवी संस्थाएं और उद्योग उद्योगों से मनमाने दरों में बिजली की दर बिल की वसूली करती रही है
पूवर्वर्ती रमन सरकार में महंगी बिजली के चलते यहां से उद्योग बंद होने का सिलसिला शुरू हुआ था नए उद्योग लग निहि रहे थे
अब नये उद्योग लग भी रहे है और बन्द पड़ी उद्योग पुनः शुरू भी हो रहे।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के अलावा किसानों को अस्पतालों को समाजसेवी संस्थाओं को हॉस्टलों को उद्योगों को रियायती दरों में एक बिजली की सुविधा प्रदान कर रही है।
भाजपा शासन काल में 1000 किलोवाट का मड़वा प्रोजेक्ट हिन्दुस्तान का सबसे महंगा प्रोजेक्ट है जहां प्रति मेगावाट लागत 10 करोड़ है जबकि विद्युत उत्पादन संयंत्र की औसत लागत 5 करोड़ रू. प्रति मेगावाट होती है। मड़वा पावर प्लांट की प्रोजेक्ट कास्ट वर्ष 2010 में 5000 करोड़ रू. थी जिसे वर्ष 2012 तक पूर्ण होना था लेकिन भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के चलते इसकी लागत बढ़कर 10,000 करोड़ रू. तक पहुंच चुकी है और निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो सका। 500-500 मेगावाट के दो यूनिट में से एक यूनिट में भी बिजली का उत्पादन ही ठीक से नहीं हो पाया।
नियामक आयोग ने 1 जून, 2010 को मड़वा प्रोजेक्ट की लागत 6,317 करोड़ रू. निर्धारित की थी और प्रोजेक्ट पूरा करने की समय-सीमा चार वर्ष निर्धारित की थी। प्रोजेक्ट लागत के लिए लोन लिए जाने की ब्याज दर 11 प्रतिशत निर्धारित की गई थी। लेकिन आयोग के समक्ष जेनरेशन कंपनी ने अपनी याचिका में कहा है कि मड़वा प्रोजेक्ट पूरा करने में आठ साल लग गए और पूंजीगत लागत 6,317 करोड़ रू. से बढ़कर 9,000 करोड़ रू. हो गई जिसमें ब्याज-खर्च रू. 3,152 करोड़ रू. शामिल है।
सीपत में एन टी पी सी ने 1980 मैगावाट का थर्मल पावर प्लांट स्थापित किया है जिसकी कुल लागत 6,777 करोड़ रू. आई है और 1000 मैगावाट प्लांट के मड़वा प्रोजेक्ट की लागत 9000 करोड़ रू. बताई जा रही है। यह घोर आपराधिक लापरवाही, अनियमितता एवं भारी भ्रष्टाचार का परिणाम है।
इनके मुख्यमंत्री रहते 90 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई लेकिन बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत की आंखें 15 वर्ष सत्ता के कारण बंद थी आज खुली है।
रमन सिंह के कार्यकाल में जो बिजली दर 3.27 प्रति यूनिट थी वह 90 प्रतिशत बढ़कर 6.20 हो गई। शायद रमन सिंह के कार्यकाल को याद करके आज उनकी नींद खुली है और इसलिए उन्होंने कहा है ना निवेदन ना आवेदन बस दे दना दन। हो सकता है जब नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ में पर्यवेक्षक बनकर आए थे तब का समय याद आ गया हो और कहां हो ना निवेदन ना आवेदन बस दे दना दन। वैसे आपने झूठ फैलाने की राजनीति छत्तीसगढ़ के लोगों को गुमराह करने की राजनीति अब बंद करें क्योंकि लोग अब सच जानते हैं। आप जब झूठ बोलते हो तब ट्विटर मैनिपुलेटेड मीडिया का टैग लगा देती है और भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले व्यक्ति हैं जिस के अकाउंट पर टैग लगा मैनिपुलेटेड मीडिया का तो (छत्तीसगढ़ को बदनाम न करें अपने झूठ से..)
इनका झूठ पकड़ाता है तो ये थाने का घेराव करते हैं। जनता विश्वास रखे और निश्चिंत रहे कि कांग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार ने जो पिछले 27 महीने में प्रदेश के 39.63 लाख उपभोक्ताओं को बिजली बिल हाफ योजना के माध्यम से लाभ दिये है वह यथावत है और आगे भी मिलता रहेगा। भाजपा के फैलाए हुए झूठ से गुमराह ना हो। हम इनके झूठ के खिलाफ लड़ेंगे तथ्यों और सच को लोगों तक बता कर जीतेंगे सत्यमेव जयते। भाजपा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से पहले शायद इनकी केंद्र सरकार की देखरेख में फोरम ऑफ रेगुलेटर ने जो कमेटी बनाई और जो सुझाव दिए उसको शायद पढ़ा ही नहीं है। जिसमें बिजली बिल की दरों को लेकर साफ-साफ लिखा गया है और सुझाव दिए गए हैं जिसकी प्रतिलिपि में मीडिया विभाग के कार्यालय में उपलब्ध है।
इन दोनों मंत्रियों से कांग्रेस ने 15 साल भाजपा सरकार में, ऊर्जा विभाग में मडवा विद्युत संयंत्र, बिजली खरीदी बिक्री में हुए खेल, ट्रांसफार्मर खरीदी में हुए खेल का हिसाब पूछते हुए कहा है कि रमन सिंह सरकार में तो ऊर्जा विभाग भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र था। बिजली बिल आधा किया है तो यह नेता उस कांग्रेस सरकार पर सवाल उठाते हैं जो कांग्रेस सरकार गरीबों को राहत पहुंचा रही है।

प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष गिरीश देवांगन के बिजली मामले में संवाददाताओं से चर्चा के प्रमुख बिन्दु 11.08.2021

15 साल में आपने 90 प्रतिशत वृद्धि बिजली की दरों में की अर्थात 6 प्रतिशत प्रति वर्ष। आप 1.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष मात्र विद्युत शुल्क बढ़ाने वाली सरकार की ईंट से ईंट बजाने की बातें करके अपनी फितरत और चाल चरित्र प्रमाणित कर रहे है। पहले आवेदन फिर निवेदन और फिर दे दना दन की बात करने वाली भाजपा को दनादन करने का शौक है तो दे दना दन करने के लिए मोदी जी के पास दिल्ली जाए। क्योंकि बिजली में मूल्य वृद्धि के लिए सारे कारक मोदी सरकार द्वारा बढ़ाए जा रहे हैं। बृजमोहन अग्रवाल जी और राजेश मूणत जी दिल्ली जाकर मोदी जी के साथ दे दना दन करें। पूर्व में भी 2000 में जब मोदी जी भाजपा विधायक दल का नेता चुनने के लिए पर्यवेक्षक बनकर रायपुर आए थे तो उनके साथ यहां जो दे दना दन हुई है उसको मोदी जी भूले भी नहीं होंगे। बृजमोहन जी और राजेश मूणत जी यदि दनादन करना चाहते हैं तो दिल्ली जाकर दे दनादन करें। कैंडल मार्च निकाले। 1822 करोड़ की बिजली बिल हाफ 39 लाख उपभोक्ताओं आमजनों के पास जाना भाजपा के नेता नहीं पचा पा रहे है।
भाजपा के पूर्व मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत जिस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ऐसी टकराव की भाषा राजनीति में शोभा नहीं देती। यह भाजपा की बौखलाहट का परिणाम है।
हम कहने लगे इंट का जवाब पत्थर से देंगे तो क्या होगा?
इंट का जवाब पत्थर से देने लगे तो क्या होगा।
हमारा सिर्फ एक ही एजेण्डा है पुरूखों के सपनों के छत्तीसगढ़ का निर्माण, छत्तीसगढ़ का विकास, किसान मजदूर व्यापारी सबकी खुशहाली।
इनकी प्रभारी पुरंदेश्वरी कहती हैं कि विकास पर चुनाव लड़ेंगे चेहरों पर नहीं। लेकिन छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता विकास की नहीं चेहरों की बात करते हैं। एक नेता पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह जी में भी चेहरा कहते हैं। दो नेता पूर्व मंत्री विकास के मुद्दे के बजाय इंट से इंट बजाने की बात करते हैं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा दिशाहीन हो चुकी है। छत्तीसगढ़ के हितों का विरोध मजदूर किसान व्यापारी ग्रामीण शहरी नागरिकों के हितों का विरोध ही भाजपा का चरित्र बन चुका है।

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