सावरकर का चरित्र स्वतंतत्रता आंदोलन के इतिहास में संदिग्ध था, संदिग्ध ही रहेगा — सुशील आनंद

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रमन बतायें सावरकर को भारतरत्न अंग्रेजों से माफी मांगने के लिये दिया जाये?

संघ आजादी की लड़ाई के न सिर्फ खिलाफ था स्वतंत्रता आंदोलन के खिलाफ षड़यंत्र भी करता था

रायपुर —  पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह द्वारा सावरकर को भारत रत्न देने की मांग रमन की संघ पोषित विभाजनकारी संस्कारों का परिणाम है। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि रमन सिंह संघी कूपमंडूकता से बाहर निकल कर भारत की आजादी के इतिहास का फिर से अध्ययन करना चाहिये। सावरकर की देशभक्ति को भाजपाई और संघी कितना भी महिमामंडित करें, सावरकर का चरित्र भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में संदिग्ध था और संदिग्ध ही रहेगा। विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न की उपाधि क्यों दी जाये? उनके द्वारा अंग्रेजी हुकूमत से 9 बार माफी मांगने के लिये? या फिर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में युवाओं को भर्ती न होने के आह्वान करने के लिये? या फिर जेल से छूटने के लिये खुद को फालतू औलाद मानकर अंग्रेजी हुकूमत को माता-पिता बताने के लिये? अंग्रेजों से भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल नहीं होने का वचन देने और उपनिवेशवादी सरकार की वफादारी के शपथ के लिये सावरकर को भारत रत्न देने की वकालत रमन सिंह कर रहे है। या फिर महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में सावरकर पर चले अभियोग के लिये जिससे बाद में वे साक्ष्यों के आभाव में बरी हुये, इसलिये उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाये। जब सारा देश धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठ कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था तब सावरकर और जिन्ना जैसे लोग अंग्रेजों के ईशारों पर देश में धार्मिक उन्माद फैलाकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चल रही आजादी की लड़ाई को कमजोर करने की साजिशें रच रहे थे।
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि संघ और उनके पूर्वजों की विचारधारा शुरू से विघटनकारी रही है। 1925 में विजय दशमी के दिन अपने स्थापना से लेकर 15 अगस्त 1947 तक संघ ने अंग्रेजों के खिलाफ चूं तक नहीं बोला था। भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, राम प्रसाद बिस्मिल जब अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा कर अपने प्राण दांव पर लगा रहे थे, तब संघियों के आदर्श पुरूष सावरकर माफीनामा पे माफीनामा लिख कर अपनी रिहाई के लिये अंग्रेजी सरकार के सामने गिड़गिड़ा रहे थे। जब गांधी जी के अगुवाई में कांग्रेस 1920-21 में असहयोग आंदोलन चला रही थी तब संघ के गुरू गोलवलकर इन आंदोलनों के कारण देश की बिगड़ती कानून व्यवस्था से फिक्रमंद हो कर इन आंदोलनों की आलोचना कर रहे थे। खुद को इतिहास के बड़े जानकार समझने वाले रमन सिंह गुरू गोलवलकर पर लिखी किताब ‘श्री गुरूजी समग्र दर्शन खंड 4’ पृष्ठ 41 भारतीय साधना नागपुर 19़81 का अध्ययन कर लें। जो लोग स्वतंत्रता आंदोलन में भाग भी लेना चाहते थे, उनसे गुरूजी नाराज हो गये थे। इसी किताब ‘गुरूजी समग्र दर्शन खंड’ 4 पृष्ठ 40 भारतीय विचारधारा नागपुर 1981 में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि संघी और भाजपाई कुछ भी कह लें, कितनी भी दलीलें दे लें, इतिहास को तोड़मरोड़ कर अपनी सुविधा अनुसार कैसी भी व्याख्या कर लें, संघ और भाजपा का इतिहास दरिद्र था और दरिद्र ही रहेगा। उनके पूर्वज भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गुनाहगार है। अपने दरिद्र इतिहास को छुपाने की भाजपा की कुचेष्टा कभी सफल नहीं होगी।

 

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