सहजता और सरलता के कारण आदिवासियों को मिले कई अधिकार -अनुसुईया उईके
आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए कर रहे है संघर्ष-अनुसुईया उइके
राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन का समापन,देशभर से जुटे आदिवासी समुदाय के लोग
रायपुर -अंतरराष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस के मौके पर रायपुर के पं.दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन के दूसरे दिन सर्व आदिवासी समाज छ्ग एवं विभिन्न प्रांतों से आए आदिवासी समाज लोगों ने आंगा पेन की अगुवाई में जय स्तंभ चौक तक रैली निकाली। इस दौरान विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधिमंडल अपनी अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आए,वही काफी उत्साहित भी थे।
राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन के समापन समारोह में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल अनुसुइया उइके शामिल हुई। मंच पर उनके साथ अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री जॉन बारला,पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम,पूर्व अध्यक्ष अजजा आयोग नंदकुमार साय,पूर्व जनजाति मंत्री मध्य प्रदेश शासन ओमकार सिंग मरकाम,राजकुमार राउत विधायक राजस्थान,फुलमन चौधरी वाइस चेयरमैन यूएनपीएफआईआई,विरेश तुमराम समाजसेवी मध्यप्रदेश,स्टेलिन इंगति राष्ट्रीय अध्यक्ष आदिवासी समन्वय मंच भारत,डोगर भाऊ बागुल एकता परिषद,अशोक चौधरी राष्ट्रीय समन्वयक आदिवासी समन्वय मंच भारत,भगवान सिंह रावटे कार्यकारी अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज,सविता साय प्रदेश अध्यक्ष महिला प्रभाग सर्व आदिवासी समाज मौजूद रहे। कार्यक्रम में पहुँची राज्यपाल अनुसुईया उइके ने सामाजिक पुराधाओं के तैलयचित्र पर माल्यार्पण किया। वही अतिथियों का छत्तीसगढ़ और असम के पारंपरिक नृत्य के साथ स्वागत किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा कि कार्यक्रम की विशालता इतनी होगी उन्होंने नही सोचा था। विपरीत परिस्थितियों के बाद भी देशभर से संकल्प लेकर छत्तीसगढ़ पहुँचे है उसके लिए सभी बधाई के पात्र है। उन्होंने कहा कि मुझे अच्छा लग रहा है कि आदिवासी समाज की सांस्कृतिक,सामाजिक, विकास और जागरूकता के लिए इस तरह के आयोजन कर रहा है। उन्होंने शहीद वीर नारायण सिंह सहित समाज के महान विभूतियों को नमन करते हुए कहा कि आदिवासी शब्द में ही अर्थ निहित है। यह लोग उस स्थान विशेष की मूल निवासी है इसी समुदाय ने आदिकाल से अपने परिवेश का जीर्णोद्धार कर रहे है उसके संरक्षण संवर्धन का काम किया है। हर प्रदेश का मैने दौरा किया और आदिवासी समाज की तकलीफों को मैंने करीब से देखा है। मैंने यह महसूस किया है कि आदिवासी कितना सहज और सरल होता है लेकिन वह कभी दुखी नहीं होता।अपनी पसंद और मन्नताओं के साथ खुशहाल जिंदगी व्यतीत करते है। यही स्वभाव का परिणाम हुआ कि संविधान में आदिवासी वर्ग को कई अधिकार,कानून और प्रावधान दिए गए।
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज का जैसा विकास होना चाहिए था,वह आज तक नहीं हुआ। आज भी कई क्षेत्रों में आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है और संघर्ष कर रहे है ऐसे में वक्त इस तरह की संस्थाए समाज के अधिकारों का संज्ञान लेकर उनका विकास कर रहा है। हालाकि संविधान में पांचवी और आठवीं अनुसूची का प्रावधान किया गया है।वही पेशा कानून के तहत ग्राम सभा को असीमित अधिकार दिया गया है पर कई राज्यों में इसका पालन नही हो रहा है यह चिंतनीय विषय है। अनेक प्रदेशों में बगैर राजपाल के अनुमति के शेड्यूल एरिया में नगर पालिका,नगर पंचायत बनाया गया। मैंने इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखा है। जरूरत पड़ने पर समाज के प्रतिनिधिमंडल के साथ राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें अवगत कराया जाएगा। उन्होंने समाज को उनकी प्राथमिकता बताते हुए युवाओं से अपील किया कि गस्वंतत्रता संग्राम में भाग लेने वाले समाज के पुराधाओ का गांव गांव में स्मारक बनाएं।
इस अवसर पर नंदकुमार साय ने कहा कि समाज के पुराधाओं ने जल जंगल जमीन की सुरक्षा,संवर्धन,संरक्षण के लिए प्रथम पहरी के रूप में काम किया। हसदेव को लेकर विश्व चिंतित है लेकिन सरकार इसे गम्भीरता से नही ले रही है समाज लगातार संघर्ष कर रहा है समाज के सामने आगे चलकर और संघर्ष में हो सकता है इसीलिए समाज को जागरूक करने की जरूरत है जब जब संकट समाज पर आएगा समाज के लोग आगे आएं।
राष्ट्रीय समन्वयक अशोक चौधरी ने कहा कि आज समाज जागरूक हो रहा है इसलिए सरकारें हमारे दिवस को मनाना शुरू कर रहे है जो संविधान लागू है उनका पालन कराना भी हमारी ही जवाबदारी है।
समापन अवसर पर पहुँचे प्रदेश के खाद्यमंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि देश की आजादी में आदिवासी समाज का योगदान कही किसी से कमतर नही था। जब इतिहास लिखा गया तब हमारे पुराधाओं का जिक्र नही किया गया। समाज को आरक्षण मिला,लेकिन कालांतर में आज जो स्थिति है उसमें कही न कही कमी है। सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में देने से हमारे आरक्षण खत्म हो रहे है। आजादी के बाद हमें वन अधिकार कानून तो मिला,लेकिन उसका पालन नही हुआ। छत्तीसगढ़ में अब वन अधिकार के तहत अधिकार दिया गया है प्रदेश में सरकार भरपूर वनोपज खरीद रही है। वन क्षेत्रों में वन अधिकार के तहत सरकार पट्टा दे रही है।
आबकारी कवासी लखमा ने कहा कि पूरे देश में से बस्तर में ज्यादा आदिवासी रहते है कभी हमें पीने के पानी के तरसना पड़ता था। राज्य बनने के 15 साल बाद अब बस्तर में शांति आ रही है बस्तर बदल रहा है हमारी सरकार आदिवासी संस्कृति को आगे बढ़ाने का का काम कर रही है। पेशा कानून लागू करने के लिए हमारी सरकार ने ड्राफ्ट लाया,जिसकी मांग आदिवासी वर्षों से कर रहे थे।
गौरतलब है कि हर साल 13 सितंबर को देश के अलग अलग कोने में आदिवासी समन्वय मंच भारत द्वारा आदिवासी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है जिसमें देशभर के आदिवासी समुदाय के लोग शामिल होते है और एकत्रित होकर अपनी संस्कृति,अपने विचारो का आदान प्रदान करते है वही अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई मुद्दों पर चर्चा करते है। रायपुर में आयोजित इस सम्मेलन में आदिवासी एकता और समन्वय पर बल दिया गया। वही आदिवासी विकास और प्राकृतिक संसाधन,पारंपरिक ज्ञान के प्रसार में आदिवासी महिलाओं की भूमिका, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून / समझौते और उनका कार्यान्वयन, शिक्षा और बेरोजगारी आदिवासी युवाओं के लिए एक चुनौती,आदिवासियों की सामाजिक संस्कृति भाषा, कला, कौशल का संरक्षण और संवर्धन एवं समसामयिक परिस्तिथियाँ, जैसे आदिवासी स्वास्थ्य, गरीबी, प्रवासन, डी शेड्यूलिंग, डी-लिस्टिंग, आदि पर गहन विचार विमर्श किया गया। इस पूरे कार्यक्रम का संचालन सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश सचिव विनोद नागवंशी ने किया।
इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अकबर राम कोर्राम , अध्यक्ष गोंडवाना महासभा, सदे कोमरे, मोहन कोमरे,रमेश चन्द्र श्याम, भंवरलाल परमार, डर हीरा मीना, जनक ध्रुव, एन आर चंद्रवंशी, जे ऎल ध्रुव, सेवती पन्ना, निकोलस बरला, आर एन साय उपस्थित थे ।