मंजिले उनकों मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है

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ये है दिव्यांग ललिता, जिसने अपने काम से सबका दिल है जीता

महिला समूह का अध्यक्ष होने के साथ
अन्य 34 महिला समूहों को सक्रिय रखने में है बड़ी भूमिका

रायपुर —  मंजिले उनकों मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। कुछ ऐसे ही हौसलों और साहस की धनी दोनों पैर से दिव्यांग ललिता राठिया आज अपने गांव और जिले में किसी के पहचान की मोहताज नही है। महिला समूह का अध्यक्ष होने के साथ-साथ अपने ग्राम पंचायत के 34 अन्य महिला समूहों को सक्रिय रखने में उनकी बड़ी भूमिका है।

छत्तीसगढ़ के कोरबा विकासखंड़ के आदिवासी बाहुल्य ग्राम चिर्रा की जनसंख्या लगभग 17 सौ है। यहां निवास करने वाली ललिता बचपन से ही दोनों पैर से दिव्यांग है। गरीब परिवार में रहकर भी ललिता ने बारहवी तक पढ़ाई कर ली और टेलरिंग का काम सीखकर सिलाई मशीन के सहारे गांव की महिलाओं, लड़कियों के कपड़े सिलकर अपना खर्च भी निकाल लेती है। वह यहां की चंद्रमुखी स्व-सहायता महिला समूह की अध्यक्ष है। ललिता की लगन और मेहनत का ही परिणाम है कि गांव में अन्य महिला एवं स्व सहायता समूह को मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी योजना ‘नरवा, गरूवा, घुरवा एवं बाड़ी‘ विकास योजना में काम करने का मौका मिला है। इस योजना से गांव में आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता की नींव रखी जा सकती है। इस बात को ललिता भली भांति समझती है, इसलिए वह कहती भी है कि ‘मुख्यमंत्री ने इस योजना की शुरूवात करके गांव को समृद्धि की राह में जो कदम उठाया है वह काबिल ए तारीफ है।‘

वर्तमान में ललिता अन्य महिलाओं को इस योजना के प्रति प्रेरित कर रही है। वह महिलाओं और गांव वालों को बताती है कि गांव में बन रहे आदर्श गौठान और चारागाह से किस प्रकार आने वाला कल बेहतर होगा। उसने पशु सखी के रूप में प्रशिक्षण भी लिया है। गौठान में गांव में इधर-उधर घूमने वाले गायों को पानी तथा छांव की व्यवस्था मिलेगी। इनकें गोबर से जैविक खाद भी तैयार होगा। चारागाह में ज्वार तथा नेपियर घास भी लगाई गई है। इसे खाने पर गाय अधिक मात्रा में दूध देती है। इस योजना से अनेक लोगों को रोजगार मिलेगा और आमदनी भी बढ़ेगी।

सिर्फ नरवा, गरूवा, घुरवा एवं बाड़ी विकास योजना में ही ललिता का योगदान नहीं है। वह आसपास के दर्जनों गांव की लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण दे चुकी है। इससे इन गांव की लड़कियों को स्व-रोजगार मिला है। दोनों पैर से निःशक्त होने की वजह से ललिता इलेक्ट्राॅनिक सिलाई मशाीन का उपयोग करती है। ललिता के सहयोग से गांव की सरिता राठिया, रजन्ती, तारा, देवना, अनिता, शशी आदि ने जहां सिलाई सीखी, ईरा बाई, प्रमिला बाई, महतरीन, रायमोती, साधमती, दिलासो बाई, गिरधन, अंजू साहू सहित अन्य महिलाएं लिखना पढ़ना सीख चुकी है। ललिता ने महिला सशक्तिकरण के साथ असाक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने में भी अपना योगदान दिया हैं।

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