एक्शन मोड में शिवराज और जनमानस में विश्‍वास जगाते कमलनाथ

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मध्यप्रदेश — पहले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बाद में सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय फलक पर फोकस बनाने का निरन्तर प्रयास कर रहे हैं लेकिन शिवराज सौंपे गए दायित्व के साथ ही मध्यप्रदेश का मैदान छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इन दिनों पूरी तरह से शिवराज एक्शन मोड में हैं। वे हाथ आये किसी भी अवसर को लपकने में क्षण मात्र की भी देर नहीं लगाते और अपनी पूरी ताकत इन दिनों कमलनाथ सरकार को जनता की अदालत के कटघरे में खड़ा करने में लगा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कमलनाथ भी एक चतुरसुजान राजनेता की तरह नहले पर दहला लगाने का अवसर नहीं छोड़ रहे हैं और वे नवाचारों के साथ ही विधानसभा चुनाव के समय किए गए वचनों को एक के बाद एक पूरा करने की दिशा में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैंं। सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए लोग आकर्षित हों और उनका भरोसा बढ़े इसे प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री कमलनाथ स्वयं राजधानी के सरकारी हमीदिया अस्पताल में पहुंचे और वहीं अपने हाथ की एक उंगली का अ‍ॅापरेशन भी उन्होंने कराया। सरकारी अस्पतालों में यदि मंत्री, राजनेता व आला अधिकारी अपना इलाज कराने के लिए मुख्यमंत्री की पहल के बाद प्रेरित होते हैं तो इससे न केवल सरकारी अस्पतालों की हालत सुधरेगी अपितु लोगों का भी उनमें पूर्व की भांति भरोसा कायम हो सकेगा। आरामदेह बड़े-बड़े निजी चिकित्सालयों में इलाज कराने की जो प्रवृत्ति मंत्रियों व राजनेताओं में बढ़ रही है और उस पर जो अनाप-शनाप सरकारी खजाने का धन खर्च होता है वह फिजूलखर्ची भी रुकेगी बशर्तें मुख्यमंत्री की पहल को अन्य लोग भी आगे बढ़ायें।
वीआईपी कल्चर के चलते राजनेता और बड़े-बड़े अधिकारियों के लिए निजी चिकित्सालयों की ओर इलाज कराने दौड़ पड़ना एक आम शगल हो गया है। इससे परे कमलनाथ हमीदिया अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे और वहीं एक सर्जरी भी कराई। लगभग 30 साल के अन्तराल के बाद किसी मुख्यमंत्री ने हमीदिया अस्पताल में अपना इलाज कराया है। इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुनसिंह और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तथा पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा समय-समय पर अपना इलाज कराने हमीदिया अस्पताल जाते रहे और अपना इलाज कराते रहे। हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. ए.के. श्रीवास्तव का कहना है कि मैंने अपने 30 साल के कार्यकाल में पहली बार किसी मुख्यमंत्री को अपना इलाज कराने सरकारी अस्पताल में पहुंचते देखा है और हमारे अस्पताल के लिए यह बहुत बड़ी बात है। डॉ. अरुण कुमार, डीन गांधी मेडिकल कालेज का कहना है कि हमीदिया में मुख्यमंत्री इलाज कराने आये इससे जनता में अच्छा मेसेज जायेगा, सरकारी अस्पतालों के प्रति विश्‍वास बढ़ेगा। मुख्यमंत्री ने हर वार्ड में जाकर यह भी देखा कि मरीजों का इलाज किस तरीके से किया जा रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्वयं कहा है कि हमीदिया अस्पताल बहुत अच्छा अस्पताल है मैं इलाज के लिए देश के किसी भी अस्पताल में जा सकता था, छिंदवाड़ा का अस्पताल भी एक विकल्प हो सकता था, लेकिन चूंकि इस समय भोपाल में हूं इसलिए हमीदिया अस्पताल में आया। कमलनाथ सादगी के साथ अपनी उंगली का ऑपरेशन कराने एक मरीज की तरह अस्पताल में पहुंचे और साथ ही ताकीद की कि उनकी वजह से किसी मरीज को तकलीफ न पहुंचे।
शिवराज की सक्रियता
मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान की अति सक्रियता के चलते एक ओर जहां कमलनाथ सरकार कदम दर कदम अपनी शक्ति उनके द्वारा बिछाये गये कांटों को बीनने में लगा रही है ताकि न तो उसे चुभन का अहसास हो और न ही वह जिस लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है उसके रास्ते में कोई व्यवधान ही आये, वहीं दूसरी ओर भाजपा के अन्य प्रादेशिक नेता एक प्रकार से टाइम पास करने के मूड में नजर आ रहे हैं क्योंकि शिवराज उनके लिए करने को कुछ खास काम नहीं छोड़ रहे हैं। हर मोर्चे पर कमलनाथ से वे अकेले ही जूझते नजर आ रहे हैं। भाजपा के सदस्यता अभियान में 20 प्रतिशत की वृद्धि का जो लक्ष्य शिवराज को दिया गया है उसे भी पूरा करने के लिए वे भोपाल से ही टेलीकांफ्रेंसिंग व अन्य संचार माध्यमों से सक्रिय हैं। एक ओर वे सौंपी गयी जिम्मेदारी को निभाने के लिए कटिबद्ध हैं तो दूसरी ओर समय निकाल कर वे संघर्ष के रास्ते पर अलग-अलग मंच एवं फोरम बनाकर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। इस प्रकार हाईकमान द्वारा सौंपे गये दायित्व को पूरा करने के साथ ही प्रदेश में जन-समस्याओं को लेकर वे सरकार को कटघरे में खड़ा करने की भी पूरी-पूरी कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक मोर्चे के साथ ही गैर-राजनीतिक फोरम बनाकर जनता के बीच शिवराज के सक्रिय होने से कमलनाथ सरकार व कांग्रेस सतर्क होने को विवश हुई है। बिजली संकट को लेकर चिमनी-लालटेन यात्रा में शिवराज के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और कुछ अन्य नेता अलग-अलग स्थानों पर सक्रिय नजर आये। कमलनाथ सरकार के छ: माह पूरे होने पर सरकार की उपलब्धियों का जहां कांग्रेस नेता बढ़चढ़ कर बखान कर रहे थे तो उसे विपक्ष के नजरिये आइना दिखाने के लिए पूर्व संसदीय कार्य, जनसंपर्क और जल संसाधन मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा मैदान में उतरे। इसको छोड़ दिया जाए तो पिछले पखवाड़े भाजपा की सारी राजनीतिक गतिविधियां और संगठन से परे सामाजिक सरोकारों के मोर्चे पर भी शिवराज के इर्द-गिर्द घूमती नजर आईं। बेटी बचाओ मुहिम को शिवराज लगातार आगे बढ़ा रहे हैं और इसके लिए विधिवत एक सामाजिक फोरम के तहत कार्यालय खोला जा चुका है। देश की आधी आबादी महिलाओं के बीच शिवराज पुन: अपनी सक्रियता बढ़ाने वाले हैं, वैसे भी महिलाओं के भाई और भांजे-भांजियों के मामा के रुप में शिवराज ने अपनी एक अमिट छवि बनाई है। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि शिवराज जिस नई भूमिका में आ गए हैं उससे कमलनाथ व कांग्रेस के सामने समस्यायें बढ़ेंगी ही और साथ ही साथ भाजपा के उन नेताओं में भी बेचैनी है जो इस उम्मीद में थे कि अब शायद उन्हें प्रादेशिक फलक पर अपनी क्षमता दिखाने का अवसर मिलेगा।
और यह भी
मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच इन दिनों एक प्रकार से शह और मात का खेल चल रहा है और कई मुद्दों पर वे आमने-सामने हैं। कर्जमाफी एवं कानून व्यवस्था के बाद आदिवासियों की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ और शिवराज के बीच भिड़न्त की स्थिति पैदा हो गयी। शिवराज ने अचानक अपने गृह जिले सीहोर के आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए एक ओर जहां पुलिस अफसरों से मोर्चा लिया तो दूसरी ओर स्वयं को आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी प्रचारित करने की कोशिश करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने उनकी सभी मांगे मान ली हैं यह कहते हुए विजय जुलूस भी निकाल दिया। सरकार एवं कांग्रेस की ओर से तत्काल उत्तर दिया गया कि अभी कोई मांग नहीं मानी गयी है, मांगों का परीक्षण करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जायेगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्वयं बिना नाम लिए शिवराज को एक्सपोज करने की नीयत से कहा कि यूपीए के शासनकाल में ही आदिवासियों के हित में निर्णय किया गया था लेकिन आज आदिवासियों को जो परेशानी हो रही है उसकी जिम्मेदार शिवराज सरकार स्वयं थी जिसके निर्णयों के कारण यह स्थिति बनीं, अब कांग्रेस सरकार उनकी गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रही है। सरकार की ओर से मोर्चा संभालते हुए जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा ने पलटवार किया और आरोप लगाया कि शिवराज आदिवासियों के नाम पर सिर्फ सियासत चमकाने की कोशिश कर रहे हैं, आज जो भी समस्यायें सामने हैं वे उनके ही कार्यकाल की देन हैं। साढ़े तीन लाख आदिवासियों के वनाधिकार पट्टे के आवेदन शिवराज सरकार में ही निरस्त किए गए थे, कमलनाथ सरकार तो उनका परीक्षण करके फिर से लाभ देने का काम कर रही है।

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