1998 से 2013 तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस पार्टी जिसके एक नेता का स्व. नेता चौधरी प्रेम सिंह का नाम तो दिल्ली में लगातार चुनाव जीतने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में दर्ज हो गया था। वही कांग्रेस पार्टी वर्तमान में दिल्ली के अपने पुराने दुर्ग को फिर से हासिल करने की जद्दोजहद में लगी है। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने दिल्ली कांग्रेस के तमाम नेताओं के साथ समीक्षा बैठक की। समीक्षा बैठक में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित और तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के साथ-साथ सभी हारे हुए प्रत्याशी भी शामिल हुए। जिसमें गुटबाजी और आपसी कलह जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई। बैठक के बाद शीला दीक्षित ने बड़ा फैसला लेते हुए ब्लॉक कांग्रेस कमेटी को भंग करने का ऐलान कर दिया। बताया जाता है कि यह बड़ी कार्रवाई पांच जांच सदस्यों की सिफारिश पर हुई है। चुनाव में करारी हार की समीक्षा के लिए प्रदेश कांग्रेस ने पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया था।
खबरों के अनुसार कमेटी को ब्लॉक स्तर पर बड़ी खामियां मिलीं। कमेटी ने कांग्रेस की सभी 280 ब्लॉक कमेटियों को तत्काल प्रभाव से भंग करने की सिफारिश की थी। साथ ही नए सिरे से इनके चुनाव का प्रस्ताव किया था। जिसके बाद प्रदेश कांग्रेस ने इन्हें भंग करने का निर्णय लिया। बता दें कि पुरानी कमेटियों का गठन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने किया था। बीते दिनों लोकसभा चुनाव में करारी हार से सीख लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी। दिल्ली कांग्रेस ने सभी ब्लॉक और जिला अध्यक्षों को तीन-तीन संभावित उम्मीदवारों के नाम भेजने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद अभी तक 70 विधानसभा सीटों के लिए 200 संभावित उम्मीदवारों के नाम पार्टी के पास आ चुके हैं। कांग्रेस पार्टी का दावा है कि इस कवायद से उनके उम्मीदवारों को प्रचार करने का ज्यादा वक्त मिल सकेगा। खबरों के अनुसार शीला दीक्षित ने हर विधानसभा क्षेत्र से एक महिला उम्मीदवार का नाम भी मांगा है।
लोकसभा चुनाव के पहले और लोकसभा चुनाव के बाद शीला दीक्षित और पीसी चाको के दो गुटों में बंटी कांग्रेस समन्वय की कमी की वजह से बुरी तरह पस्त नजर आई। इसके अलावा अजय माकन और शीला दीक्षित के बीच के मतभेद कई बार सुर्खियां भी बने। नतीजतन दिल्ली में वापसी के सपने संजोने वाली कांग्रेस को शून्य ही हासिल हुआ। दिल्ली में 56.56 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा ने सूबे की सातों सीटों को फिर से अपने नाम कर लिया। वहीं 22.51 प्रतिशत वोट के साथ कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी।
लेकिन बात जो गौर करने वाली है कि 2014 के चुनाव में सभी सीटों पर तीसरे स्थान पर खिसकने वाली कांग्रेस ने पिछली बार के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति को बेहतर किया है और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में भाजपा को 46.40 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे और सूबे की सातों सीटें उनके नाम हो गई थीं। वहीं पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने 32 प्रतिशत वोट के साथ सीटें तो एक भी हासिल नहीं की लेकिन सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। वहीं कांग्रेस पार्टी करीब 15 प्रतिशत वोट के साथ एक भी सीट नहीं हासिल कर सकी थी और उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर खिसक गए थे। जबकि इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने न सिर्फ अपने वोट शेयर में करीब सात फीसदी का इजाफा किया बल्कि एक दर्जन सीटों पर 30 फीसद से अधिक मत हासिल करने में सफल रही जबकि 39 विधानसभा सीटों पर 20 फीसद से अधिक मत हासिल करने में सफल रही।
सात में से पांच सीटों पर तो मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा। सिर्फ उत्तर पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली सीट पर आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर रही। साल 2013 में आप के शुरु हुए राजनीतिक सफर में जहां विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत वोटों से शुरुआत करने वाली पार्टी देखते ही देखते 2015 के विस चुनाव के सहारे 54.3 प्रतिशत वोट तक पहुंच गई थी। वहीं कांग्रेस पार्टी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 11.43 वोट प्राप्त किए थे तो यह आंकड़ा साल 2015 में घटकर 9.7 प्रतिशत हो गया था। जिसके बाद इस बार अपने वोट शेयर में इजाफा और कांग्रेस से छिटककर आप के पाले में गए कुछ वोटरों को वापस प्राप्त कर पार्टी आशान्वित महसूस कर रही है। ऐसे में छह महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस मिशन वापसी में पूरी करह जुट गई है।