नए स्वरूप में हरेली तिहार……. बिखरेगी छत्तीसगढ़ी संस्कृति की छटा

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हरेली तिहार पर विशेष लेख

 

गौठानों में गौमाता के साथ ही गैंती, नांगर, फावड़ा की होगी पूजा

गेंड़ी, कबड्डी, फुगड़ी खेल के साथ ही नाचा-गम्मत का होगा आयोजन

रायपुर — छत्तीसगढ़ के गांवों में इस वर्ष सावन के महीने में हरेली त्यौहार दोगुने उत्साह के साथ मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हरेली तिहार के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए हरेली को सामान्य अवकाश घोषित कर छत्तीसगढ़ी की परम्परा के अनुरूप नये स्वरूप में व्यापक स्तर पर जनभागीदारी के साथ मनाने का निर्णय लिया है।

एक अगस्त को सभी जिला, जनपद मुख्यालयों और ग्राम पंचायतों में गौठानों में गौ माता के साथ ही गैंती, नांगर, फावड़ा की पूजा, नाचा, गम्मत के सांस्कृतिक कार्यक्रम और फुगड़ी, कबड्डी, भौंरा जैसे ग्रामीण खेलकूद के आयोजन किए जाएंगे साथ ही पौधरोपण का कार्यक्रम भी होगा। इस मौके पर ठेठरी, खुरमी, पपची, चीला, फरा जैसे छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्टॉल लगाए जाएंगे।

छत्तीसगढ़ में कृषि संस्कृति के अनुसार त्यौहारों की शुरूआत हरेली से होती है। यह त्यौहार पूरे राज्य में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हरेली का अर्थ होता है हरियाली और हरियाली यानि प्रकृति का श्रृंगार और तिहार(त्यौहार) का अर्थ है खुशियों की सामूहिक अभिव्यक्ति। यह मूलतः किसानों को त्यौहार है। गर्मी के मौसम में जब पेड़-पौधे सूख जाते हैं, हरियाली नष्ट हो जाती हैं और बारिश आने के बाद मौसम आने पर फिर से चारों तरफ हरियाली छा जाती है। ऐसे में गांवों में खेती-किसानी को लेकर खुशी का वातावरण बनता है। वास्तव में हरेली का त्यौहार मानव और प्रकृति के बीच अगाध संबंध को दर्शाता है।

नई सरकार द्वारा गांव की समृद्धि के लिए महत्वकांक्षी सुराजी गांव योजना को लेकर न सिर्फ किसानों में उत्साह है बल्कि पूरे प्रदेश में प्रसन्नता का वातावरण बना है। यह योजना छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरवा और बाड़ी की पहचान को फिर से साकार करेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

गेड़ी नाच और गेड़ी दौड़ हरेली तिहार का मुख्य आकर्षण होती है। गेड़ी हर उम्र के लोगों को लुभाती है। ग्रामीण बच्चे और युवा गेड़ी के साथ गांव की गलियों में चहलकदमी आनंद लेते हैं। गेड़ी बांस से बनायी जाती है। गेड़ी नृत्य के दौरान निकलने वाली चर-चर की ध्वनि बरबस ही लोगों को आकर्षित करती है।

इसी तरह किसान इस दिन कृषि औजारों नांगर, गैती, कुदाली, रापा आदि की पूजा कर कृषि कार्य के लिए दुगुने उत्साह से जुटने का प्रण लेते हैं। घरों में इस दिन किसान कुल देवता की पूजा करते हैं। महिलाएं चांवल और गुड का चीला और अन्य पकवान बनाती हैं। इस दिन अनिष्ट से रक्षा और सौभाग्य की कामना तथा प्रकृति के साथ संबंध को प्रदर्शित करते हुए घरों में नीम की डालियां भी बांधते हैं।

राज्य सरकार ने ग्रामीण जनजीवन को खुशहाल बनाने के लिए सुराजी गांव योजना शुरू की है। योजना में पशुधन के संवर्धन के लिए गौठान और चारागाह का निर्माण के साथ ही बायोगैस संयंत्र, दुग्ध उत्पादन, जैविक खाद बनाने जैसी आर्थिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। नरवा कार्यक्रम के अंतर्गत गांव में सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए मौसमी नदी, नालों के पुनर्जीवन और जल संचयन के कार्य प्रारंभ किए गए। इस योजना के अन्य घटकों में घुरूवा के माध्यम से जैविक खाद बनाने और बाड़ी कार्यक्रम के तहत घरों में जैविक सब्जियों के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे गांव के लोगों की आमदानी का अतिरिक्त साधन मिलेगा। वहीं किसानों को दोहरी फसल लेने के लिए सिंचाई सुविधा का विस्तार होगा।
योजना के पहले चरण में प्रदेश में ढ़ाई हजार माडल गौठानों का विकास किया जा रहा है। इसके तहत सभी विकासख्ंाड़ों और प्रमुख गांवों में गौठानों का निर्माण किया जा रहा है। जहां पशुओं के लिए डे-केयर की व्यवस्था रहेगी। पशुधन संवर्धन और दुग्ध उत्पादन, चारा गाह विकास जैसे अन्य कार्य भी गौठानों में किए जा रहे हैं। यहां बायोगैस संयंत्र और स्मार्ट घुरवा तैयार कर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

गांवों में पौनी पसारी करने वाले लोगों के लिए भी इस बार यह त्यौहार खुशियां लेकर आया है। सभी नगरीय निकायों में उनके काम काज के लिए चबूतरा और शेड निर्माण की घोषणा राज्य सरकार द्वारा की गई है। इससे गांव में बढ़ाई, धोबी, कुम्हार, लोहारी सहित विभिन्न कार्य करने वाले लोगों को सीधा फायदा मिलेगा।

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