क्या दादी के परिवार में शामिल हो सकते हैं ग्वालियर महाराज…
मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में खबर गर्म है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के विचार परिवार यानी भाजपा में आ सकते हैं। कश्मीर मामले में उनके रुख से भी इन चर्चाओं को बल मिल रहा है। यूं तो विधानसभा चुनाव के समय से ही यह सुनने मिल रहा था कि भाजपा सुनियोजित रणनीति के तहत सिंधिया को कांग्रेस के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है ताकि कांग्रेस में कमलनाथ और सिंधिया के बीच महाभारत छिड़ जाय, जिसका फायदा भाजपा को मिले। लेकिन इस तरह की खबरों के बीच मध्य प्रदेश कांग्रेस में बखेड़ा खड़ा नहीं हुआ और इसका परिणाम यह निकला कि कांग्रेस ने भाजपा को धकेल दिया। बहुमत के लिए कांग्रेस ने जतन किए और मुख्यमंत्री के पद पर कमलनाथ की ताजपोशी हो गई। जिस तरह राजस्थान में सचिन पायलट अपेक्षित हुए, उसी तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सपने बिखर गए। फिर चर्चा छिड़ी की सिंधिया नाराज हैं तो उन्हें प्रियंका वाड्रा के साथ साझेदारी में उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंप दिया गया। सिंधिया के लिए यह प्रभार राजनीतिक तौर पर घातक साबित हुआ। यूपी में कांग्रेस की राजमाता ही जीत सकीं। तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी खानदानी सीट अमेठी से खुद चुनाव हार गए। यूपी में राहुल, प्रियंका फेल हो गए तो सिंधिया भला क्या कर पाते। राहुल तो कांग्रेस के सरदार थे। उन्होंने केरल के वायनाड से लोकसभा पहुंचने का इंतजाम कर लिया। लेकिन सिंधिया तो सियासी बाज़ार में लुट गए। सिंधिया राजघराने के महाराज लोकसभा चुनाव हार गए। इस हार ने मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया की अहमियत को चोटिल कर दिया।मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी छिंदवाड़ा सीट से अपने राजकुमार नकुल नाथ को लोकसभा भेजने में कामयाब रहे। मगर अतीत में मुख्यमंत्री बनने से चूके माधव महाराज के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनने से चूके तो चूके अपनी लोकसभा सीट भी नहीं बचा पाए। यदि सिंधिया को यूपी में व्यस्त न किया गया होता तो शायद उनकी ऐसी स्थिति नहीं होती। अब स्वयं चुनाव हार जाने के बाद सियासी फर्क पड़ता ही है। सिंधिया इस्तीफा दे चुके अध्यक्ष राहुल के खास सहयोगी होने के बावजूद राजनीति के शिकार हो गए तो अब यह चर्चा चल पड़ी है कि सोनिया गांधी को फिर से कांग्रेस की कमान सौंप दिए जाने के बाद सिंधिया अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर किस तरह की संवेदनशीलता दिखाएंगे। कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा सिंधिया को साध कर कांग्रेस को तगड़ा सदमा देने की कोशिश कर सकती है। राजनीति में संभावनाएं हमेशा जिन्दा रहती हैं। यहां असम्भव कुछ भी नहीं होता। बहरहाल सिंधिया क्या करेंगे, यह तो केवल वही जानते हैं।