भाजपा उपचुनाव में हारी तो , बस्तर से हो जाएगा सुपड़ा साफ

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बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में से एक मात्र दंतेवाड़ा ही वो सीट है जो बीजेपी के खाते में आई थी

दंतेवाड़ा — दंतेवाड़ा उपचुनाव  का शोरगुल थम चुका है. 23 सितंबर को इस सीट पर वोटिंग  होनी है ।सहानुभूति  वर्सेस सहानुभूति की इस ‘जंग’ में कांग्रेस  से ज्यादा बीजेपी  की साख दांव पर लगी है. बस्तर  संभाग की 12 विधानसभा सीटों में से एक मात्र दंतेवाड़ा ही वो सीट है, जो बीजेपी के खाते में आई थी,  लेकिन विधायक भीमा मंडावी  की हत्या के बाद वहां फिर एक बार चुनाव होने जा रहे हैं । दंतेवाड़ा के दंगल को सिंपैथी पॉलिटिक्स  से जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस से जहां झीरम हमले  में मारे गए दिवंगत नेता महेन्द्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा  मैदान में है । तो वहीं बीजेपी ने भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मण्डावी  को मैदान में उतारा है ।

दंतेवाड़ा उपचुनाव में सिंपैथी फैक्टर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों तरफ काम कर रहा है ।इसलिए ये कह पाना मुश्किल है कि आखिर यहां के मतदाताओं को कौन सा फैक्टर प्रभावित करेगा. लेकिन इतना जरूर है कि बस्तर की एक मात्र सीट को बचाने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है । विधानसभा की हार के बाद दिग्गजों की भी प्रतिष्ठा इसी सीट से जुड़ी हुई है । प्रचार में पूरी ताकत बीजेपी ने झोंक दी है. वहीं बीजेपी प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने आरोप गया है कि सत्ता पक्ष ने दंतेवाड़ा उपचुनान में साम-दाम-दण्ड-भेद का उपयोग कर रही है ।

कांग्रेस ने कही ये बात…

इधर कांग्रेस भाजपा मुक्त बस्तर का टारगेट  लेकर चल रही है । सहानभूति लहर को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि दिवंगत महेन्द्र कर्मा की छवि अब भी लोगों के दिलों में बसी हुई है । इसके अलावा बीते 8 महीनों में सरकार ने जो काम किया है वो मतदाताओं पर असर डालेगी. बहरहाल, 23 सितंबर को प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो जाएगा और 27 सितंबर को ये साफ हो जाएगा कि बीजेपी दंतेवाड़ा सीट के रूप में बस्तर में अपनी बची-कुची साख बचा पाती है या नहीं ।

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