भाजपा राज और उसके संरक्षण में आदिवासी विरोधी प्रशासन के कुकृत्यों की पुष्टि की मानवाधिकार आयोग ने — माकपा

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रायपुर , 15 फरवरी 2020 — वर्ष 2007 में सलवा जुडूम अभियान के अंतर्गत सुकमा जिले के तीन गांवों में हत्या और आगजनी के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रशासन और तब की भाजपा सरकार को दोषी माना है और जिम्मेदारों पर कार्यवाही की अनुशंसा की है। उसने कहा है कि घटना के उजागर होने के बाद जिम्मेदारों पर कार्यवाही करने के बजाए सरकार ने पूरे मामले को दबाने और इसके लिए पीड़ितों पर ही कहर बरपाने का काम किया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस सरकार से मांग की है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रमनसिंह, गृह मंत्री ननकीराम कंवर, एसपी और एसपीओ सहित तमाम जिम्मेदार अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।

आज यहां जारी अपनी प्रतिक्रिया में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि भाजपा प्रायोजित सलवा जुडूम अभियान में नक्सलियों के खिलाफ अभियान के नाम पर असल में आदिवासियों के खिलाफ ही युद्ध छेड़ दिया गया था, ताकि गांवों को खाली कराकर जल-जंगल-जमीन-खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेटों को सौंपा जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आदिवासियों के बीच से ही नाबालिगों को एसपीओ के रूप में भर्ती किया गया था और आदिवासियों के खिलाफ ही आदिवासियों का इस्तेमाल किया गया था। जबरन गांव खाली करवाने के लिए सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं द्वारा सरकार और प्रशासन के संरक्षण में हत्याएं और आगजनी भी की गई थी। इस अभियान के चलते लाखों आदिवासियों को अपने घरों और गांवों से पलायन करना पड़ा था, हजारों आज भी लापता है और प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या में 1.5% की गिरावट आई है।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि वर्ष 2007 में सुकमा जिले के तीन गांवों — कोंडासावली, कर्रेपारा और कामरागुड़ा — के 95 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था और 7 आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी। मामला उजागर होने पर सरकार ने इसका दोष नक्सलियों पर मढ़ा था, जबकि पीड़ित आदिवासियों, ग्रामीणों और स्वतंत्र जांच दलों का स्पष्ट कहना था कि यह बर्बरता प्रशासन द्वारा की गई है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार और प्रशासन का उद्देश्य इन घटनाओं के बारे में सच्चाई का पता लगाना नहीं था, अपितु इन अपराधों को छिपाना था। आयोग ने तत्काल प्रभाव से भाजपा सरकार की हत्यारी मुहिम के शिकार आदिवासियों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये मुआवजा देने के भी निर्देश दिए है। माकपा ने मांग की है कि आगजनी के शिकार आदिवासियों को भी मुआवजा दिया जाए।

माकपा नेता पराते ने कहा कि ताड़मेटला कांड पर रिपोर्ट के बाद यह दूसरी महत्वपूर्ण और बड़ी रिपोर्ट है, जिसमें तत्कालीन भाजपा सरकार और उसके संरक्षण में आदिवासी विरोधी प्रशासन के कुकृत्यों की पुष्टि की गई है। मानवाधिकार आयोग की जांच और सिफारिशों के मद्देनजर माकपा ने तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों, इस घटना में लिप्त जगरगुंडा बेस कैम्प के एसपीओ, जांच के नाम पर पूरी घटना का फ़र्ज़ीकरण करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर हत्या का मुकदमा कायम करने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि बस्तर में मानवाधिकार हनन के आरोपी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ कार्यवाही करने से जिस तरह कांग्रेस सरकार ने इंकार किया है और पदोन्नति दी है, उससे ऐसा लगता है कि आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई एक अंतहीन लड़ाई है। कल्लूरी मामले में इस सरकार की छवि धूमिल हुई है और अब यह मौका है कि सरकार आदिवासियों को न्याय दिलाने का साहस दिखाए।

 

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