सियासत है तो नारे है …… नारे बुलंद कीजिये , चुनाव जीतिए
रायपुर — इतिहास गवाह है कि देश में चुनाव प्रचार में लगने वाले नारों की अपनी अहमियत होती है। कुछ नारे इतने बुलंद हो जाते हैं कि उनकी सहारे चुनाव लड़े भी जाते हैं और जीते भी। जनता के राजनीतिक नजरिए को आकार देने में चुनावी नारों की अहम भूमिका होती है। पार्टियों के नारों से उनकी विचारधारा और मुद्दों का पता चलता है। हमारे देश में चुनावी नारों का पुराना और दिलचस्प इतिहास रहा है। आइए आजादी के बाद से अब तक के ऐसे ही कुछ लोकप्रिय नारों के बारे में गहराई से जानें –
“अच्छे दिन आने वाले हैं” – “हर हर मोदी, घर घर मोदी”
2014 लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए “हर हर मोदी, घर घर मोदी” का नारा दिया था, जिसने देश में मोदी लहर को हवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस बीच नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया अच्छे दिन का नारा भी लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा। नारा था “अच्छे दिन आने वाले हैं”। इसी के बाद भाजपा देश में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली पहली गैर कांग्रेसी पार्टी बन कर सामने आई।
“हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है”
2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है” के नारे के बलबूते पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। माना जाता है कि सामान्य तौर पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय पार्टी को ब्राह्मण वोटरों का फायदा पहुंचाने के इरादे से मायावती ने यह नारा दिया था।
“कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ”
2004 में लोकसभा चुनवों के दौरान यूपीए गठबंधन में कांग्रेस का मुख्य नारा था ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’। हालांकि सभी को उम्मीद थी कि इस बार एनडीए सरकार सत्ता में वापसी करेगी, लेकिन 13 मई को चुनाव परिणाम आने पर मालूम हुआ कि इसी नारे के साथ कांग्रेस ने 218 सीटों पर जीत हासिल कर के भाजपा के “इंडिया शाइनिंग” के नारे को मात दे दी।
“सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी”
1998 में हुए 12वें लोकसभा चुनावों के दौरान, भारतीय जनता पार्टी लोगों की भावनाओं और आस्था से जुड़े मुद्दे पर लड़ रही थी। उस दौरान राम मंदिर मसला सबसे संवेदनशील विषय था। इसी बीच भाजपा ने अपनी नीति पर आधारित दो नारे दिए थे जिसे जनता का पुरजोर समर्थन मिला। इनमें से एक था, “राम, रोटी और स्थिरता” और दूसरा नारा था “सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी”। इन नारों का असर यह हुआ कि 12वें चुनावों में भाजपा को कुल 182 सीटों पर जीत मिली।
“सबको परखा, हमको परखो”
1991 के चुनाव प्रचार के दौरान जब कांग्रेस स्थिर सरकार पर जोर दे कर चुनावी रण में उतर रही थी, तब भारतीय जनता पार्टी ने जनता से वोट की अपील करते हुए नारा लगाया कि, “सबको परखा, हमको परखो”।
“न जात पर, न पात पर, स्थिरता की सरकार पर, मुहर लगेगी हर बात पर”
1989 में कांग्रेस के हार जाने के बाद गठबंधन सरकार मात्र 16 महीने में गिर गई थी। इस दौरान देश में चल रही राजनीतिक अस्थिरता को भांपते हुए कांग्रेस ने 1990 में राजीव गांधी के पक्ष में नारे लगाए जिसकी लोगों के बीच जम कर चर्चा हुई। यह नारा था, “न जात पर, न पात पर, स्थिरता की सरकार पर, मुहर लगेगी हर बात पर”।
“इंदिरा हटाओ, देश बचाओ”
देश में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में लगाए गए आपातकाल के बाद विपक्षियों ने कांग्रेस के पुराने और लोकप्रिय नारों के जवाब के माध्यम से ही उनपर हमला बोलना शुरू किया। इसी दौरान जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को आड़े हाथों लेते हुए “इंदिरा हटाओ, देश बचाओ” का नारा दिया था। हालांकि 1980 में अंदरूनी कलह के कारण जनता पार्टी के टूट जाने के बाद कांग्रेस ने इसके जवाब में जन संघ पर तंज कसते हुए नारा लगाया कि, “सरकार वो चुनें जो चल सके।”
“गरीबी हटाओ”
1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को भुनाया था। चुनाव प्रचार में उन्होंने यह कहते हुए लोगों की हमदर्दी बटोरी, ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’। विरोधियों ने गरीबी हटाओ के जवाब में नारा दिया, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’। लेकिन वह काम नहीं आया। पांचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने 518 में से 352 सीटों पर विजय पाई। ‘गरीबी हटाओ’ उन विरले नारों में से था, जिसने उसे गढ़ने वाले को चुनाव में बड़ी सफलता दिलाई। इंदिरा ने इस नारे के सहारे चुनाव जीतने के चार साल बाद 1975 में एक 20 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया, जिसका लक्ष्य गरीबी पर हमला था।
“वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज”
1962 में तीसरे लोकसभा चुनावों के दौरान जनसंघ के जुलूस में पं. नेहरू की विदेशनीति के खिलाफ यह नारा लगाया गया था। उन दिनों पं. नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। पाकिस्तान और चीन से भारत को हमले का खतरा था। एक तरफ संयुक्त राष्ट्र की शांति-सेना में सम्मिलित हो कर भारतीय सैनिक शांतिरक्षा का काम कर रहे थे और दूसरी तरफ बेरूबाड़ी से अक्साइचीन तक के भारतीय भूप्रदेश को विदेशी सैनिक रौंदते जा रहे थे।
तत्कालीन सरकार का विरोध करते हुए भारतीय जनसंघ के वरिष्ठ नेता जगन्नाथराव जोशी ने “वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज” का नारा दिया था।
“स्थायी, असांप्रदायिक, प्रगतिशील सरकार के लिए”
1951-52 के में पहले लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के चुनावी मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए यह नारा लगाया गया था। जनता के मन में पार्टी और सरकार के प्रति समर्थन भाव जगाने के इरादे से कांग्रेस के गुणों को इंगित करते हुए इस नारे के माध्यम से अपील की गई कि अगर आप देश में स्थायी, असांप्रदायिक और प्रगतिशील सरकार चाहते हैं तो कांग्रेस को वोट दें।