गौठान के नाम पर जर्जर भवन में रखे 50 मवेशियों की मौत प्रदेश सरकार की कलंकपूर्ण कार्यप्रणाली की द्योतक — भाजपा
गौ-धन की मौतों का यह सिलसिला प्रदेश सरकार के लिए काफी महंगा पड़ेगा : साय
रायपुर — भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने बिलासपुर संभाग में तखतपुर ब्लॉक के ग्राम मेड़पार बाजार में एक जर्जर भवन परिसर में रखे गए 120 में से 50 से ज़्यादा मवेशियों की मौत और 50 से अधिक मवेशियों की दशा गंभीर होने की घटना को प्रदेश सरकार की कलंकपूर्ण कार्यप्रणाली का द्योतक बताते हुए जमकर हमला बोला है। श्री साय ने कहा कि मवेशियों की मौत के इस ताज़े मामले से यह स्पष्ट हो चला है कि नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी का नारा देने और गौ-धन न्याय योजना का ढोल पीटने वाली प्रदेश की नाकारा कांग्रेस सरकार गौठानों की कोई पुख्ता इंतज़ाम तक नहीं कर पा रही है और जिन पर गौठानों के संचालन का ज़िम्मा थोप दिया गया है, वे भी कुछ कर पाने में ख़ुद को असहाय पा रहे हैं और मूक पशुधन अकाल मौत के मुँह में समा रहे हैं। गौ-धन की मौतों का यह सिलसिला प्रदेश सरकार के लिए काफी महंगा पड़ेगा।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि प्रदेश सरकार काम करने के बजाय दिखावे में ज़्यादा यक़ीन कर रही है। गौठान बने नहीं हैं, जो बने हैं उनमें चारा-पानी तक का कोई इंतज़ाम नहीं है, गौठानों की बदइंतज़ामी-बदहाली के कई ज़मीनी सच से यह प्रदेश रू-ब-रू हो चुका है और मेड़पार बाजार की यह घटना प्रदेश सरकार के नाकारेपन की इंतिहा दर्शाने वाली है। यही कारण है कि उसकी रोका-छेका योजना भी दीग़र योजनाओं की तरह सुपर फ्लॉप शो साबित हो रही है। श्री साय ने कहा कि अपनी वाहवाही कराने में मशगूल इस प्रदेश सरकार ने रोका-छेका योजना का नारा तो दे दिया पर उसके लिए आवश्यक संसाधनों को जुटाने पर उसका ध्यान ही नहीं है। आधी-अधूरी तैयारियों के साथ प्रदेश सरकार झूठे आँकड़ों के सहारे नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने का सिर्फ़ जुबानी जमाखर्च कर रही है। नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी योजना के बुरे हश्र के बाद प्रदेश सरकार को मान लेना चाहिए कि उसमें प्रशासनिक सूझबूझ और नेतृत्व की क्षमता नहीं है और इसके कारण सरकार की नीयत और नीति सवालों में घिर गई है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि रोका-छेका योजना के नाम पर मुख्यमंत्री बघेल ने प्रदेश को भरमाने और रोका-छेका की वर्षों से चली आ रही ग्राम्य-परंपरा को बदनाम करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। इस योजना से पहले प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में कभी लगातार पशुधन की मौतों के मामले नहीं सुने जा रहे थे लेकिन अब इस योजना क्या हश्र हो रहा है, प्रदेश इसका साक्षी है। गौ-वंश की रक्षा न कर पाना प्रदेश सरकार के कृषि-विरोधी चरित्र का परिचायक है। कुल मिलाकर, ‘रोका-छेका’ और गौ-धन न्याय योजना की सियासी नौटंकी खेलकर मुख्यमंत्री अपने दोहरे राजनीतिक चरित्र का प्रदर्शन कर रहे हैं और गौ-धन की रक्षा के नाम पर सिर्फ़ हवा-हवाई बातें कर रहे है।