कमरछठ ” व्रत” महिला स्वास्थ्य सुरक्षा व पोषण का पर्व ।

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रायपुर, 8 अगस्त 2020 —  छत्तीसगढ़ में महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा जाने वाला व्रत कमरछठ यानी हल षष्ठी व्रत को संतान के स्वास्थ्य और दीर्घ आयु से जोड़कर देखा गया है लेकिन इस पर्व का वैज्ञानिक आधार भी है|

इस दिन महिलाएं दिन भर निर्जला उपवास रखती हैं और दिन भर में केवल महुआ की लकड़ी और महुआ की खरी का ही इस्तेमाल करती हैं । उपवास की सामग्री में महुआ के पत्ते की थाली (पतरी), महुआ की लकड़ी का चम्मच, महुआ का तेल (टोरी तेल) उपयोग में लाया जाता है तथा लाई, धान, महुआ के सुखे फुल, बटर, गेहूँ, चना का भी विशेष महत्व बताया गया। पूजा के लिए कुंड खोदकर पूजा अर्चना करती हैं। गाय की पूजा करते हैं अतः इस दिन भैंस के दूध एवं घी,दही का सेवन करते हैं। बिना हल चलाए उपजे धान का चावल यानी पसहर चावल और 6 प्रकार की भाजी पकाते हैं । ऐसी 6 प्रकार की भांजियां जो बिना हल चलाए उगने वाली होती है इनमें मुनगा, जरी, कद्दू, चेच एवं कान्दा भाजी इस मौसम की भाजिया है। ये सभी भाजिया खनिज लवण और विटामिन का उत्तम स्त्रोत हैं। इन भांजियों को केवल उबाल कर घी की छोक दी जाती हैं ताकि पौष्टिक गुण यथावत रहे।

डिग्री गर्ल्स कॉलेज की फूड एवं न्यूट्रेशन विभाग की प्रोफेसर. डॉ अभ्या आर. जोगलेकर बताती हैं सदियों से चली आ रही उपवास की परंपरा वैज्ञानिकता से परिपूर्ण महिला स्वास्थ्य व पोषण पर आधारित हैं। महुआ एक औषधीय गुणों से युक्त वृक्ष है। आदिवासी क्षेत्रों में इसकी बहुलता होने के कारण इसका इस्तेमाल इस पूजा में किया जाता है। हमारे देश में मौसम के अनुसार उपलब्ध फल का उपयोग पूजा में किया जाता है । कमरछठ के दिन महुआ का दातुन किया जाता है इससे दांतो से खुन और मुँह से दुर्गन्ध नहीं आती। महुआ को मासिक धर्मं में विकार, दूध बढ़ाने के लिए, दर्दनिवारक तथा चर्म रोग आदि में उपयोग किया जाता है। संध्याकाल में उपवास तोड़ने के बाद पसहर चावल (Red Rice) का सेवन करते हैं इसमें एन्टी-आक्सीडेन्ट भरपुर मात्रा में होता है जिसे एंथोसाइएनिन्स भी कहते है। यह शरीर में होने वाली जलन, एलर्जी, कैंसर के खतरे को कम और वजन को नियंत्रित रखने में सहायता प्रदान करता है। पसहर चावल और भाजियों के सेवन के साथ साथ भैंस की दही और दुध का भी सेवन किया जाता है जिसमें बहुत से मिनरल्स पाये जाते हैं।

आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. गुलशन कुमार सिन्हा ने बताया, कमरछठ पर्व पर उपवास के दिन जो काशी बांधने की क्रिया होती है उसका वैज्ञानिक महत्व है| “हमारी हथेलियों में एक्युप्रेशर पाइंट होती है जिनको दबाने से शरीर में विभिन्न क्रियाएँ होती है। हमारे अंगुठे में ऊपर मस्तिष्क का तथा उसके नीचे पीयूष ग्रंथि (pituitary gland) का केन्द्र होता है। अंगुठे और अनामिका अंगुली को जोड़ने से जो मुद्रा बनती है उसे पृथ्वी मुद्रा कहते हैं| जब इस मुद्रा से कासी (घास) को पकड़ कर बांधते हैं तो अनामिका अंगुली से अंगुठे का पीयूष ग्रंथि का पाइंट दबता है। चिकित्सकीय दृष्टि से देखें तो बार बार पीयूष ग्रंथि के पाइंट को दबाने से हार्मोन स्त्रावित होता। अर्थात यह हार्मोन संन्तानोत्पत्ति में सहायक होता है। इसलिए प्राचीन मान्यताओं में कमरछठ को संतानोत्पत्ति या संतान के स्वास्थ्य से जोड़ कर देखा जाता है।

पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित होने वाले हार्मोन:-

TSH हार्मोन यह हार्मोन थायराइड को नियंत्रित रखती है।

GH हार्मोन के कारण वृद्धि प्रक्रिया सक्रिय होती है।

ACTH यह हार्मोन एड्रिनल ग्रंथि को नियंत्रित करती है।

FSH यह हार्मोन Ovary में अण्डे को विकसित करता है।

LH हार्मोन अण्डे को Ovary से बाहर निकालता है।

इन भाजियों में है विटामिन और मिनिरल्स :-

1. मुनगा भाजी:- यह अपने आप में एक पुर्णतः औषधीय पौधा है इसके पत्तों को ही भाजी कहते हैं, इसकी पत्तियों में प्रोटीन के साथ साथ विटामिन B6, विटामिन C, विटामिनA, विटामिन E , आयरन, मैग्निशियम, पोटैशियम और जिंक जैसे मिनरल पाये जाते हैं । एनिमिया को ठीक करने में मुनगा कारगर माना जाता है।

2. जरी भाजी:- सबसे अधिक ग्रीन ब्लड सेल्स इसी भाजी में पाया जाता है।

3. अमारी (खट्टा) भाजी:- पाचन में सहायक है पेट साफ करने के लिए फायदेमंद (सुपाच्य) है ।

4. कद्दु भाजी:- बाल झड़ने को रोकने में उपयोगी।

5. कांदा भाजी:-यह चर्म रोग ( skin disorder) में लाभदायक है।

6. चेंच भाजी:- इसमें प्रोटीन 8.7% और कार्बोहाइड्रेट 66.04% पाया जाता है।

 

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