राजीव भवन में नेहरू पुण्यतिथि के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हुए शामिल , उनकी विरासत और उनके कार्यों की चर्चा की और कहा – पूर्वजों को याद करना धरोहर की तरह है

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रायपुर — नेहरू जी की किताब भारत की खोज को बहुत सारे लोगों ने पढ़ा होगा पर उनके ज्ञान को देखकर कई बार हम चकित भी हो जाते हैं.

नेहरू जी ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था कि कट्टरता चाहे कैसी भी हो, देश के लिए यह बेहद नुकसानदेह साबित होगा.

देश के नवनिर्माण की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने एम्स से लेकर आईआईटी और अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र की स्थापना की.

नेहरूजी की दूरगामी सोच ही थी जो गरीबी और भुखमरी से निपटने के लिए व्यापक सोच प्रदर्शित की.

आज हम वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं तो उसके पीछे नेहरूजी की सोच थी.

नेहरूजी सवाल पूछे जाने के पक्षधर थे और यह मानते थे कि आजादी में कालर पकड़कर सवाल पूछने का अधिकार इस लोकतंत्र ने दिया है.

आज के प्रधानमंत्री से आपको सवाल पूछने का अधिकार नहीं है. धर्मनिरपेक्षता खतरे में है.

वैज्ञानिक सोच का स्थान पोंगापंथ ने ले लिया है.

नेहरू जी ऐसे भारत की कल्पना करते थे जो पोंगापंथ और दकियानूसी विचारों को आगे न बढ़ाए.

नेहरू जी के भारत की कल्पना में संकुचित राष्ट्रवाद का स्थान नहीं था. सभी को साथ लेकर चलने की सोच थी उनके भीतर.

आजादी की लड़ाई में कुछ लोग नेहरू जी को दोष देते हैं पर बंटवारा जिन्ना ने किया. इसकी कल्पना सावरकर ने की थी जिसे पूरा करने का काम जिन्ना ने किया.

व्याख्यान में लेखक व विचारक पुरषोत्तम अग्रवाल बोले-

जिस दिन जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ, उस दिन मेरे घर में खाना नहीं बना.

पुरुषोत्तम अग्रवाल बोले जिस वक्त नेहरू जी निधन हुआ उस वक़्त मैं 9 साल का था.

मैंने अपनी मां और पिता को रोते हुए देखा है. मैं जिस मठ में जाता था, वहां के महंत को रोते हुए देखा है.

जबकि वो बहुत बड़े आलोचकों में थे नेहरू जी के. जवाहरलाल अगले साल, अगली पीढ़ी नहीं अगली सदी की सोचते थे.

जवाहर लाल नेहरू ने दूरदर्शी सोच ही एटॉमिक एनर्जी की आधारशिला रखी.

आज झूठ को इतनी बार बोला जाता है कि वो सच हो जाता है. लोग कहते है कि सच के पर नहीं होते, लेकिन सोशल मीडिया के वक़्त में झूठ के पैर नहीं पर होते है.

जिस वक्त सच पैर में जुते की फीते बांध रहा होता है, उस वक़्त झूठ दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है.

नेहरू और पटेल दोनों जानते थे कि उनके बीच में मतभेद की बात प्रचारित की जाएगी.

इसके बाद भी पटेल ने नेहरूजी को न सिर्फ नेता स्वीकार किया बल्कि दोनों ने देश के लिए साथ काम भी किया.

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