सीएम की कुर्सी को लेकर फिर खिंची भाजपा और शिवसेना में तलवारें

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महाराष्ट्र में इस साल विधानसभा के चुनाव हैं और सत्ताधारी NDA लोकसभा चुनाव की तरह ही अपने शानदार प्रदर्शन को जारी रखना चाहेगा। गठबंधन में रहने के बावजूद शिवसेना केंद्र और राज्य की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार पर लगातार हमलावर रही है लेकिन सीट बंटवारे के बाद दोनों दलों के बीच रिश्ते सामान्य नजर आने लगे। हालांकि एक बार फिर शिवसेना ने भाजपा को लेकर अपने रूख कड़े कर दिए है। कहना गलत नहीं होगा कि यह शिवसेना की भाजपा पर दबाव बनाने की नीति है। पर सवाल यह उठता है कि जब सीट का बंटवारा हो गया है तो फिर शिवसेना भाजपा पर दबाव क्यों बनाएगी?

जवाब के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि हो सकता है कि शिवसेना केंद्र में और भागीदारी चाहती हो। इसके अलावा यह भी खबर है कि पार्टी लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद चाहती है। पर असली मुद्दा महाराष्ट्र सीएम पद की कुर्सी है। कभी सार्वजनिक तौर पर यह नहीं कहा गया है कि अगर महाराष्ट्र में NDA जीतता है तो मुख्यमंत्री किस पार्टी का होगा क्योंकि शिवसेना और भाजपा दोनों बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही है। शिवसेना मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आंखें गड़ाए हुए है। कुछ दिन पहले तक शिवसेना की तरफ से यह कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री उसकी पार्टी से होगा क्योंकि भाजपा के पास पांच साल तक मुख्यमंत्री का पद रह चुका है। हालांकि भाजपा इस बात को लगातार खारिज करती रही है। भाजपा यह मानती है कि महाराष्ट्र का चुनाव देवेंद्र फडणवीस और मोदी के काम पर लड़ा जाएगा और दोनों ही भाजपा के हैं। इसके अलावा पार्टी आलाकमान खासकर के नरेंद्र मोदी और अमित शाह शिवसेना की इस मांग को भाव देते नजर नहीं आ रहे हैं।
अब शिवसेना ने अपना अगला पैंतरा शुरू कर दिया है। शिवसेना ने अब कहा है कि मुख्यमंत्री का पद शिवसेना और भाजपा के पास ढाई-ढाई वर्ष के लिए रहेगा। इस बात पर भी भाजपा राजी नहीं है और वह सीट बंटवारे के अलावा शिवसेना से किसी भी मुद्दे पर कोई समझौता नहीं चाहती। यह बात शिवसेना को भी अच्छे से पता है कि वर्तमान की भाजपा पर दबाव बना पाना काफी मुश्किल है। पर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि शिवसेना यह सब जानते हुए भी ऐसा बार-बार क्यों कर रही है? तो इसका जवाब यह है कि फिलहाल शिवसेना अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है क्योंकि भाजपा लोकसभा चुनाव में अपने वर्चस्व को कामय रखने में कामयाब रही है। खुद शिवसेना के सांसद यह मानते हैं कि वह शिवसेना में होने की वजह से कम और मोदी लहर की वजह से ज्यादा जीते हैं। शिवसेना विधानसभा चुनाव के बहाने ही भाजपा को महाराष्ट्र में अपनी पार्टी की अहमियत और प्रासंगिकता को दिखाने में जुट गई है।
शिवसेना महाराष्ट्र की क्षेत्रीय पार्टी है और भाजपा के साथ उसका गठबंधन काफी पूराना है। हालांकि बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना महाराष्ट्र में कमजोर हुई तो भाजपा मजबूत। फिर भी शिवसेना ने यह भ्रम पाल रखा है कि भाजपा को उसकी जरूरत है, खासकर के महाराष्ट्र में। रिश्ते बिगड़े होने के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तरफ से यह लगातार कहा गया कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र में अकेले लड़ने को तैयार है। भाजपा को यह भी लगता है कि सरकार बनाने में अगर कुछ सीट कम भी पड़ गई तो शरद पवार की पार्टी बाहर से समर्थन कर सकती है जैसा कि 2014 में देखने को मिला था। वैसे भी साथ रहने के बावजूद भी भाजपा के लिए शिवसेना को कंट्रोल करना काफी मुश्किल रहा है। हालांकि भाजपा और शिवसेना के लिए एक साथ रहना सियासी जरूरी और मजबूरी दोनों हैं। बता दें कि दोनों दलों ने 2014 में अलग-अलग चुनाव लड़ा था और भाजपा 122 सीटें जीतकर 288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी वहीं शिवसेना ने सिर्फ 71 सीटों पर जीत हासिल की थी। फिलहाल राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास 23 तो शिवसेना के पास 18 सांसद हैं।

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