कबीर साहेब की जयंती, संस्मरणों को याद किया छत्तीसगढ विस् अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने ।

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कालजयी है, सदगुरू कबीर दास जी – डॉ महंत

रायपुर —  महान विभूति सामाजिक प्रेरणाश्रोत कबीर साहेब की जयंती पर छत्तीसगढ विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास दास महंत ने उनके संस्मरणों की याद करते हुए कहा कि, कालजयी सदगुरु कबीर दास जी महान संत सदगुरु कबीर दास जी के विचार उनका व्यक्तित्व उनके सिद्धांत कालजयी है तत्कालीन समय वे जितने प्रसांगिक थे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं संत कबीर साहेब को विगत 500 वर्षों में न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी सुना समझा गया समय के साथ कबीर साहेब की प्रासंगिकता भी बढ़ती गई कबीर साहेब भविष्य दृष्टा संत है। पूज्य सद्गुरु कबीर दास जी की ने सदियों पूर्व हमारे समय की विसंगतियों के संदर्भ में चिंतन परख उपचार के परम सूत्रों को रच दिया इसलिए कबीर साहेब अमर हैं, उन्होंने स्वयं की पहचान को ही अमरत्व निरूपित करते हुए कहा, “हम न मरै मरिहै संसारा” कबीर साहेब को बुझकर हम अपने दायित्व का बेहतर ढंग से निर्वाह कर सकते हैं। कबीर साहेब सबके हैं सब के साथ हैं उदार और विराट कबीर जी को विद्वान से अधिक इस देश की समसामान्य जनों ने पढ़ा जाना समझा कबीर साहेब ने बाह्याडम्बर और जड़ परंपरा पर प्रहार किया कबीर साहेब को जितने भी जानने का यत्न किया उसे कबीर जी का संबल मिला, यह उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य की पुण्यभूमि पूज्य कबीर दास जी के विचारों को पोषित करने वाली भूमि रही है, दामाखेड़ा, कबीरधाम, कवर्धा के अलावा भी अनेक ऐसे महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं जो श्री कबीर दास जी के संदेश को निरंतर प्रसारित कर समाज तक पहुंचा रहे हैं जैसे कि मैंने आरंभ में ही उल्लेखित किया कि कबीर दास जी कालजयी है सामयिक परिवेश मैं भी कबीर दास जी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने के पूर्व में थे उनके विचारों को सानिध्य में एक तीर्थ की पावनता का बोध होता है संगीत और सानिध्य के विषय में पूज्य कबीर दास जी ने कहा था कि ” कबीर संगत साधु की जो गन्धी कह वास।
जे गन्धी कछु देय नहीं तो भी वास सुवास।। कबीर जी साहित्य के अध्ययन और अनुसरण से उनके विचारों की अनुभूति होती है साहेब की सानिध्य का अनुभव होता है भारत में संतों की जो महान परंपरा है वह वास्तव में ईश्वर की ज्योति स्वरूप है यह ऐसी ज्योति है जो अधर्म,अन्याय, अनाचार, असमानता के अंधेरे में भटकती मानवता को सही मार्ग दिखाती है इन दिव्य ज्योतियों में संत कबीर दास जी सर्वाधिक प्रकाशमान है और तेज में है वास्तव में भारतीय संस्कृति के समानता के सिद्धांत को जितनी अच्छी तरह और निर्भीकता से कबीर दास जी ने प्रस्तुत किया इतना साहस और अन्य संतों में दृष्टिगत नहीं होता तभी तो धर्मांधता पर
कबीर दास जी ने जंहा एक और हिंदुओं के लिए कहा
” पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़।
याते तो चाकी भली पीस खाए संसार ।।
वही मुस्लिम धर्म के लिए उन्होंने कहा की
“कांकर पाथर जोर कर मस्जिद लियो बनाएं।
तापर मुल्ला बांग दे
का बहरा होय खुदाय।।

धन से ऊपर मानवता को स्थापित करने का इससे बड़ा प्रयास कुछ और नहीं हो सकता वैसे तो भक्ति की ज्ञान में ही शाखा को कबीर दास जी ने सामान्य व्यक्ति की वाणी दी थी एक ऐसे समय में जब ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग में निराकार और साकार में तथा कर्मकांड और योग को लेकर द्वंद मचा हुआ था तब कबीर दास जी ने भारत की महान संस्कृति परंपराओं को एकाकार किया था।
संत कबीर दास जी ने सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समाज के दलित शोषित और कमजोर वर्ग की आशाओं और आकांक्षाओं को अपनी वाणी दी उन्होंने बढ़ाने के लिए प्रेरित किया प्रेम और सद्भाव की बुनियाद पर ऐसे समाज की रचना का आह्वान किया जिस में भेदभाव का कोई स्थान नहीं था यह उल्लेखनीय है कि आज देश लोकतांत्रिक लोक कल्याणकारी सामंतवादी समाज की रचना के लिए हम प्रतिबद्ध हैं उन सब के मूल बिंदु में हम संत कबीर दास जी की वाणी को ही पाते हैं।

छत्तीसगढ विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने कहा आइए कबीर साहेब की जयंती के इस पावन अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि हम पूज्य कबीर दास जी के विचारों और सिद्धांतों को समाज में और आर्थिक सुदृढ़ता प्रदान करने की व्यक्तिशह सहभागिता सुनिश्चित करेंगे।

 

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