गरीबी और वृद्धावस्था में क्यों हो रहा है मौलिक अधिकारों का हनन

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रायपुर —  आज के बदते हुए जीवन के परिवेश में अधिकांश लोगों के जीवन में उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। अमीरी गरीबी की खाई दिखाई दे रही हैं गरीबों के जीवन से शिक्षा कोशों दूर खड़ी हुई हैं ।

क्यों हो रहा है इंसानियत का पतन

आज के इस भौतिक युग में यदि मनुष्य, मनुष्य के साथ अच्छा व्यवहार करना नहीं सीखेगा, तो भविष्य में वह एक-दूसरे का घोर विरोधी ही होगा। इसी कारण हर एक तरफ मानवता का गला दबाया जा रहा है। हर तरफ (मानवता)जैसे रो रही हो। विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं बचा है, जहां हर रोज किसी धर्म के नाम पर राजनीति हो रही हैं । हर तरफ ना जाने कितने लाखों लोग गलत संतसंग गलत वातावरण की वजहों से बेघर हो रहे है और कितने ही मासूम बच्चे अनाथ हो रहे है ।

आज जरूरत है कि वर्तमान में धार्मिकता से रहित आज की यह शिक्षा मनुष्य को मानवता की ओर ले जाकर दानवता की ओर लिए जा रही है। जबकि आज जरूरत है हर व्यक्ति को इंसानियत को समझने का आज जरूरत है जरूरत मंद लोगों को समझने का मनुष्य मनुष्य के लिए इंसानियत के जज्बे का जरूरत है तो बेहतर निशुःक शिक्षण संस्थानों का मानसिक पीड़ा से जूझ रहे व्यक्तिओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हो सके व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य शिक्षा रोटी कपड़ा और मकान लोगों को नेक जीवन जीने के लिए उनके मौलिक अधिकारों मूल भूत सुविधाएं मुहैया जरूरी है।इन्हीं विडंबनाओं को मेरी आंखें निहारते हुए उन गरीबो मोहताजों बुजुर्गों के तरफ केंद्रित करती हैं जो कभी समाज का गृहस्थ जीवन का हिस्सा बना करते थे .लेकिन वक्त ने उन्हें असहाय जीवन जीने के लिए बेवश कर दिया अधिकांश लोग वृद्धावस्था मे अपना आसियान छोड़कर क्यों दरबदर भटकते है वृद्ध जनों बुजुर्ग क्यों बनाते अपना ठिकाना फुटफाथ रेलवे स्टेशन बसस्टैंड अनेक जगहों पर जहाँ उन्हें लगता है कि हमारा जीवन यही सुरक्षित रहेगा। आखिर कहाँ जा रहा है। हमारा समाज कहाँ खो गई इंसानियत जबकि यह सत्य है कि मानवता ही इंसान का सबसे बड़ा धर्म है। क्या सभ्य समाज में रहने वाले लोग अपने दायित्वों के निर्वाह करने के लिए असमर्थ हैं जो अपने माता पिताओं को ऐसे दुखंदायी बनाकर कैसे भूल सकते हैं। अभीतक मे मैने सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जूझ रहे उन जरूरत मंद वृद्धाजनों से मिलकर उनके दुखों को जानने की कोशिश की जिसमें यह पाया कि अधिकतर वृद्धाजनों के साथ घरेलू हिंसा जमीन जायदाद तेजी से बढ़ते हुए मादक पदार्थ आज्ञानता यह मुख्य कारण रहे हैं इस लिये अपना घर द्वारा । छोड़कर सर्वाजनिक जगहों पर अपनी जिंदगी खुले आसमान के नीचे अपना आसियाना बनाने के लिए मजबूर हैं। मै यहीं अपने नजारियों से जानने की कोशिश की जिसमें ज्यादा तर लोग घरेलू हिंसा नशेखोरी की आदि व्यक्ति अपने माता पिता को चंद रुपयों के लिए जमीन को अपने नाम कर लिया और भीख मांगने के लिए दरबदर कर मजबूर कर दिया.हैं। आज जरूरत है तो शासन और प्रशासन में बैठने वाले लोगों की है इनके लिये उचित समय रहते हुए इन जरूरत मंदो के मौलिक अधिकारों के लिए संज्ञान लिया जाए ताकि ऐसे सीनियर सिटीजन बुजुर्गों के लिए जरूरी व्यवस्था की जाये?

 

संस्थापक मों . सज्जाद खांन सामाजिक संस्था अवाम ए हिन्द सोशल वेलफेयर कमेटी के कलम से ✍✍

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