हार गई गरीबी जीत गई मौत…….. गरीबी बनी पढाई में बाधक तो फांसी लगाकर दे दी जान

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हाथ पर लिखा सुसाइट नोट , मां ख्याल रखना, मैं आगे पढ़ना चाहता था लेकिन….

पढाई के लिए मजदूरी भी की लेकिन नही निकलता था पूरा खर्च….

जर्जर झोपड़े में रहने वाले गरीब मां बेटे की दर्दभरी दास्तां…..

रायपुर — धरसीवां जनपद पंचायत क्षेत्र के ग्राम पंचायत देवरी में एक ग्यारहवीं के छात्र ने गरीबी के चलते पढाई में उतपन्न हो रही बाधा का हवाला देते हुए फांसी लगाकर जान दे दी।
गरीबी की हार पर मौत की जीत की दर्दभरी ऐंसी दास्तां शायद ही कभी किसी ने सुनी हो जो आज हम आपको बता रहे हैं।
जर्जर से झोपड़े में रहने वाला मृतक छात्र गणेश राम देवांगन बचपन से ही अपनी बड़ी बहिन ओर विक्षिप्त मां के साथ देवरी गांव में रहता था सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हुए वह अब शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में 11 वीं का छात्र था बड़ी बहिन की शादी पहले ही हो चुकी अब वह अपनी मां के साथ जर्जर झोपड़े में अकेला रहता था लेकिन उसके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ भारी था एक तरफ उसे अपनी पढ़ाई भी करना थी दूरी तरफ घर मे मां की सेवा घर खर्च सहित सभी काम करना लेकिन यह सब बिना पैसे के संभव नही इसलिए गणेश ने गांव के ही भवानी पाइप में मजदूरी शुरू कर दी यहां उसे सुबह 8 से शाम 5 बजे तक कि मजदूरी के दो सौ रुपये मिलते थे बीच बीच मे शाम 7 बजे तक यानी दो घण्टे ओर ओवर काम करता तो 50 रुपये एक्स्ट्रा मिलते थे इस तरह जिनसे तैसे वह गरीबी से संघर्ष कर रहा था लेकिन वह पढाई नही छोड़ना चाहता था बल्कि पढ़लिखकर कुछ करना चाहता था जो गरीबी के चलते संभव नही हो पा रहा था।
गरीबी से संघर्ष करते करते अंततः यह होनहार छात्र थक गया और उसने अपने घर मे ही सुबह फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली आत्महत्या के पहले उसने अपने हाथ की हथेली पर अपनी मां को अंतिम सन्देश लिखा “मां ख्याल रखना” इसी के साथ हाथ की गद्दी पर उसने लिखा “मैं ऐंसी जिंदगी नही जी सकता मैं पढ़ना चाहता था लेकिन मुझे अभी ….” इस तरह हाथ की गद्दी पर लिखकर छात्र गणेश देवांगन ने फांसी लगाकर जान दे दी।


इस छात्र की आत्महत्या से गरीबी पर मौत की विजय तो हो ही गई साथ ही यह घटना कई अनुत्तरित प्रश्नों को जन्म दे गई पहला तो यह कि जब यह छात्र मां के साथ गरीबी में जर्जर मकान में रह रहा था तो क्या उस समय जिम्मेदारों की जिम्मेदारी शून्य हो गई थी जो उसे आज तक पीएम आवास तक नही दिला पाए और भी कई सरकारी योजनाए गरीबो के कल्याणार्थ हैं तो वह तमाम योजनाएं आखिर कहाँ चली गई जो आज एक गरीब छात्र को यह कदम उठाना पड़ा।

हुलास साहू की रिपोर्ट

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