तंबाकू उत्पादों पर कोविड सेस से 50 हजार करोड़ जुटाए जा सकते हैं- डॉक्टरों, अर्थशास्त्रियों और लोक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने जीओएम, जीएसटी परिषद से की अपील…

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लखनऊ, 9 जून, 2020 —  डॉक्टरों और अर्थशास्त्रियों के साथ ही लोक स्वास्थ्य समूहों ने भी जीएसटी परिषद से अनुरोध किया है कि वह तंबाकू उत्पादों पर विशेष कोविड-19 सेस लगाने पर विचार करे ताकि कोविड-19 आर्थिक पैकेज में योगदान के लिए अतिरिक्त कर राजस्व प्राप्त हो सके। ये अपील कर रहे हैं कि सिगरेट, बीड़ी और चबाने वाले तंबाकू उत्पादों पर कोविड सेस लगाया जाए जिससे 49,740 करोड़ (497.4 अरब) रुपये का राजस्व मिल सके। यह रकम आर्थिक पैकेज में 29% योगदान कर सकती है। सभी तंबाकू उत्पादों पर कोविड सेस लगाने से ना सिर्फ आर्थिक पैकेज के लिए धन हासिल करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे तंबाकू उत्पादों को लोगों की पहुंच से दूर कर लोगों को इसे छोड़ने के लिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी। इससे जिन लोगों को इस वायरस का खतरा ज्यादा होता है उनमें इसके प्रसार को भी कम किया जा सकेगा। विभिन्न देशों में किए गए अध्ययनों के मुताबिक धुम्रपान करने वाले और तंबाकू उत्पादों का उपयोग करने वालों को जब कोविड-19 का संक्रमण होता है तो उन्हें गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि यह फेफड़ों पर हमला करता है और फेफड़ों को कमजोर कर व्यक्ति को ज्यादा खतरे में ला देता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि कोविड-19 भारत के लिए अब तक के सबसे बड़े आर्थिक झटकों में शामिल हो सकता है। इस महामारी से होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए सरकार को व्यापक आर्थिक संसाधनों की जरूरत होगी। भारत सरकार ने कई आर्थिक पैकेज की घोषणा की है (जिसमें 20 लाख करोड़ का मेगा पैकेज भी है) ताकि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाया जा सके और भारत को आत्म निर्भर बनाया जा सके। अन्य कार्यक्रमों के साथ ही सरकार ने मार्च में 1.7 लाख करोड़ रुपये (22.6 अरब डॉलर) के आर्थिक पैकेज की घोषणा की जिसमें लोगों को सीधे नकदी दिए जाने और खाद्य सुरक्षा के उपाय शामिल थे, ताकि करोड़ों गरीब भारतीयों को कोविड-19 के बाद किए गए राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान राहत पहुंचाई जा सके।
अर्थशास्त्री और स्वास्थ्य नीति विश्लेषक डॉ. रिजो जॉन के मुताबिक, “कोविड ने जो आर्थिक चोट पहुंचाई है, इससे उबरने के लिए देश को अभूतपूर्व वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी। ऐसे में उपभोग को भी बढ़ावा देना होता है, इसलिए सामान्य चीजों पर टैक्स को बढ़ाना संभवतः उपयुक्त नीतिगत विकल्प नहीं होगा, लेकिन तंबाकू उत्पादों पर विशेष कोविड सेस लगाना सभी के लिए लाभयादक होगा। इससे तंबाकू उपयोग में कमी आएगी, कोविड संबंधी खतरे कम होंगे साथ ही सरकार को काफी राजस्व भी हासिल होगा। बीड़ी की हर बत्ती पर 1 रुपये का कोविड सेस और सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पादों पर महत्वपूर्ण कर वृद्धि से 50,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होने की उम्मीद है।’’

तंबाकू उत्पादों पर प्रस्तावित कोविड सेस और इसका प्रभाव
बीड़ी सिगरेट चबाने वाले उत्पाद
प्रस्तावित कोविड-19 सेस प्रत्येक बत्ती 1 रु. प्रत्येक बत्ती 5 रु. 52%
अनुमानित अतिरिक्त सेस राजस्व (रु.) 233 अरब 250 अरब 13.5 अरब
उत्पाद पर नया कुल कर बोझ 67% 65% 70%
उपभोग में अनुमानित कमी 35% 17% 10%
उपयोगकर्ताओं के औसत में अनुमानित कमी 18% 10% 5%
इससे होने वाली मौतों में अनुमानित कमी 91 लाख 34 लाख 72 लाख

सभी तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाने से ना सिर्फ उनकी महंगाई बढ़ेगी और उससे उपयोग घटेगा, बल्कि तंबाकू की वजह से होने वाले स्वास्थ्य पर गंभीर नुकसान कम होंगे। धुम्रपान श्वसन संबंधी कई संक्रमण का ज्ञात कारण है और संबंधित बीमारियों की गंभीरता भी बढ़ा देता है। चीन और इटली से मिले शुरुआती प्रमाण यह बताते हैं कि पहले से मौजूद बीमारियों, धुम्रपान जैसे रिस्क पैदा करने वाले कारकों और धुम्रपान से होने वाली बीमारियों वाले मरीजों के कोविड-19 से ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित होने और मृत्यु होने का ज्यादा खतरा रहता है।

“बीड़ी सहित सभी तंबाकू उत्पादों पर सेस लगाने से सरकार को लाभ ही लाभ है क्योंकि इससे उसे बेहद जरूरी कोविड-19 आर्थिक पैकेज के लिए अतिरिक्त कर राजस्व प्राप्त होगा, जिससे देश के लोगों को जरूरी राहत दी जा सकेगी और साथ ही तंबाकू उपयोग करने वाले करोड़ों लोगों को इसे छोड़ने के लिए उत्साहित किया जा सकेगा तथा युवाओं को इसकी ओर कदम बढ़ाने से रोका जा सकेगा।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) सिफारिश करता है कि सभी तंबाकू उत्पादों के खुदरा मूल्य का कम से कम 75% हिस्सा कर का होना चाहिए। वर्तमान में कुल कर बोझ (अंतिम खुदरा मूल्य पर लगने वाले कर का प्रतिशत) भारत में सिगरेट के लिए सिर्फ 49.5% और चबाने वाले तंबाकू के लिए 63.7% है जो डब्लूएचओ की सिफारिश से बहुत कम है। दूसरी तरफ बीड़ी पर 22% का बहुत ही कम टैक्स बोझ है, जबकि यह कम से कम उतनी हानिकारक तो जरूर है जितनी सिगरेट। इससे बीमारियों और मौत पर आने वाली अनुमानित वार्षिक आर्थिक लागत 805.5 अरब रुपये या भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.5% है। हालांकि 2020-21 के केंद्रीय बजट में सिगरेट और अन्य चबाने वाले तंबाकू उत्पादों पर नेशनल कलामिटी कंटिंजेंट ड्यूटी (एनसीसीडी) में हल्की वृद्धि की गई है, लेकिन सभी तंबाकू उत्पाद 2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद से पिछले तीन साल से ज्यादा सस्ते हुए हैं।

“इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि बीड़ी गरीबों को आनंद देने वाली नहीं, उनकी जान लेने वाली हत्यारी है। इसे इतना महंगा कर दिया जाना चाहिए कि गरीब लोग आसानी से इसे खरीद नहीं सकें और जिंदगी भर की समस्या और पीड़ा से बच सकें।” – डॉक्टर राजीव पंत के मुताबिक तम्बाकू और अन्य निकोटिन वाले उत्पादों के लकेर सरकार को गंभीर होने की आवश्यकता है। हालांकि सरकार से मेरा अनुरोध है कि तम्बाकू और पान मसाला को लेकर सरकार को गंभीर हेने की आवश्यकता है। अगर तम्बाकू पर सरकार सेस टैक्स लगाती है तो निश्चित ही युवाओं की नई खेप पर रोक तो लगेगी ही साथ ही सरकार को राजस्व भी प्राप्त होगा।

तंबाकू उपयोग करने वालों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है (26.8 करोड़ या देश के वयस्कों में 28.6%)। इनमें से कम से कम 12 लाख लोग हर साल तंबाकू की वजह से होने वाली बीमारियों से मारे जाते हैं। तंबाकू उपयोग से होने वाली बीमारियों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत वर्ष 2011 में 1,04,500 करोड़ रुपये थी जो देश की जीडीपी का 1.16% है।

भारत सरकार के वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वे 2016-17 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 35.5% वयस्क तंबाकू का उपयोग करते हैं। उत्तर प्रदेश में 35 से 69 वर्ष के लोगों के तंबाकू उपयोग पर आने वाली कुल आर्थिक लागत वर्ष 2011 में 7335 करोड़ रुपये थी। इसमें 42% प्रत्यक्ष मेडिकल लागत है और 58% बीमारी की वजह से आने वाली अप्रत्यक्ष लागत है। वैश्विक स्तर पर इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि तंबाकू उपयोग को घटाने का सबसे प्रभावी उपाय तंबाकू पर टैक्स में बढ़ोतरी है।

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