कांग्रेस नेता राजेन्द्र तिवारी का बड़ा बयान….. ?
आज विनायक दामोदर सावरकर की जयंती उनके अनुयायी मना रहे है, और मेरे जहन में बहुत सी बाते आ रही है……
➡️ उनको “वीर” शब्द से संबोधित उनके स्वयं के द्वारा किया गया था, सावरकर ने एक पत्रिका में छद्म नाम से लेख लिखा था और उसमें वीर शब्द से स्वयं को संबोधित किया था..
➡️ “जब गांधी जी सावरकर से मिलने लंदन के इंडिया हाउस में पहुँचे, उस समय श्री सावरकर मछली तल रहे थे, तो गांधी जी ने ये कहते हुए माफ़ी माँग ली कि वो न तो गोश्त खाते हैं और न मछली. उस समय सावरकर ने उनका मज़ाक उड़ाया कि कोई कैसे बिना “एनिमल प्रोर्टीन” खाए अंग्रेज़ो की ताक़त को चुनौती दे सकता है..
उस रात गाँधी जी सावरकर के कमरे से अपने सत्याग्रह आंदोलन के लिए उनका समर्थन लिए बिना ख़ाली पेट बाहर निकले थे.”
➡️ यह बात सही है कि सावरकर के प्रारंभिक दिन देश के प्रति समर्पण वाले दिन थे, जिसमें उन्होंने 1857 के विद्रोह को अंग्रेजों के विरुद्ध सशक्त क्रांति की उपमा दी थी, परंतु काला पानी की सजा के बाद उन्होंने अपना पूरा आचरण बदल दिया और पूरी तरह से अंग्रेजों के भक्त हो गए.
➡️ जेल से माफ़ी मांग कर छूटने के बाद सावरकर को ब्रिटिश सरकार के द्वारा प्रत्येक माह एक तोला सोना बतौर वजीफ़ा के रूप में मिलता था , जिसे संबंधित कलेक्टर से वजीफ़ा बढ़ाने को कहा इस पर कलेक्टर ने उत्तर देते हुए कहा कि तुम्हें मेरी तनख्वाह से ज्यादा वजीफा मिलता है.
➡️ महात्मा गांधी जी की हत्या में विनायक दामोदर सावरकर भी नाथूराम गोडसे के साथ सहअभियुक्त थे जो सबूतो के अभाव में छूट गये थे, बाद में भारत के तात्कालिन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया यह कहते हुए कि यह देश और समाज के लिए घातक संस्था है..
➡️ नाथूराम गोडसे किसी ज़माने में आरएसएस के सदस्य रहे थे, लेकिन बाद में वो हिन्दू महासभा में आ गए थे. हालांकि 1996 में 8 सितंबर को इकनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में गोपाल गोडसे जो गाँधी हत्या कांड मे सहअभियुक्त थे, कहा था कि “गोडसे ने न तो कभी आरएसएस छोड़ा था, और न ही उन्हें निकाला गया था”.
नथूराम गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर के वंशज सत्याकी गोडसे ने ‘इकनॉमिक टाइम्स’ को दिए इंटरव्यू में कहा था, ”नथूराम जब सांगली में थे तब उन्होंने 1932 में आरएसएस ज्वाइन किया था. वो जब तक ज़िंदा रहे तब तक संघ के बौद्धिक कार्यवाह रहे. उन्होंने न तो कभी संगठन छोड़ा था और न ही उन्हें निकाला गया था.
➡️ पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिना के पहले 30 के दशक में हिन्दु महासभा की में बैठक सावरकर द्वारा ही सबसे पहले “द्विराष्ट्र” का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था.
➡️ जेल के दिनों में सावरकर ने अंग्रेज़ों से 11 बार माफ़ी मांगा था,, सौंपे गये अपने माफ़ीनामे में लिखा था, ‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.
➡️ सावरकर पकड़े गए और 1911 में उन्हें अंडमान की जेल में डाल दिया गया. उन्हें 50 वर्षों की सज़ा हुई थी, लेकिन सज़ा शुरू होने के कुछ महीनों में ही उन्होंने अंग्रेज़ सरकार के समक्ष याचिका डाली कि उन्हें रिहा कर दिया जाए. इसके बाद उन्होंने कई याचिकाएं लगाईं. अपनी याचिका में उन्होंने अंग्रेज़ों से यह वादा किया कि ‘यदि मुझे छोड़ दिया जाए तो मैं भारत के स्वतंत्रता संग्राम से ख़ुद को अलग कर लूंगा और ब्रिट्रिश सरकार के प्रति अपनी वफ़ादारी निभाउंगा.’ अंडमान जेल से छूटने के बाद उन्होंने यह वादा निभाया भी और कभी किसी क्रांतिकारी गतिविधि में न शामिल हुए, न पकड़े गए.
सावरकर पर मेरे जैसे व्यक्ति को बोलने के लिये लिखने के लिये बहुत कुछ है, और इस मामले में मै किसी भी बहस के लिये तैयार हूँ स्वभाविक रूप से मेरी बात उनके अनुयायी को बेहद खराब लगेगी मगर ऐतिहासिक तथ्य आस्था के कारण नहीं छुपाये जा सकते,, सावरकर पर और भी बहुत सी बातें है, जिसमे द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजो के प्रति उनका समर्पण सहित बहुत सी बाते अधूरी रह गयी है, जो कभी लिखने के बजाये अपने सोशल मीडिया मे आप सभी के साथ साझा करूंगा, और प्रश्न और जिज्ञासा का जवाब भी देना चाहुँगा..