UPA अध्यक्षा सोनिया गांधी की जो तस्वीरें आजकल मीडिया में है उनमें से एक तस्वीर में वह अपने बेटे राहुल गांधी के साथ चीन के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर रही हैं तो दूसरी तस्वीर में सरकार के तीन मंत्रीयों के साथ वह खड़ी हुई हैं। सबसे ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर है कि सरकार के तीन मंत्री अचानक उनसे मिलने क्यों पहुंच गए। इसका जवाब यह है कि 17 जून से संसदीय सत्र आरंभ हो रहे है और 17वीं लोकसभा का यह पहला सत्र है जो 26 जुलाई को समाप्त होगा। बजट भी पांच जुलाई को पेश होगा। सूत्रों की माने तो यह कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी के आवास पर मंत्रियों का जाना विपक्ष से तालमेल बैठाने की सरकार की कवायद का हिस्सा है। तो अब सवाल यह उठता है कि आखिर सोनिया इतनी जरूरी क्यों हो गईं। फिर इसका जबाव यह है कि वह कांग्रेस संसदीय दल की नेता चुनी गई हैं और लोकसभा में सदन सुचारू रुप से चले इसके लिए इन्हें भरोसे में लिया जाना जरूरी है ।
इसके अलावा वह UPA की अध्यक्षा भी हैं ऐसे में DMK जैसे बड़े दल पर भी उनका नियंत्रण रहेगा। पह यह मंत्री कौन-कौन थे। तो इनमें संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर शामिल थे। इस मुलाकात के बाद प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सोनिया गांधी के साथ हमारी बैठक बहुत सौहार्दपूर्ण रही। हमने संसद की सुचारू कार्यप्रणाली के लिए उनका सहयोग मांगा। इसके बाद जो उन्होंने कहा उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रह्लाद जोशी कहा कि सोनिया जी मानती हैं कि विपक्ष को भी सत्ता पक्ष के सहयोग की आवश्यकता है और मैंने उन्हें बताया कि सरकार सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार है।
इसके अलावा सोनिया से मुलाकात करना सबसे ज्यादा जरूरी इसलिए भी है क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है और सरकार तीन तलाक समेत 10 नए अध्यादेशों को कानून में बदलाव की योजना बना रही है। लोकसभा में भले ही मोदी सरकार को किसी की जरूरत नहीं पर राज्यसभा में एक साल तक सबकी जरूरत है। फिलहाल में राज्यसभा में NDA की सदस्य संख्या 83 है जिसमें भाजपा के अपने 73 सदस्य हैं। कांग्रेस और यूपीए की सदस्य संख्या भी 73 है पर बिल पास कराने के लिए 245 सदस्यीय राज्यसभा में 123 सदस्यों की दरकार होती है।
इसके साथ ही भाजपा को विपक्ष को साधने के लिए सोनिया गांधी की सबसे ज्यादा जरूरत है। सोनिया को सम्मान देने का मतलब विपक्ष को शांत रखना भी है। इसके अलावा यह मुलाकात अपने आप में महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस की हार के बाद सोनिया ने सदन में पार्टी की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है और भाजपा उन्हें आक्रमक होने का कोई भी मौका नहीं देना चाहती। सोनिया वरिष्ठ नेता हैं और वह सरकार का विरोध ठोस आधार पर करने में ज्यादा महत्व देंगी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और विपक्ष के बीच किस तरह का तालमेल रहता है और सोनिया गांधी को लेकर सत्ता पक्ष अपने किस रणनीति के तहत मैदान में उतरता है।