श्रावन के उपवास का धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व ।

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विशेष लेख : डॉ .गुलशन कुमार 

उपवास एक चिकित्सा है, उपवास वह कर्म है जिसमें हम अपने शरीर को समझते हैं उपवास का एक वैज्ञानिक महत्व है उपवास आयुर्वेद चिकित्सा का एक कर्म है । आचार्य चरक ने लंघन चिकित्सा की व्याख्या की है, लंघन के 10 प्रकारों में सबसे पहला प्रकार उपवास ही है।
हमारे देश में जैसे ही वर्षा ऋतु का आगमन होता है उसी के साथ विभिन्न प्रकार के धार्मिक उपवासों का आगमन होता है, जैसे- श्रावन में उपवास रहने की परंपरा
हम देखते हैं इसकी धार्मिक महत्ता जो भी हो, जितनी भी हो लेकिन आयुर्वेद के अनुसार इसकी वैज्ञानिक महत्ता भी कुछ कम नही है आयुर्वेद में ऋतुचर्या के ऊपर गहन विचार किये गये हैं, दो काल बताये गये हैं (1) आदान काल (2) विसर्ग काल
आदान काल में शिशिर ऋतु, बसंत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु
तथा विसर्ग काल में वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और हेमंत ऋतु के बारे में बताया गया है।
जब आदान काल गीष्म ऋतु से विसर्ग काल वर्षा ऋतु का आगमन होता है तो हमारे शरीर की क्रियाओं में परिवर्तन शुरु हो जाता है।
आदान काल इसको हम ऐसे देखते हैं आदान मतलब लेने वाला अर्थात जब ग्रीष्म ऋतु में सुर्य उत्तरायण होकर अपने चरम पर होती है तो गर्मी से मनुष्य का शरीर कमजोर होने लगता है तात्पर्य यह है कि शरीर का बल क्षीण हो जाता है। और त्रिदोष( वात,पित्त,कफ) में कफ दोष का क्षय(कम) होने लगता है। और वात दोष बढ़ने लगता है तथा हमारी पाचकाग्नि मन्द हो जाती है।
ग्रीष्म ऋतु के तुरंत बाद वर्षा ऋतु आती है। वर्षा ऋतु में आकाश में बादल छाये रहते हैं जिससे वातादि दोष दुषित होते हैं और पहले से (अग्निमांद्य) पाचकाग्नि मंद होने से वर्षा ऋतु में भी पाचन संबंधी विकार की संभावना ज्यादा होती है। पाचकाग्नि मंद होने के कारण भोजन का पाचन सही तरीके से नहीं हो पाता है।
और बिना पचे भोजन में फिर से भोजन करने से बहुत से पेट संबंधी विकार, शारीरिक और मानसिक दोनों विकार(व्याधि) उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारणों को जानकर पाचन तंत्र को मजबुत करने के लिए *उपवास* का विधान बताया गया है।
और हमारे पुरखों द्वारा इसे आस्था से जोड़ा गया इसलिए हम सहज ही आस्था के प्रतीक के रुप में उपवास कर्म करते हैं लेकिन अनजाने में हम आयुर्वेद का चिकित्सा कर्म कर रहे होते हैं जिसे वर्षा ऋतु में करने के बहुत ही लाभदायी फल प्राप्त होते हैं। आप चाहे किसी भी धर्म जाति से हो आपके पुरखों ने कोई परंपरा बनाई हो यकीन मानिये उसका कोई न कोई वैज्ञानिक महत्व जरुर होगा। जरुरत है हमे जानने और समझने की इसलिए जैसे ही वर्षा ऋतु का आगमन होता है *उपवास करने वाले त्यौहार* का आगमन होता है भले ही इसे आप रोज न रखें सप्ताह में रखें लेकिन रखें जरुर।
इसलिए आपके ईष्टदेव से जोड़कर ये परंपरा बनाई गयी है कि आप वैज्ञानिकता में न उपवास रखें तो धार्मिकता में रखें लेकिन उपवास रखें, अभी के मशीनरी युग में भले ही हम अपने शरीर को न जानते हो लेकिन सैंकड़ो साल पहले से हमारे पुर्वजों(पुरखों) को पता रहा कि कौन से ऋतु में कैसा खानपान करना है और कैसे रहना है।
इसलिए उपवास की आप धार्मिक महत्ता के साथ वैज्ञानिक महत्ता भी मान सकते हैं ।

 

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