आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति से इलाज कारगर साबित हो रहा है।
5 साल से पीडित मरीज को आयुर्वेद के इलाज से मिला लाभ
साइटिका और बेडसोर से पीडि़त था मरीज, 5 महीने में मिली राहत
रायपुर — साइटिका (sciatica) रोग से 5 साल तक ग्रसित मरीज का इलाज आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति से कारगर साबित हो रहा है। अब मरीज अपने पैरों पर आसानी से चल फिर रहा है। आयुर्वेदिक अस्पताल के शल्य और पंचकर्म विभाग के डॉक्टरों की टीम द्वारा 5 महीने तक लगातार उपचार से मरीज, हरिबाबू दुबे की सेहत में काफी सुधार आया है। मरीज को सिकाई से राहत मिल रहा है इस लिए अब पसहर चावल को दूध में उबाल कर पोटली बनाकर सिकाई की जाएगी। पसहर चावल में में प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है जो कि ताकत और दर्द में राहत प्रदान करता है। उनका कमर के नीचे का अंग लकवा ग्रस्त हो गया था और कमर से लेकर एड़ी में काफी दर्द होने की शिकायत थी। तीन साल तक बिस्तर में ही पड़े रहने से हरिबाबू के कमर बेडसोर हो गया था। मार्च 2019 में जब उनको आयुर्वेदिक अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया तब वह बैसाखी के सहारे भी चलने लायक नहीं थे और लगातार बेड में 3 साल तक पड़े रहने से शरीर में कई बिमारियां होने लगी थी।लगभग 5-6 सालों से अस्पतालों में 10 लाख रुपए तक खर्च हो गए ।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के बारा तहसील के ग्राम पचवर निवासी हरिबाबू दुबे (57) वर्ष 2012 के शुरुआत में साइटिका रोग से ग्रस्ति होने लगा था। अचानक एक दिन बिस्तर पर सुबह उठने के दौरान लगा कि अब वह उठ नहीं सकता है। डेढ़ साल कमर से लेकर एडी में काफी दर्द होता था, इस दौरान हड्डी रोग के डॉक्टर से भी इलाज कराते रहें।
वर्ष 2015-16 से लेकर वर्ष 2019 फरवरी तक उत्तर प्रदेश के पीजीआई लखनऊ अस्पताल, दिल्ली के एम्स , और मुंबई में केईएम अस्पताल में भी इलाज कराया लेकिन पूरी तरह से बीमारी ठीक नहीं हो रही थी । नसों का सिस्टम डेमेज होने लगा था जिसकी वजह से नित्यक्रिया में परेशानी हो रही थी। डॉक्टरों ने तो जवाब भी दे दिया था । लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी जिसके कारण घरवाले हताश होने लगे थे ।
हरिबाबू 5 साल आर्मी में ड्रायवर की नौकरी कर चुका था। आर्मी में नौकरी छोड़ देने के बाद वह ड्रायवर की नौकरी गांव में ही शुरु कर दिया। शरीर में दर्द और विपरित पस्थितियों में भी खुद को ढालने की आर्मी में मिले ट्रेनिंग से हरि बाबू को अंदर से जीने का हौसला मिल रहा था। रायपुर में उनके एक रिश्तेदार की सलाह पर राजधानी के शासकीय आयुवेर्दिक अस्पताल में भर्ती हो गया। मार्च 2019 में आयुर्वेदिक अस्पताल में शल्य विभाग के डॉक्टर बलेंद्र सिंह ने इलाज शुरु किया।
डॉ बलेंद्र सिंह ने बताया मरीज को बेड में पड़े रहने से कमर पर घाव हो गया था, यानी साइटिका के बाद बेडसोर (दबाव अलसर )जिसका इलाज किया गया। डॉ सिहं ने बताया मरीज के कमर में रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से हड़डी नीचे की ओर दबने से नसों को प्रभावित कर रहा था जिसमे मरीज के पैरों में सेनसेशन कम हो गया था। स्पर्श और दर्द की अनुभूति नहीं होती थी। अब इलाज से लगभग 65 प्रतिशत मरीज के स्वास्थ्य में सुधार आया है। हरि बाबू दुबे का कहना है कि डॉक्टरों की टीम को आने वाली पीढ़ी भी धन्यवाद देगी। अस्पताल में डॉक्टरों के गहन देखभाल और इलाज से उनकों नई जिंदगी मिली है। डॉक्टरों का कहना सच साबित हुआ कि आपको दौड़ा कर यूपी भेजेंगे। दुबे ने बताया कि इलाज के दौरान खाने में परहेज और सस्ता सुलभ दवाओं से उनकों दूसरी बार जिंदगी मिली है।
पंचकर्म विभाग के डॉ रंजीप कुमार दास ने बताया कि मरीज की कमर में चोट लगने के कारण रीढ़ की हड्डी निचे की ओर दबने से लुम्बार स्पाइन में डिस्क बल्ज (Disc Bulge) हो गया था, जिससे वह स्पाइनल कड को कच कर रहा था। इसके वजह से शरीर के निचले हिस्से में अर्थात् दोनों पैरो में शून्यतापन हो गया था। अस्पताल में मरीज के हड्डी और नसों की समस्या यानी साइटिका रोग के इलाज के लिए हरिबाबू का विभिन्न औषधियों से इलाज किया गया । डॉ दास ने बताया अस्पताल में गरमतेल से सिकाई और आयुर्वेद की दवाई से तीन महीने में ही हरिबाबू अपने पैरों में खड़ा होने लगे और दर्द से राहत मिलने लगी। डाक्टरों का कहना है हरिबाबू अब खुद अपने पैरों से चलकर वापस घर जायेंगें ।
डॉ दास ने बताया आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ “जीवन का विज्ञान” है। यह स्वास्थ्य की एक ऐसी समग्र प्रणाली है जिसका प्राचीन काल से पालन किया जा रहा है। आयुर्वेद के अनुसार, केवल बिमारियों या रोगों से मुक्ति ही स्वास्थ्य नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन की स्थिति है।